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मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग १

हाइकु अर्द्धशतक

१/
बसंत नाचे
गाये गीत फाग के
प्रेम राग के।

२/
बासंती चिट्ठी
संवदिया बन के
आया बयार।

३/  बासंती  हवा  

रंग  बिखर गया।

निखर गया।

४/
फलक तले

खिले सरसों फुल
बसंत पले।

५/
पी का दीदार
नशा ज्यों हो शराब
दिल गुलाब ।

६/ नदिया तीर
खड़ा है जो गंभीर
शिव मंदिर।

७/ मस्जिद पर
अल्लाहु अकबर
रब का घर ।

८/ हर जगह
वाहेगुरू फतह
जै गुरूद्वारा।  

९/ गली चौबारा
मंदिर है मस्जिद
है गुरूद्वारा।

१०/ पिय दर्शन
हिय घंटी वादन
जिय प्रसन्न।

११/
कहाँ है रब?
सुनता क्या अजान?
मैं अनजान।

१२/
वात्सल्य मूर्ति
बनी जग विद्रोही
बेटा हेतु माँ।।

१३/
पिता की डाँट
कड़ुवी गोली सम
प्रेम का ढंग।

१४/ भाई बहन
चाहे मां पिता पर
एकाधिकार।

१५/
नारी की हठ
जैसे लक्ष्मण रेखा
दृढ़ अकाट्य।

१६/ कठिन श्रम
पुरूष का श्रृंगार
काहे को शर्म।  

१७/ छोड़ती घर
बेटी बाबुल घर
बसाने घर।

१८/ पति है सखा
जीवन करे साझा
हर मोड़ पे।

१९/ भेजा ना पत्र
जो नैन भाखा जाना
वो मेरा मित्र।

२०/ जीने की कला
मैंने गले में डाला
प्यार की माला।
 

 २१/ सच्चा सहारा
ज्यों नाव मझदार
वो परिवार।

२२/
पंछी है मन
चाहे खुली गगन
शांत निर्जन।

२३/ पंछी आशियाँ
झुलसने लगे हैं
ये बर्बादियाँ।

२४/ स्वप्न गठरी
बांध खड़ा कतार
देश बेकार।  

२५/ गगन खोज
उड़ाने को सपने
तू हर रोज।

२६/ रूप आकृति
विविध रंग प्रकृति
फैली विस्तृत।

२७/ मन हर्षाये
सौरभ बिखराये।
शाख में फूल।

२८/ तरू नाचता,
हावभाव कमाल
हवा दे ताल।

२९/ दर्पण पानी
सजती मनमानी
कमल रानी।

३०/ सरिता धार ।
पर्वत शिला मार
चली हुंकार।   

३१/ दीन के द्वार
खुशी आये बनके
ईद की चांद।

३२/
आग का गोला
सृष्टि का है इंजन
देता जीवन ।

३३/
चांदनी रात
नदी खिलखिलाके
दिखाये दांत।

३४/ सृष्टि के स्तम्भ
निहारिका बनाते
तारे पालते।

३५/ कल का युग
घिरा विज्ञान साया
ईश्वर माया ।

३६/
अहं का भाव
दौड़ाता दिन रात
बुझे ना तृषा ।


३७/                    

ऐसा हो कर्म
लोभ तृषा से दूर
मोक्ष हो धर्म।

३८/ अंत अध्याय
जीव बंधनमुक्त
मोक्ष पर्याय ।।

३९/                     
करते युद्ध
लपेट ध्वज कफन
वीर जवान।

४०/
होकर जुदा
मिटा लो सब भ्रांति
सहज शांति।

४१/ महिमा
वही गाये जो जाने
भूख की पीड़ा।


४२/ रक्त रंजित
हिमालय की भूमि
वीर लाल से।

४३/ देखे विनाश,
विकास आस लिए
मौन है धरा।

४४/ चमक उठी~
नैनों में बन मोती
प्रेम की ज्योति।

४५/ मृत्युशय्या में~
चलचित्र उभरे
स्मृति  रेखाएं।

४६/ क्षितिज पर~
भू अंबर मिलन।
हो आलिंगन।

४७/ सब अकेला~
सिखाती अनायास
वियोग बेला।

४८/ छाये बसंत
खिलता पुष्पकली
झूमे भ्रमर।  

४९/ बंधी है पुष्प
काटें सलाखों बीच
विकल चुप।

५०/ मधुबन में~
पुष्प है गोपबाला
कृष्ण भ्रमर।

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