अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचना / डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचना / डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी नारी को जो शक्ति समझता।उसको सबसे ऊपर रखता।।इक नारी में सकल नारियां।भले विवाहित या कुमारियां।। प्रबल दिव्य भाव का सूचक।सारी जगती का संपोषक।।नारी श्रद्धा भव्य स्रोत है।मूल्यवान गतिमान पोत है।। नारी में प्रिय मधुर भावना।अनुपम श्रेष्ठा सभ्य कामना।।सदा काम्य रस शीतल छाया।परम विराट देव सम … Read more

जलती धरती/श्रीमती शशि मित्तल “अमर”

JALATI DHARATI

जलती धरती/श्रीमती शशि मित्तल “अमर” आओ कुछ कर लें प्रयासधरती माँ को बचाना है,दूसरों से नहीं रखें आसस्वयं कदम बढ़ाना है,देख नेक कार्य सब आएं पाससबमें चेतना जगाना है। ईंट कंक्रीट का बिछा कर जालवनों को कर दिया हलालअपनी धरा को बहुत रुलाया है,हजारों पंछियों का था जो बसेराकाट नीड़ उनका उजाड़ा है। कहां से … Read more

जलती धरती/डॉ0 रामबली मिश्र

जलती धरती/डॉ0 रामबली मिश्र

जलती धरती /डॉ0 रामबली मिश्र सूर्य उगलता है अंगारा।जलता सारा जग नित न्यारा।।तपिश बहुत बढ़ गयी आज है।प्रकृति दुखी अतिशय नराज है।। मानव हुआ आज अन्यायी।नहीं रहा अब वह है न्यायी।।जंगल का हत्यारा मानव।शोषणकारी अब है दानव।। नदियों के प्रवाह को रोका।पर्वत की गरिमा को टोका।।विकृत किया प्रकृति की रचना।नित असंतुलित अधिसंरचना।। ओजोन परत फटा … Read more

वेतन पर कविता / स्वपन बोस “बेगाना”

वेतन पर कविता / स्वपन बोस "बेगाना"

वेतन पर कविता कर्म करों फल मिलेगा मेहनत तो महिना भर हों गया, फिर वेतन कब मिलेगा ।सूनों सहाब डालोगे वेतन,समय पर तभी तो फिर कर्म का सुंदर फूल खिलेगा। सूनों सहाब हम कर्मचारियों की कहानी, हमें बस एक तारीख अच्छा लगता है। क्यों की लगभग इसी दिन तक वेतन डलता है, फिर दो पांच … Read more

पतझड़ और बहार/ राजकुमार ‘मसखरे’

पतझड़ और बहार/ राजकुमार 'मसखरे'

पतझड़ और बहार/ राजकुमार ‘मसखरे’ ये  घुप अंधेरी  रातों मेंधरा को  जगमग करने दीवाली आती जो जगमगाती ! सूखते,झरते पतझड़ मेंशुष्क  जीवन  को रंगनेवो होली में राग बसंती गाती  ! झंझावत, सैलाब लिएजब  पावस दे दस्तक,तब फुहारें मंद-मंद मुस्काती ! कुदरत हमें सिखाता हैबिना कसक व टीस केवो ख़ुशी समझ नही आता है ! जो … Read more