बेवफ़ाई पर ग़ज़ल

क्या शिकायत करें जब वफ़ा ही नहीं
फासले बढ़ रहे अब ख़ता ही नहीं।
क्यूं उदासी यहाँ घेर डाला हमें
रोशनी दिल जिगर में हुआ ही नहीं।
गर्दिशों में फँसी नाव मेरी यहाँ
बस धुँआ ही रहा मैं जला ही नहीं ।
आरजू थी चले हमसफ़र बनके हम
दर्द इतना बढ़ा की दुआ ही नहीं ।
आईना सामने रख लिया है सनम
अब दीदार को दिल डटा ही नहीं ।
पूछते लोग हैं क्या हुआ कुछ बता
जानलो फूल अब तक खिला ही नहीं ।
ताजगी सब बिगड़ने लगी उम्र की
अब मुहब्बत भरी वो क़ज़ा ही नहीं ।
कुछ क़दम में सफ़र का पता चल गया
ज़ख्म ऐसा दिया की सजा ही नहीं ।
कल मिली थी खुशी शुक्रिया आज तक
नाम लेके जले वो शमा ही नहीं ।