गीता ग्रंथ है पवित्र पावन, गीता ज्ञान का सागर । श्रीकृष्ण ने सुनाई अर्जुन को,वह युग था द्वापर ।। समय बदल गया पर, बदली ना गीता की महिमा । आज भी घटती जग में देखो,तोड़ काल की सीमा । कलयुग में घट जायेगी , धर्म, कर्म और मानवता । न्याय मिले उसी को ही , जिसके पास हो धनसत्ता। डूबेगा सकल सृष्टि , चिंता के सागर में । व्याधि होगी विभिन्न,तन के इस गागर में । माता-पिता अनादर होंगे, पूजी जाएगी पत्थर। तीस वर्ष ही जी सकेंगे, उम्र कम होगी घटकर । दूषित होगा जल, हर तरफ पड़ेगी सूखा। भोगी होगा मानव, फिर भी रहेगा भूखा ।
मर गया कवि सम्मान के चक्कर में। अब मिठास कहाँ गुड़ जैसे शक्कर में। ये कैसा काव्य युग, अजीब कवियों की पीढ़ी है। कागजी टुकड़े को समझता अपनी मंजिल की सीढ़ी है। जिसके लेखनी उगलते दिन रात जात-पात की गरल। निर्भाव अभिमानी बनके स्वविचार थोपे हर पल। गायब हैं काव्य में दीन हीन की कराह। ये तो वही लिखेगा जिसमें मंच कहे वाह-वाह। पंत,निराला,अज्ञेय दिनकर, बच्चन… को पढ़ लीजिए। तब कुछ समझ आये तो काव्य गढ़ लीजिए। यूं ना अधुरे सच का खुल के दुष्प्रचार कीजिए। सत्य की तह जाइये तब तक इंतजार कीजिए। काव्य होती भावपरक भाव का गला ना घोटिये। यूं ना दंभ, क्रोध में आके मुख मोड़के ना लोटिये। कवि है साधक, ज्ञानदीप से आलोक करें। क्या हुआ जो मंच ने भुला दिया तनिक भी इसका ना शोक करें। काव्य रंग से रंगे समाज की हर दीवार। रब ने यह हुनर दिया ये तो कम नहीं मेरे यार। पर चंद पंक्ति लिख देने से तू कहाँ और कब माना है? करेगा वही जो तेरे दिमाग ने ठाना है। तो सोचता हूँ अब उस कवि को क्या बताऊँ लिखकर मैं। जो मर गया कवि सम्मान के चक्कर में।
*✍मनीभाई”नवरत्न”* रचनाकाल:- 30अप्रैल 2018,1:00 AM से 1:30 AM
हर रोज की तरह लाइब्रेरी में प्रताप पढ़ने के लिए बैठता था । उसी लाइब्रेरी में उसी के सामने बेंच पर अंजली नाम की लड़की भी पढ़ने के लिए बैठ जाया करती थी। प्रताप को लगने लगा कि ये कोई संयोग मात्र नहीं है। वह सोचता है कि कहीं अंजलि उसे चाहती तो नहीं। और इस तरह प्रताप उसे मन ही मन में चाहने लगा था । लेकिन वह उससे बात करने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहा था । इसी बीच अंजली भी प्रताप को चाहने लगी ।
एक दिन अंजली का एक दोस्त उसे लायब्रेरी में मिलने के लिए आ गया। दोनों के बीच पढ़ाई के साथ-साथ अब हंसी मजाक भी होने लगी ।
इस बात से प्रताप को लगा कि वो लड़का कहीं अंजली का बॉयफ्रेंड तो नहीं । और ऐसा मान लेने से वह अंदर ही अंदर बेचैन होने लगा । अंजली प्रताप की बैचेनी देखती रही। उसने प्रताप की बैचेनी से मजा लेना शुरू कर दिया।
वह महसूस कर रही थी कि प्रताप उसे प्यार करता तो है लेकिन उसे इजहार नहीं कर पा रहा है । लेकिन जो भी हो, अभी वह रोमांचित पल का आनंद ले रही थी।
दूसरे दिन प्रताप भी अंजली को यह बताने के लिए कि वह भी किसी से कम नहीं । या यों कहे कि वह अंजली जलाना चाहता हों । इसके लिए अपने एक दोस्त रोहिणी को बुला लाया और उसे अंजली के सामने ही जानबूझकर अंतरंग बात करने लगा । इस बात को रोहिणी समझ रही थी कि प्रताप यह सब अंजली को जलाने के लिए कर रहा है ।
अंजली को यह सब सहन नहीं हो पाया कि प्रताप किसी दुसरे की हो जाय । वह लाइब्रेरी से उठती है और दौड़कर आंसू पोछते हुए गार्डन आ जाती है । अब प्रताप को अपनी भूल महसूस होने लगता है कि कहीं ना कहीं उसने अंजली के दिल को चोट पहुंचा कर अच्छा नहीं किया है ।
उसे यह यकीन हो जाता है कि असलियत में दोनों ही एक दूसरे को प्यार करते है । प्रताप वहां बगीचे में पहुंचता है जहाँ अंजली सिसकियां ले रही थी. प्रताप और अंजली के नजर मिलते हैं । अंजली क्षोभ भरी नजरों से प्रताप को देखती है। और प्रताप भी माफी मांगते हुए कान पकड़ लेता है। अब वह ये सब जानबुझकर नहीं करेगा। रोहिणी प्रताप की अंजली से प्यार वाली बात बताती है कि दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे सोचकर अंजली दुखी हो रही है।
प्रताप और अंजली के बीच प्यार का इज़हार बिना बोले ही हो जाता है । अंजली दौड़कर प्रताप को अपने बाहों में भर लेती है।
(2005 में सोची हुई लव स्टोरी का लेखांकन किया गया है)
मनीभाई: बहुत बहुत धन्यवाद अंकित अंकित जी आपने मेरे लिए अपना अमूल्य समय निकाला । अंकित जी : धन्यवाद आपको मनीभाई। आप सबसे पहले हमारे हृदय की पहले हमारे हृदय की मित्र हैं बाद में हम आप प्रोफेशनल हैं ।
मनीभाई: जी धन्यवाद ।अपने साक्षात्कार में सबसे पहले आप अपना परिचय बताइए? अंकित जी: जी! मेरा नाम अंकित भोई “अद्वितीय “है।मेरी उम्र 23 वर्ष है। मेरा निवास छत्तीसगढ़ प्रांत के जिला महासमुंद के सरायपाली तहसील के ग्राम बलौदा से हूँ । मेरे दादा जी के 5 पुत्र के छोटे पुत्र का पुत्र हूं । मेरे पिताजी शिक्षक हैं ।हम दो भाई बहन बहन हैं ।
मनीभाई: आपको “अद्वितीय” उपनाम किसने दी? अंकित जी: अद्वितीय उपनाम छत्तीसगढ़ शब्द साप्ताहिक पत्रिका के संपादक श्री अवधेश अग्रवाल ने दिया है जिसे बाद में कलम की सुगंध संस्था ने भी अद्वितीय उपनाम के नाम से प्रमाण पत्र प्रदान किया है ।
मनीभाई: आप की शिक्षा कहां तक हुई है ? अंकित जी: एम.ए. की शिक्षा पूर्ण हो चुकी है। हिंदी साहित्य में नेट क्वालीफाई हूं ।
मनीभाई : हमें आपके शौक के बारे में बताइए? अंकित जी: मेरे शौक कैरम और बैडमिंटन खेलना है इसके अतिरिक्त मुझे रोचक उपन्यास पढ़ना अच्छा लगता है ।
मनीभाई: महज 23 वर्ष की उम्र में आपकी ऐसी क्या उपलब्धि रही जो आपको गौरवान्वित महसूस कराते हैं ? अंकित जी: वर्ष 2011 में रामचंडी पर्व के उपलक्ष्य में फूलझर समाज से तत्कालीन शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर साहू जी ने रजत पदक देकर सम्मानित किया। मैंने प्रांत स्तर पर कला संकाय के प्राण्वीय सूची में स्थान बनाया था ।और मेरी दूसरी उपलब्धि डिग्री के रूप में नेट को ही मानता हूं चूंकि मैंने तत्कालीन समय में छत्तीसगढ़ राज्य में शीर्षस्थ स्थान प्राप्त किया था। इसके अलावा, रामचण्डी महाविद्यालय की ओर से सबसे कम उम्र का युवा लेखक का पुरस्कार 2016 में मिला। और अभी अभी बाबू बालमुकुंद गुप्त सम्मान अर्णव कलश एशोसिएशन हरियाणा के द्वारा मिला।
मनीभाई: अपने इस युवा उम्र में आपकी सपना क्या है? अंकित जी: मेरा सपना धन प्रतिष्ठा पाने की नहीं नहीं है ।वर्तमान युवाओं में जो हिंदी भाषा के प्रति दुराग्रह और अरुचि है उनके प्रति हिंदी भाषा के रुचि जागृत करना। हिंदी अध्यापन में एक नया मुकाम हासिल करना चाहता हूं ।
मनीभाई: प्यार, पैसा ,परिवार और प्रसिद्धि में किसे महत्व देते हैं ? अंकित जी: पहली प्राथमिकता परिवार को देना चाहूंगा ।बिना परिवार के प्यार संभव ही नहीं । परिवार के बाद प्यार को रखूँगा। चूंकि प्यार के बल से दुनिया टिकी है । उसके पश्चात प्रतिष्ठा , फिर अंत में पैसा।
मनीभाई: वर्तमान साहित्य से आपकी अपेक्षा क्या है? अंकित जी: संक्रमणकालीन परिस्थिति में साहित्य जिस दिशा में जा रहा है वहाँ प्रयोगवाद का लक्ष्य संदेश पूर्ण होना चाहिए ।मूल भाव को छोड़े को नहीं । युवाओं को प्रेरित करते हुए उनका पालन पोषण , संवर्धन करते हुए उन्हें दिशा-निर्देशन प्रदान करे।
मनीभाई: आपके पसंदीदा लेखक कौन हैं? अंकित जी: मेरे पसंदीदा लेखक अंग्रेजी उपन्यासकार श्री चेतन भगत जी हैं । उनकी शैली में सरलता, सटीकता और आगमनात्मक है ।
मनीभाई: आपके पसंदीदा उपन्यास कौन-कौन से हैं? अंकित जी: द थ्री मिस्टेक ऑफ़ माय लाइफ, फाइव पॉइंट समवन , टू स्टेट आदि।
मनीभाई: अंकित जी! आप अपने जीवन का आदर्श किसे मानते हैं? अंकित जी:मैं अपना आदर्श, शासकीय महाविद्यालय बसना के हिन्दी साहित्य के सहायक प्राध्यापक आदरणीय नंदकिशोर प्रधान को मानता हूँ , वो रिश्ते में मेरे जीजा जी भी हैं।वो स्वभाव से अत्यन्त सरल और जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति हैं ।वे सदैव मेरे सहयोग व मार्गदर्शन हेतु तत्पर होते हैं।उन्होंने कभी किसी कार्य को तुच्छ नहीं माना। संपन्न कुल में जन्म होने के बावजूद उन्होंने चित्रकारी कला से अपनी स्वयं की पहचान बनाया।
मनीभाई: आपको लेखन के प्रति रुझान कब से पैदा हुआ ? अंकित जी: 2007 में जब मैं हाई स्कूल में था ।वहां प्रतिस्पर्धा आयोजन किया था। ढाई मिनट की तत्कालीन भाषण में ” मद्यपान तथा नशे की लत किसी भी परिवार की स्थिति को झकझोर कर रख देती है ” और वाद विवाद में ” विज्ञान वरदान या अभिशाप” टापिक था। उस समय नवमी का छात्र होते हुए भी पूरे विद्यालय में वाद-विवाद में प्रथम और तत्कालीन भाषण में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। तब से अभिव्यक्ति शैली और साहित्य के प्रति मेरा मेरा रुझान शुरू हुआ। इसके अलावा, मेरे दादाजी समाचार पत्र में ऐसे आंचलिक व्यक्तियों के खबर जिन्होंने कोई विशेष काम किया हो , उनके बारे में पढ़कर खुश होते थे ।यह देख मुझे प्रेरणा मिली और इच्छा थी कि मेरे दादाजी मेरा नाम अखबार में पढ़े जिससे वे मुझ पर गर्व महसूस कर सके।हालांकि मुझे जीवन भर इस बात का मलाल रहेगा कि उनकी मृत्यु के उपरांत ही लेखन कार्य प्रारंभ कर पाया।
मनीभाई: कलम की सुगंध के साहित्यकारों से क्या अपेक्षा रखते हैं ? अंकित जी: कलम की सुगंध के साहित्यकार मुझसे हर मामले में अनुभवी हैं फिर भीे अपेक्षा रखता हूं कि वे रचना क्वालिटी पर ध्यान दें ना कि क्वांटिटी पर। आदरणीया सरला सिंह जी , मंजू बंसल जी, श्री नवल पाल प्रभाकर जी ,संजय कौशिक”विज्ञात” जी अनीता रानी जी, मनीलाल पटेल जी, मसखरे जी, अनंतराम चौबे जी और अन्य सभी रचनाकार अपनी रचना के दम पर समाज को संदेश देते रहे। कहीं भी अश्लीलत्व या काव्यदोष ना होने पाये।
मनीभाई: आप अपने पाठक को क्या संदेश देना चाहते हैं ? अंकित जी: जब कभी मेरी रचना या आलेख पढ़ते हैं तो उसे एक मित्र या हितैषी के रूप में न देखते हुए तटस्थ पाठक के रूप में समालोचना करें ।