Category हिंदी कविता

लालसा पर कविता – पूनम दुबे

लालसा पर कविता जो कभी खत्म ना हो,रोज एक के बाद एक,नई इच्छाओं का जन्म होना,पाने की धुन बनी रहती है, लालसा सबको खुश रखने तक,सपनों को पूरा करने तक,कब चैन की सांस लेंगे,अंधेरों से उजालों तक,कभी तो चैन मिलेगा…

संतोषी महंत की नवगीत – संतोषी महंत

संतोषी महंत की नवगीत हंसकर जीवन​-अथ लिख दें या रोकर अंजाम लिखें।जीवन  की  पीड़ाओं  के औ कितने आयाम लिखें।। धाराओं ने सदा संभालातटबंधों ने रार किया।बचकर कांटों से निकले तोफूलों ने ही वार किया।।बंटवारा लिख दें किस्मत काया खुद का…

प्यार तुम ही से करता हूँ – कृष्ण सैनी

प्यार तुम ही से करता हूँ – कृष्ण सैनी विरह को पीकर में,आज इक इंसाफ करता हु।प्यार तुम ही से करता था,प्यार तुम ही से करता हु। सोचा इत्तला कर दूं,अब भी तुझपे  ही मरता हु।प्यार तुम ही से करता…

धूप पर कविता – पुष्पा शर्मा

धूप पर कविता – पुष्पा शर्मा कोहरे की गाढी ओढनीहिमांकित रजत किनारी लगी।ठिठुरन का संग साथ लिया सोई  रजनी अंधकार पगी। ऊषा के अनुपम रंगों नेसजाई अनुपम रंगोली,अवगुण्ठन हटा होले सेधूप आई ,ले किरण टोली। इठलाती बलखाती सी वोसब ओर…

छत्तीसगढ़ पर कविता – पंकज

छत्तीसगढ़ महिमा – पंकज छत्तीसगढ़  महतारी मोर छत्तीसगढ़  महतारी।तोर  कोरा म  रहिथे दाई  दाता अउ भिखारी।उत्तर म  सरगुजा  हावे स्वर्ग  समान  कहाथे।दक्षिण म केशकाल के घाटी सबके मन ल मोहाथे।पश्चिम  म  मैकल  पर्वत  हे बैगा  मन के डेरा।अउ पूरब  म…

प्रेमिका के लिए कविता – नेहा चाचरा बहल

प्रेमिका के लिए कविता – न जाने क्यों आज तुम्हे देखने का बड़ा मन हैलिख कर जज़्बात खत में तुम्हे भेजने का बड़ा मन है हाथों में हाथ डाले हम तुम भी घूमते थे फ़ुरसत के उन पलों को ढूंढने…

परिवर्तन पर कविता – पुष्पा शर्मा

परिवर्तन पर कविता – पुष्पा शर्मा परिवर्तन अवश्यंभावी है,  क्योंकि यह सृष्टि  का नियम है।नित नये अनुसंधान का क्रम है।सतत श्रम शील मानव का श्रम है। परिवर्तन   ज्ञान, विज्ञान मेंपरिवर्तन मौसम के बदलाव मेंसंसाधनों  की उपलब्धियों की होड़ में।परिवर्तन परिवार मेंसमाज…

मानव जीवन पर कविता – सुधा शर्मा

मानव जीवन मिल पाता है कभी कभी – सुधा शर्मा जीवन में ऐसा भी वक्त आता है कभी कभीकोई भीड़ में तन्हा हो जाता है कभी कभी सपनों के घरौंदे सारे बिखर जाते हैं स्मृतियों का इक महल बन जाता…

जीवन पर कविता – सुधा शर्मा

जीवन में रंग भरने दो – सुधा शर्मा कैसे हो जाता है मन  ऐसी क्रूरता करने को? अपना ही लहू बहा रहे जाने किस सुख वरणे को ? आधुनिक प्रवाह में बहे चाहें जीवन सुख गहे  वासनाओं के ज्वार में…

तू रोना सीख – निमाई प्रधान

तू रोना सीख – निमाई प्रधान तू !रोना सीख । अपनी कुंठाओं कोबहा दे…शांति की जलधि मेंअपनी महत्त्वाकांक्षाओं कोतू खोना सीख ।तू ! रोना सीख ।। कितने तुझसे रूठे ?तेरी बेरुख़ी से…कितनों के दिल टूटे ?किनके भरोसे पर खरा न…