जीवन का शाश्वत सत्य

जीवन का शाश्वत सत्य

भोर की बेला हुई, दिनकर की पलकें खुली।
इंतज़ार ख़त्म हुआ, सौगात लेकर आई नयी सुबह।।
धीरे धीरे आँखे खोल रहा,स्वर्ण किरणें बिखेर रहा।
नयी सुबह प्रारंभ हुई, रात्रि निशा विभोर हुई।।


कल जो जा रहा पश्चिम में था,आज फिर पूरब में है।
नयी रोशनी नयी किरण आज हमारे जीवन में है।।
दे रहा संकेत हमें, रोज नयी सुबह जीवन की करो।
रोज जियो रोज मरो ,जीवन का पूरा आनंद लो।।


दोपहर हुई सूरज चढ़ा, तेज को श्रृंगार कर।
यौवन आया अभिमान बरसे,जीवन के सच को भुलाकर।।
साँझ हुई सूरज ढला, बुढ़ापे का पश्चाताप क्यों।
जवानी के कर्मों का, आंसूओं से हिसाब दो।।


यौवन हमारा ढल जायेगा, सूरज के नित ताप सा।
करते रहेंगे बुढ़ापे में, सिर धुन पश्चाताप हम।।
प्रकृति हमें सिखाती है, सीख लेना चाहिए।
जीवन के शाश्वत सत्य को मान ही लेना चाहिए।।


✒रोहित शर्मा, छत्तीसगढ़

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