फिर से लौट आएगी खूबसूरत दुनियां
पिछले कुछ दिनों से
मैंने नहीं देखा है रोशनी वाला सूरज
ताज़गी वाली हवा
खुला आसमान
खिले हुए फूल
हँसते-खिलखिलाते लोग
एक-एक दिन
देह में होने का ख़ैर मनाती आ रही है
देह के किसी कोने में
डरी-सहमी एक आत्मा
किसी भी तरह जीवन बचाने की जद्दोजेहद में
उत्थान और विकास जैसे
जीवन के सारे जद्दोजहद
भूलने लगे हैं लोग
पढ़ने-लिखने
चार पैसा कमाने
ख़ाली वक्त में राजनीति और
देश-विदेश की बातें करने
जैसे सब बातें भूलने लगे हैं लोग
दुनियाँ में शामिल
खूबसूरत रंग-विरंगे शोरगुल और हलचल
धीरे-धीरे तब्दील होते जा रहा है
एक भयानक वीराने में
तमाम ख़बरों से भरी
विविध रंगी यह दुनियाँ
सिमटकर थम गई है
केवल एक ही ख़बर पर
भावनाओं के स्रोतों से
भावनाएँ फूट नहीं रही
खूबसूरत भावनाओं से भरा हृदय
अब किसी अनजान भय से
भरा-भरा लगता है
पिछले कुछ दिनों से
शब्दों और कविताओं से
उतर नहीं रहे हैं कोई अर्थ
पर इतनी उम्मीद अब भी बाकी है
कि शब्दों और कविताओं के ज़रिए ही
फिर से लौट आएगी खूबसूरत दुनियाँ।
— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479