बाल भिक्षुक -आशीष कुमार

प्रस्तुत हिंदी कविता का शीर्षक "बाल भिक्षुक" है जोकि आशीष कुमार मोहनिया, कैमुर, बिहार की रचना है. इसे वर्तमान समाज में दीन हीन अनाथ बच्चों की दयनीय स्थिति को ध्यान में रखकर लिखा गया है जिनका जीवन बसर आज भी मंदिर की सीढ़ियों पर या फिर हाट बाजार में भीख मांग कर होता है.

बाल भिक्षुक -आशीष कुमार

चीथड़ों में लिपटे
डरे सहमे, पड़े
मंदिर की सीढ़ियों पर

तन सपाट
ज्यों मात्र
एक अस्थि पिंजर

कृशकाय नन्हे-मुन्ने
हाथ फैलाए
सिहर सिहर

देने वाले दाता राम
बोल पड़े – कांपते अधर
नगर सेठ को देख कर

एक पल निहारा
फटकारा दुत्कारा
किया तितर-बितर

परिक्रमा चल रही
अंदर-बाहर
नयन टिके आस में
अपने-अपने भगवान पर

जूठे प्रसाद के दोने
ऐसे चुनते रह रह कर
मिल जाए खाने को कुछ
शायद उनमें बचकर

काया पलट जाती
जिन के दर पर
चीथड़ों में लिपटे
डरे सहमे, पड़े उन्हीं
मंदिर की सीढ़ियों पर

वेदना हरते उनकी
देकर उनके कर पर
भगवान उनके वह हैं
मिलते जो सीढ़ियों पर

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