Category: हिंदी कविता

  • जलती धरती/चन्दा डांगी

    जलती धरती/चन्दा डांगी

    जलती धरती/चन्दा डांगी

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI

    बचपन मे हमने देखी
    हर पहाड़ी हरी भरी
    नज़र आता नही
    पत्थर कोई वहाँ
    कटते गये जब पेड़
    धरती होने लगी नग्न सिलसिला ये चलता रहा
    अब पत्थर नज़र आते
    पेड़ो का पता नहीं
    लाते थे हम सामान
    कपड़े की थैलियों मे
    अब पाॅलीथीन से
    ये धरती पटी पड़ी
    नल नहीं थे घरों मे
    पानी का मोल समझते थे
    घर घर लगे नलकूप
    कोंख धरती की सुखा डाली
    पेड़ है नही, अम्बर बरसता नही
    सुरज के ताप से जलती धरती हमारी ।

    चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर
    मंदसौर मध्यप्रदेश

  • जलती धरती /हरि प्रकाश गुप्ता सरल

    जलती धरती /हरि प्रकाश गुप्ता सरल

    जलती धरती /हरि प्रकाश गुप्ता सरल

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI

    धरती जलती है तो जलने दीजिए।
    पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।
    भले ही जल जाए सभी कुछ यहां
    पर पर्यावरण की न चिंता कीजिए।
    कुछ तो रहम करो भविष्य के बारे में
    अपने लिए न सही आगे की सोचिए।।
    न रहेंगे जंगल और न रहेगी शीतलता
    हरियाली धरा में न दिख पाएगी।
    न कुछ फिर बचेगा धरा पर
    धरती मां भी कुछ न कर पाएगी।।
    सभी कुछ बर्बाद हो जाएगा
    बीमारियों का बोलबाला छा जाएगा।
    यहां से वहां तक धरा में अंधेरा ही अंधेरा हो जाएगा।।
    धरती जलती है तो जलने दीजिए।
    पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।
    धरती  जलने से  बचाव भाईयो
    सभल सको तो सभल जाओ।
    हम तो साथ तेरे न कबसे खड़े
    जरा तुम भी तो आगे मेरे साथ आओ।।
    सूर्य की किरणों की गर्मी को न सह पाएंगे।
    बिना मौत आए सभी मौत को गले लगाएंगे।।
    समझा रही प्यारी – प्यारी हरियाली युक्त हमारी  धरती माता ।
    पर समझ कहां किसी को  समझ किसी को भी क्यों नहीं आता।।
    जहां खाली जगह पाओ
    वहां वृक्ष अवश्य लगाओ।
    हरियाली धरती पर और हरे भरे जंगल हमारे।
    सभी को लगते कितने प्यारे – प्यारे।।
    जल भी होगा और स्वच्छ वातावरण भी होगा।
    स्वस्थ सभी रहेंगे न कोई रोगी होगा।।
    स्वच्छ हवाओं का झरोखा आता रहेगा।
    दिल अपना सुबह-शाम घूमने को कहेगा।।
    पार्कों और बागों की खूबसूरती बढ़ेगी।
    प्रकृति न जाने कितनी खूबसूरत दिखेगी।।
    फूल भी खिलेंगे और फल भी लगेगा ।
    खेतों में सभी के खूब अनाज उगेगा ।।
    धनवान और ऊर्जावान सभी हो जाएंगे।
    धरती भी जलने से  बच जाएगी।।
    नदियों का क्या जलयुक्त रहेंगी
    पहले की तरह बहती रहेंगी।।
    पर्वत हमारे सुंदरता बढ़ाएंगे।
    उन पर भी जब पेड़ उग आएंगे।।
    खाली खाली जंगल घने हो जाएंगे।
    जंगली जानवर खुश हो जाएंगे।।
    फिर न शिकार खोजने गांव और शहर
    जाएंगे।
    प्राणी भी उनके डर से मुक्त हो जाएंगे।।
    धरती जलती है तो जलने दीजिए।
    पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।


    इंजीनियर हरि प्रकाश गुप्ता सरल
    भिलाई छत्तीसगढ़

  • जलती धरती/शिव शंकर पाण्डेय

    जलती धरती/शिव शंकर पाण्डेय

    जलती धरती/शिव शंकर पाण्डेय

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI


    न आग के अंगार से न सूरज के ताप से।।
    धरा जल रही है, पाखंडियों के  पाप से।।
    सृष्टि वृष्टि जल जीवन सूरज।
    नार नदी वन पर्वत सूरज।।
    सूरज आशा सूरज श्वांसा।
    सूर्य बिना सब खत्म तमाशा।
    सूर्य रश्मि से सिंचित भू हम
    जला रहे हैं   खुद  आपसे।
    धरा जल रही है पाखंडियों के पाप से।।
    सूरज ही मेरी जिन्दगी का राज है।

    सूरज हमारे सौरमंडल का ताज है
    भूमि बांट कर गगन को बांटा।
    मानवता पर मारा चांटा।।
    मरी हुई मानवता को भी
    टुकड़ों टुकड़ों में मैं काटा।
    आज मर रहे हैं हम उसी के अभिशाप से।
    धरा जल रही है पाखंडियों के पाप से।

    बम गोली बारूद बनाया
    मानव मानव पर ही चलाया
    एक दूसरे को भय देकर
    मारा काटा और भगाया
    जिसने सारी सृष्टि बनाई
    उसको भी मैंने ही बांटा है खुद अपने आप से।
    धरा जल रही है पाखंडियों के पाप से।।

    वन पर्वत नद नदी उजाड़ा
    प्राणवायु में जहर उतारा।
    होड़ मचाकर हथियारों से
    सुघर सृजन का साज बिगाड़ा।
    सृजनहार भी दुःख का अनुभव
    आज कर रहा आपसे।
    धरा जल रही है पाखंडियों के पाप से।।

    शिव शंकर पाण्डेय यूपी

  • धरती माता /डा. राजेश तिवारी

    धरती माता /डा. राजेश तिवारी

    धरती माता /डा. राजेश तिवारी

    धरती माता /डा. राजेश तिवारी

    धरती मेरी माँ है इसको स्वस्थ और स्वच्छ बनायें ।
    आओ इसकी रक्षा और सुरक्षा का दायित्व उठायें ।।
    ……………………………………………………….

    अवैध और अनैतिकता से इसका खनन जो करते ।
    सोचो इसको दिये घाव जो  कहो वो  कैसे भरते ।।
    इनको हरी भरी रखना है ये रोमावली है वृक्ष लतायें ।

    मृदा प्रदूषति न करना , यह जनता को समझा दो ।
    पन्नी , पोलीथीन आदि को अब ही आग लगा दो । ।
    गोमय खाद गौमूत्र आदि से इसे आओ उर्वरक बनाये ।

    धरती मां हम सब सपूत हैं इसका ध्यान भी धरना ।
    इसकी रक्षा और स्वाभिमान हित जीना है व मरना ।।
    मातृ भूमि को नमन करें हम सब श्रद्धा शीश झुकाये ।


    भूदेवी और श्री देवी को नमन सभी करते हैं लोग ।
    अक्षत चन्दन पुष्प दीप से अर्चन करें लगाते भोग ।।
    आओ अपनी मातृभूमि पर श्रद्धा से सुमन चढाये ।



    डा. राजेश तिवारी ‘मक्खन’
    झांसी उत्तरप्रदेश

  • जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    जलती धरती/नीरज अग्रवाल



    पर्यावरण और वन उपवन हैं।
    जल थल जंगल हमारे जीवन हैं।
    जलती धरती बढ़ता तापमान हैं।
    मानव जीवन में आज  संकट  हैं।
    हम सभी को सहयोग जो करना हैं।
    जलती धरती तपता सूरज कहता हैं।
    वसुंधरा को हरा भरा हमको करना हैं।
    मानव जीवन में कुदरत के रंग भरने हैंं।
    आज  हम सभी को प्राकृतिक बनना हैं।
    न सोचो कल का जलती धरती कहतीं हैंं।
    बादल बरसे जलती धरती की प्यास बुझाते हैं।
    हम कदम उठाए जलती धरती को बचाना हैंं।

    नीरज अग्रवाल
    चंदौसी उ.प्र

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI

    जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    सच तो यही जिंदगी कुदरत हैं।
    जलती धरती आकाश गगन हैं।
    हम सभी की सोच समझ हैं।
    हां जलती धरती  सूरज संग हैं।
    खेल हमारे मन भावों में रहते हैं।
    जलती धरतीं मानव जीवन हैं।
    हमारे मन भावों में प्रकृति बसी हैं।
    सच और सोच हमारी अपनी हैं।
    हम सभी जलती धरती के संग हैं।
    आज कल बरसों से हम जीते हैं।
    हां सच जलती धरती रहती हैं।
    हम सब मानव समाज कहते हैं।
    कुदरत और प्रकृति और हम,
    बस जलती धरती रहती हैं।


    नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र