आक्रोश पर निबंध – मनीभाई नवरत्न
"कभी रोष है ,तो कभी जोश है।
मन में उफनता , वो 'आक्रोश' है।
मदहोश यह, तो कहीं निर्दोष है।
परदुख से उत्पन्न 'आक्रोश' है।"
"कभी रोष है ,तो कभी जोश है।
मन में उफनता , वो 'आक्रोश' है।
मदहोश यह, तो कहीं निर्दोष है।
परदुख से उत्पन्न 'आक्रोश' है।"
गीता ग्रंथ में उल्लेखित महत्वपूर्ण बातों को आधार मानकर लिखी गई कविता
वर्तमान परिस्थितियों में कवियों की सम्मान के प्रति अति मोह पर व्यंग्य करती कविता
प्रेम आधारित छोटी सी कहानी
मनीभाई नवरत्न की अपने मित्र अंकित भोई अद्वितीय से साक्षात्कार