गुण की पहचान पर कविता
वन में दो पक्षी, दिख रहे थे एक समान।
कौन हंस है कौन बगुला, कौन करे पहचान।
बगुला बड़ा था घमंडी, कहता मेरे गुण महान।
तेज उड़ सकता हूं तुझसे, कह रहा था सीना तान।
झगड़ा सुनकर कौवा आया, श्रेष्ठता के लिए करो उड़ान।
नम्र भाव से होकर हंस तैयार, उड़ चला दूर आसमान।
थक गया जब बगुला, बदली अपनी टेढ़ी चाल।
नाटक किया कमजोरी का, पहना था वह शेर की खाल।
दोनों पहुंचे मोर के पास, लेकर न्याय की आस।
गजब तरीका सुझाया उसने, पता चलेगा उनकी खास।
मंगवाया पानी मिला दूध मोर ने, रख दी सामने दो कटोरी।
बगुला पी गया पूरा दूध-पानी, हंस दूध पीकर पानी को छोड़ी।
शर्मिंदा हुआ बगुला, माफी मांग किया नमस्कार।
हो गया पहचान सत्य की, सदा होती है जय जय कार।
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