मुझे अभी नहीं सोना है
मुझे अभी नहीं सोना है।
जब तक थक कर चूर न हो जाऊँ,
भावनाओं का बोझ ढोना है।
मुझे अभी नहीं सोना है।
ख्वाब जब तक न हों पूरे,
मैंने ही बंदिशें लगायीं खुद पे
ख्वाब देखने पर।।
घटाटोप अँधेरा पर
ये झींगुर के शोर
कहते हैं कुछ तो ।
शायद बुझाने को कहते
आँखों के दीये।
पर इन कूप्पियों में तेल बाकी है,
इन्हें अभी प्रज्वलित होना है ।
मुझे अभी नहीं सोना है
मनो-मस्तिष्क पर
ये उठती-गिरती अनवरत लहरें,
उस पर डगमगाती
मेरी कागज की नाव।
लेखनी का सहारा ले
मुझे पार करनी है ये मझधार।
जब तक ठहर ना जातीं
या मिल न जाता किनारा
श्वासें रोक खुद को डुबोना है।
मुझे अभी नहीं सोना है।
मुझे न्याय करना है
अपनी अर्जित धारणाओं के साथ।
परखना है पूर्व मान्यताओं को।
नित नूतन प्रयोग कर
अनुभवों की लेनी है परीक्षा।
भीड़ में स्वयं को पाना
और फिर स्वयं को खोना है।
मुझे अभी नहीं सोना है।
मनीभाई नवरत्न, छत्तीसगढ़
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद