हाइकु अर्द्धशतक
१५१/ शांत तालाब
पाहन की चोट से
बिखर चला।
१५२/ मुस्कुरा गई
नव वधु के लब
मैका आते ही।
१५३/ बच्चे मायुस
बिजली आते उठी
खुशी लहर।
१५४/ अपनी सीमा
कमजोरी तो नहीं
प्रभाव जमा।
१५५/ बाल संवारे
दीदी आज भाई का
सहज प्रेम
१५६/ भूले बिसरे
यादों में झिलमिल
असल पूंजी।
१५७/ आकाश गंगा
तारों की टिमटिम
तम की आस।
१५८/ भीषण शीत
लब गुंजित करे
शास्त्रीय गीत।
१५९/ मुड़ा भास्कर
उत्तरायण गति
हुई संक्रांति।
१६०/ उत्तरायणी
हो चला दिनकर
राशि मकर।
१६१/ किया तर्पण
भगीरथ गंगा से
संक्रांति दिन।
१६२/ संक्रांति तिथि
शरीर परित्याग
महान भीष्म।
१६३/ ये तो खराबी~
औंधे मुंह राह पे
गिरा शराबी।
१६४/ जानो, ना मानो
खुदा को पहचानो
जग सयानो।
१६५/ रजत वर्षा
बिखरे धरा पर
प्रभात काल
१६६/ पीले व धानी
वस्त्र ओढ़ है सजी
बसंती रानी ।
१६७/ बाल संवारे~
कांधे लटका थैला
स्कूल को चलें।
१६८/ दीपक की लौ
जलती रात भर
तम में आस।
१६९/ पिय के बिन
अधुरी है पूनम
तन्हा है चांद।
१७०/ कैसा आलाप!
झरना झर रहे
वन विलाप….
१७१/ बूंद टपका
नेत्र बना झरना
धुलता मन।
१७२/ नैनों ने जाना
धडकनों ने माना
हो गया प्यार।
१७३/ शांत वन में~
बहे अशांत होके
निर्झर गाथा।
१७४/ खिले सुमन
बिखरते सौरभ
उड़े तितली।
१७५/ झोपड़ी तांके
महल की ऊंचाई
देख ना पाये।
१७६/ मेघ गरजे~
अटल महीधर
शांत व स्थिर
१७७/ मेघ गरजे~
अटल महीधर
सहता रहा।
१७८/ उड़ता धुंआ
जलते महीधर
पतझड़ में।
१७९/ दूर क्षितिज
रंगीन नभ बीच
बुझता रवि।
१८०/ नभ सागर
गोता लगाये रवि
पूर्व पश्चिम।
१८१/ तन घोंसला
उड़ जाये रे पंछी
कौन सा देश?
१८२/ निभाता फर्ज~
बुनता है मुखिया
प्यारा घोंसला।
१८३/ वजूद खोती
कदमों के निशान
सागर तट।
१८४/ उठा सुनामी~
सागर हुआ भूखा
खाये किनारा।
१८५/ उथला टापू~
बेबस दिख रहा
सागर बीच।
१८६/ दूर सागर~
दिखता दिनकर
सिंदूरी लाल।
१८७/ हवा हिलोरे
हिले पुष्प डालियां
महके वादी।
१८८/ टूट चुका है
जड़ के धंसते ही
रूखा चट्टान।
१८९/ टूट जाता है~
चट्टान का दिल भी
व्यंग्यकारों से।
१९०/ हर कदम
आशीष हो गुरू का
शुभ जीवन ।
१९१/ छुपा के रखे~
चट्टान सा पुरूष
नरम दिल।
१९२/ खुशी व गम~
प्रतीक्षा है करता
खेल मैदान।
१९३/ खेल मैदान~
सबक है सिखाता
जीवन अंग।
१९४/ प्रौढ़ जीवन~
डाल में लटकी है
वो लाल बेर।
१९५/ अतुल्य प्रेम~
बेर चख शबरी
भोग लगाये।
१९६/ बारिश बूंदें~
उगी है मशरूम
छतरी ताने।
१९७/ राजसी शान~
मशरूम आसन
बैठा मेढ़क।
१९८/ कैद हो गया~
मेरा गेहूँ का दाना
बारदाने में।
१९९/ धरती सजी~
गेहूं का आभूषण
स्वर्ण जड़ित।
२००/ गेहूं के खेत~
कंचन बिछा रखा
आ मिलो प्रिये।