छीन लिए सब गड़े दफीने
धरा गाल हँसते हम देखे,
जल कूपों मय चूनर धानी।
घाव धरा तन फटी बिवाई
मानस अधम सोच क्यूँ ठानी।।
शस्य श्यामला कहते जिसको
पैंड पैंड पर पेड़ तलाई
शेर दहाड़ें, चीतल हाथी
जंगल थी मंगल तरुणाई
ग्रहण लगा या नजर किसी की,
नूर गये माँ लगे रुहानी
धरा गाल हँसते ……….।।
वसुधा को माता कह कह कर
छीन लिए सब गड़े दफीने
श्रम के साये ढूँढ रहे अब
छलनी हो नद पर्वत सीने
कैसे कब तक सह पाएगी
धरा मनुज की यह मनमानी
धरा गाल हँसते…….,।।
गला घोटते सरिताओं का
बाँध बना जल कैद किया है
कंकर रेत निकाल गर्भ से
पर्वत पर्वत चीर दिया है
धरा रक्त को चूस बहाया
रहा नही आँखों में पानी
धरा गाल हँसते….।।
तन के सब शृंगार उतारे
वन तरु वनज वन्य भी नाशे
ताप कार्बन भूत जिन्द सम
शाह बने वसुधा पर हासे
कंकरीट के जंगल हँसते
लिखते भू पर नाश कहानी
धरा गाल हँसते …..।।
घाव बने नासूर हजारों
फोड़े रोम रोम को छेदे
धूम्र प्रदूषण राकेटों से
ओजोन कवच मानव भेदे
घावों पर मल्हम लगवाए,
कौन पूत भू हित सिर दानी।
धरा गाल हँसते ……….।।
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बाबू लाल शर्मा, विज्ञ
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान