जलती धरती/चन्दा डांगी
![JALATI DHARATI](https://kavitabahar.com/wp-content/uploads/2024/03/JALATI-DHARATI.jpeg)
बचपन मे हमने देखी
हर पहाड़ी हरी भरी
नज़र आता नही
पत्थर कोई वहाँ
कटते गये जब पेड़
धरती होने लगी नग्न सिलसिला ये चलता रहा
अब पत्थर नज़र आते
पेड़ो का पता नहीं
लाते थे हम सामान
कपड़े की थैलियों मे
अब पाॅलीथीन से
ये धरती पटी पड़ी
नल नहीं थे घरों मे
पानी का मोल समझते थे
घर घर लगे नलकूप
कोंख धरती की सुखा डाली
पेड़ है नही, अम्बर बरसता नही
सुरज के ताप से जलती धरती हमारी ।
चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर
मंदसौर मध्यप्रदेश