Category: हिंदी कविता

  • नहीँ बताई

    नहीँ बताई

    समाचारों में
    अमितभ बच्चन की
    लम्बाई भी बताई

    अटल बिहारी वाजपेयी की
    कविताई भी बताई

    टाटा, बिड़ला, अम्बानी की
    कमाई भी बताई

    मोदी की लाखों के सूट की
    सिलाई भी बताई

    नेहरु के कपड़ों की
    धुलाई भी बताई

    संजय दत्त की जेल से
    रिहाई भी बताई

    पक्ष-विपक्ष की संसद में
    खिंचाई भी बताई

    परन्तु गरीबों की भुखमरी से
    लड़ाई नहीं बताई

    -विनोद सिल्ला©
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  • भगवान परशुराम पर कविता

    भगवान परशुराम पर कविता

    त्रेतायुग के अयाचक ब्राह्मण
    भगवान विष्णु के छठे अंशावतार
    तुझे पाकर हे भार्गव
    धन्य हुआ संसार ।।
    भृगुवंश की माता रेणुका
    पिता जिनके जमदग्नि
    साक्षात प्रभु हे गुरू श्रेष्ठ
    हे हवन कुंड की अग्नि ।।
    विधुदभि नाम के परशुधारी
    हे भृगुश्रेष्ठ अमित बलशाली
    सृष्टि के हरेक जीवों का हे भगवन
    करते हो रखवाली ।।
    भृगुऋषि के महान शिष्य
    हे पिता के आज्ञाकारी
    महाकाल भी जिनके तेज को जाने
    तुम हो महान ब्रह्माचारी ।।
    शस्त्र विद्या के महान गुरु
    दिव्यासत्र के अद्वितीय ज्ञानी
    महान शिष्य जिनके भिष्म
    द्रोण और कर्ण जैसे महा दानी।।
    धरनी पर जब पाप बढ़ा
    दुष्टो ने जब पैर पसारा
    21 बार फरसा से हे भगवन
    दुष्टो को  संहारा ।।
    प्रकृति के महान  प्रेमि
    हे जीवों के पालक
    है सृष्टि के जितने जीव प्रभु
    सब हैं तेरे बालक ।।
    महेन्द्रगिरि निवास स्थान हैं जिनके
    हे ऋषिवीर महान संन्यासी
    अत्याचार बढ रहा है भगवन
    फरसा तेरे खुन की प्यासी ।।
    पाप बढेगे जब धरनी पर
    आयेंगे प्रभु परशुराम
    पापियों का अंत कर फरसा से
    देंगे जगत को सत्य का प्रमाण ।।
    ⛏बाँके बिहारी बरबीगहीया ⛏
    मोबाइल नंबर- 6202401104
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  • पालन अपना कर्म करो

    पालन अपना कर्म करो

    पाया जीवन है मनुष्य का,पालन अपना कर्म करो ।
    जीव जंतुओं पशु पक्षी पर, व्यहार को अपने नर्म करो ।।
    जल प्रथ्वी से खत्म हो रहा ।
    और पारा बढ़ता गर्मी का ।।
    जीवों पर संकट मंडराए ।
    रहा अंश ना नरमी का ।।
    दया नही आती जीवों पार,कुछ तो थोड़ी शर्म करो ।।
    जीव जंतुओं पशु पक्षी पर, व्यहार को अपने नर्म करो ।।१।। 

    सूखा पड़ा हुआ धरती तल ।
    प्रकृति में अब नही कहीं जल ।।
    देख रहे बिन पक्षी तुम कैसे ।
    सुखमय मधुमय सा अपना कल ।।
    स्थल स्थल हो जल सुविधा,पालन अपना कर्म करो ।।
    जीव जंतुओं पक्षी पर, व्यहार को अपने नर्म करो ।।२।।

    भीषण गर्मी तपता जीवन ।
    नष्ट किया तुमने ही तो वन ।।
    भूल करो स्वीकार तुम अपनी ।
    जगह जगह हो वृक्षारोपण ।।
    चहके गोरैय्या आंगन तो,जल की व्यवस्था पूर्ण करो ।।३।।

    पाया जीवन है मनुष्य का,पालन अपना कर्म करो ।
    जीव जंतुओं पशु पक्षी पर, व्यहार को अपने नर्म करो ।।

    शिवांगी मिश्रा*
    लखीमपुर खीरी
    उत्तर प्रदेश

  • हे सुरूज देंवता अतका झन ततिया

    हे सुरूज देंवता अतका झन ततिया

    हे सुरूज देंवता अतका झन ततिया।
    तोर हाँथ जोरत हँव तोर पाँव परत हँव आगी झन बरसा।।
    चिरई चिरगुन के खोंधरा तिप गे अंड़ा घलो घोलागे।
    नान्हे चिरई उड़े बर सीखिस ड़ेना ओकर भुंजागे।
    रूख राई जम्मो झवांगे अतका झन अगिया।
    हे सुरूज देंवता अतका झन ततिया।
    बेंदरा भालू पानी पिये बर बस्ती भीतर खुसरगे।
    हिरन बिचारी मोर गांव मा कुकुर मन ले हबरगे।
    जिवरा छुटगे खोजत खोजत नदिया नरवा तरिया।।
    हे सुरूज देंवता अतका झन ततिया।
    चील कऊँवा अऊ चमगेदरी पट पट भुईंया मा गिरत हे।
    बिन पानी जंगल के राजा बस्ती भीतरी खुसरत हे।
    पानी पानी पानी के बिन जिनगी हे बिरथा।
    हे सुरूज देंवता अतका झन ततिया।।
    होवत बिहनिया सुरूज देंवता अपन रूप ला देखावत हे।
    गाड़ी वाला साइकिल वाला मुड़ी ला बाँध के आवत हे।
    घाम अऊ लू के मारे जी होगे अधमरिया।।
    हे सुरूज देंवता अतका झन ततिया।
    बरखा दाई एको कन तो तँयहा किरपा करदे।
    अठवरिया मा आके थोरकिन खँचका ड़बरा ला भरदे।
    आबे दाई तभे बाँचही जम्मो झन के जिवरा।।
    हे सुरूज देंवता अतका झन ततिया।
    तोर हाँथ जोरत हँव तोर पाँव परत हँव आगीझन बरसा।।
    हे  सुरूज देंवता अतका झन ततिया।
    केवरा यदु”मीरा”
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  • मुहब्बत में ज़माने का यही दस्तूर होता है

    मुहब्बत में ज़माने का यही दस्तूर होता है

    जिसे चाहो नज़र से वो ही अक्सर दूर होता है
    मुहब्बत में ज़माने का यही दस्तूर होता है
    बुलंदी चाहता पाना हरिक इंसान है लेकिन
    मुकद्दर साथ दे जिसका वही मशहूर होता है ।


    सभी के हाथ उठते हैं इबादत को यहाँ लेकिन
    ख़ुदा को किसका जज़्बा देखिये  मंजूर होता है।
    उलटते ताज शाहों  के यहाँ देखें हैं हमने तो
    अभी से किसलिए तू इस कदर  मग़रूर होता है ।


    हज़ारों रोज़ मरते हैं यहाँ पैदा भी होते हैं
    कभी किसकी कमी से यह जहाँ बेनूर होता है।
    तुम्हें कैसे दिखाई देगी इस घर की उदासी भी
    तुम्हारे आते ही चारों तरफ़ जो नूर होता है।


    अभी से फ़िक्र कर रानी तू उनके बख़्शे जख़्मों की
    इन्हीं ज़ख़्मों से पैदा एक दिन  नासूर होता है।


          जागृति मिश्रा *रानी