Category: हिंदी कविता

  • तोता पर कविता

    तोता पर कविता

    ना पंख है
    ना पिंजरे में कैद,
    फिर भी है तोता ।
    खाता है पीता है,
    रहता है स्वतंत्र,
    हमेशा एक गीत है गाता
    नेता जी की जय हो।
    कर लिया बसेरा
    बगल की कुर्सी पर,
    खाने को जो है मिलता
    मुफ्त का भोजन,
    टूट पड़ता है बेझिझक
    गजब का तोता।

    मानक छत्तीसगढ़िया

  • संतोषी है मधुशाला

    संतोषी है मधुशाला


    संतोषी अँगूर लता है,
    संतोषी साकी बाला।
    संतोषी  पीने  वाला है
    संतोषी है मधुशाला।
    बस्ती -बस्ती चौराहे पर,
    अपनी दुकान खोलने वाले।


    विज्ञापन  के राम  भरोसे,
    अपनी दुकान चलाने वाले।
    जंगल उपवन बाग बगीचे,
    संतोष  दिखाई  देता है।
    डगर अकेली सन्नाटे मे,
    भीड़ जुटाती मधुशाला।

    संतोष  समाई  हाला मे,
    राजा  है  पीने  वाला।
    बस्ती बस्ती डगर डगर का
    शुभचिन्तक है मतवाला।
    दुनिया वाले रोज झगड़ते,
    संसद , ठौर,  ठिकाने  मे।
    प्यास सदा सबकी हर लेती,
    सुलह कराती  मधुशाला।।
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    उमाशंकर शुक्ल’दर्पण

  • अविनाश तिवारी के दोहे

    अविनाश तिवारी के दोहे

    अविनाश तिवारी के दोहे


    घड़ी

    घड़ी घड़ी का फेर है,
        मन में राखो धीर।
    राजा रंक बन जात है,
       बदल जात तकदीर।।

    प्रेम

    प्रेम न सौदा मानिये,
        आतम  सुने पुकार।
    हरि मिलत हैं प्रीत भजे
    मति समझो व्यापार।।

    दान

    देवन तो करतार है,
      मत कर रे अभिमान।
    दान करत ही धन बढ़ी,
       व्यरथ पदारथ जान।।

    व्यवहार

    कटुता कभू न राखिये,
       मीठा राखो व्यवहार
    इक दिन सबे जाना है,
        भवसागर के पार।।

    अविनाश तिवारी


  • उन बातों को मत छेड़िये

    उन बातों को मत छेड़िये

    सारी बातें बीत गई उन बातों को मत छेड़िये,
    जो तुम बिन गुजरी उन रातों को मत छेड़िये।

    तुम मिलो न मिलो हमसे रूबरू होकर कभी,
    लाखो शिकायते हैं उन हालातों को मत छेड़िये।

    एक नजर भर देखा था हमने  तुमको यूँही कही,
    छूकर जो तुम्हें उठे उन ख्यालातों को मत छेड़िये।

    अकेले ही सफर करना हैं अब तेरी यादों से,
    प्रीत की जो मिली उन सौगातों को मत छेड़िये।

    मेरी धड़कनों की चाहत बस इतनी सी रही,
    जीने के लिए “इंदु”दिल के तारों को मत छेड़िये।

    रश्मि शर्मा “इन्दु”

  • चेहरे पर कविता

    चेहरे पर कविता

    सुनो
    कुछ चेहरों
    के भावों को पढ़ना
    चाहती हूॅ
    पर नाकाम रहती हूॅ शायद
    खिलखिलाती धूप सी
    हॅसी उनकी
    झुर्रियों की सुन्दरता
    बढ़ते हैं
    पढ़ना चाहती हूॅ
    उस सुन्दरता के पीछे
    एक किताब
    जिसमें कितने
    गमों के अफसाने लिखे हैं
    ना जाने कितने अरमान दबे हैं
    ना जाने कितने फाँके लिखे हैं चेहरा जो अनुभव के तेज
    से प्रकाशित सा दिखता है
    उस तेज के पीछे छिपी
    रोजी के पीछे के संघर्षो
    को पढ़ना चाहती हूॅ
    पर नाकाम रहती हूॅ
    चंद सिक्को के बचाने
    के लिए अंतस की
    चाह दबाने वाले
    चेहरे का तेज
    बार बार कपड़ो पर
    रफू करके भरते छेदों
    के पीछे की कांति
    जो दिखती नही
    नकली बनावटी
    चेहरे पर
    पर हाॅ अहसास
    होता है अब
    जब उस संघर्ष से
    गुजरती हूॅ आज
    रफ्ता रफ्ता मैं
    देखती हूॅ उन
    झुर्रियों की लकीरे
    हर लकीर एक कहानी
    बयां करती है कि
    हमारी खुशी के लिए
    पालक हमारे कितनी
    कुर्बानी देते
    उफ तक ना करते
    सब हॅसकर सहते
    ताकि हमारे चेहरे
    खिलते रहे हमेशा
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    18/12/2018
    स्नेहलता ‘स्नेह’सरगुजा छ0ग0