उपदेश पर कविता-मनोज बाथरे
उपदेश पर कविता सोच रहें हैं किहम कुछ उपदेशदे सबकोपर कैसेक्या हमारा उपदेशकोई शिरोधार्य करेगाक्योंकि पर उपदेशदेने से पहलेहमें स्वयं उनकोअपनाना होगातब कहीं जाकरउपदेश कीसार्थकता सफल होगी।। Post Views: 51
उपदेश पर कविता सोच रहें हैं किहम कुछ उपदेशदे सबकोपर कैसेक्या हमारा उपदेशकोई शिरोधार्य करेगाक्योंकि पर उपदेशदेने से पहलेहमें स्वयं उनकोअपनाना होगातब कहीं जाकरउपदेश कीसार्थकता सफल होगी।। Post Views: 51
आनंद पर कविता मुझे है पूरा विश्वासनहीं है असली आनंदमठों-आश्रमों वअन्य धर्म-स्थलों में इन सब के प्रभारीलालायित हैंलोकसभा-राज्यसभाया फिर विधानसभा मेंजाने को मुझे है पूरा विश्वासअसली आनंदलोकसभा-राज्यसभाया फिर विधानसभामें ही है इसलिए हीयोगी, साध्वी वअन्य मठाधीश हैं टिकटार्थी संसद और…
लिखना पर कविता क्या आप कविता लिखना चाहते हैं ?यदि हाँ तो दो विकल्प है आपके पास पहला विकल्प यह कि–उनके लिए कविताएं लिखनाएक बड़ी चुनौती लेना हैइसमें कठिन संघर्ष और खतरों के अंदेशे भी हैं बहुत सारे दूसरा विकल्प…
बेपरवाह लोग पर कविता ये उन लोगों की बातें हैंजो लॉकडाउन,कर्फ़्यू, धारा-144जैसे बंदिशों से बिलकुल बेपरवाह हैं जो हजारों की तादात मेंकभी आनन्द विहार बस स्टेंड दिल्लीमेंयकायक जुट जाते हैंतो कभी बांद्रा रेल्वे स्टेशन मुम्बई मेंअचानक इकट्ठे हो जाते हैं…
इंसान पर कविता आदिकाल में मानवनहीं था क्लीन-शेवडनहीं करता था कंघीलगता होगा जटाओं मेंभयावह-असभ्यलेकिन वह थाकहीं अधिक सभ्यआज के क्लीन-शेवडफ्रैंचकट या कंघी किएइंसानों से नहीं था वहव्याभिचार में संलिप्तनहीं था वह भ्रष्टाचारीनहीं करता था कालाबाजारीमुक्त था जाति-धर्म सेमुक्त था गोत्र-विवादों…
काम बोलता है पर कविता वह बचपन से हीकुछ करने से पहलेअपने आसपास के लोगों सेबार-बार पूछता था…यह कर लूं ? …वह कर लूं ? लोग उन्हें हर बारचुप करा देते थेमाँ से पूछा-पिता से पूछादादा-दादी और भाई-बहनों से पूछापूछा…
मानसिकता पर कविता आज सब कुछ बदल चुका हैमसलन खान-पान,वेषभूषा,रहन-सहन औरकुछ-कुछ भाषा और बोली भी आज समाज की पुरानी विसंगतियां, पुराने अंधविश्वासऔर पुरानी रूढ़ियाँलगभग गुज़रे ज़माने की बात हो गई हैआज बदले हुए इस युग में-समाज मेंअब वे बिलकुल भी…
जलियांवाला बाग की याद में कविता जलियांवाला बाग के अमर शहीदों को सलाम।अमर कुर्बानी का पावन अमृतसर शुभ धाम।।तड़ातड़ चली थी निहत्थों पर अनगिनत गोलियां।कसूर था बस बोल रहे थे इंकलाब की बोलियाँ।।जनरल डायर की बर्बरता की चली थी अंधाधुंध…
धीरे धीरे पर कविता बिखरती हुई जिंदगीवीरान सी राहेंसमय गुजर रहा हैधीरे धीरेहम अपने अस्तित्व कीतलाश मेंनिकल पड़े उनराहों परमन विचलित हैउदास हैफिर भी कर रहे हैंमंजिलें तलाश हमधीरे धीरे Post Views: 42
ख्याल पर कविता पहली रोटीगाय को दीअंतिम रोटी कुत्ते कोकिड़नाल कोसतनजा भी डाल आयामछलियों कोआटा भी खिलायाश्राद्ध में कौवों को भीभौज करायानाग पंचमी परनाग को भीदूध पिलायाभुखमरी के शिकारवंचितों काख्याल न आयानिवाले केअभाव में जिन्होंनेजीवन गंवाया –विनोद सिल्ला© Post Views:…