काग चील हँस रहे

काग चील हँस रहे

kavita

गीत ढाल बन रहे
.स्वप्न साज ढह गए
. पीत वर्ण पेड़ हो
. झूलते विरह गये

देश देश की खबर
. काग चील हँस रहे
. मौन कोकिला हुई
. काल ब्याल डस रहे
. लाश लापता सभी
मेघ शोक कह गये।
पीत…………….।।

शून्य पंथ ताकते
. रीत प्रीत रो पड़ी
. मानवीय भावना
. संग रोग हथकड़ी
. दूरियाँ सहेज ली
धूप ले सुबह गये।
पीत………….।।

खेत में फसल पकी
. ले किसान कब दवा
. तीर विष भरे लिए
. मौन साधती हवा
. होंठ सूख कर स्वयं
अश्रु मीत बह गये।
पीत……………।।

देव स्वर्ग में बसे
. काल दूत डोलते
. रक्त बीज बो रहे
. गरल गंध घोलते
. नव विषाणु फौज के
खिल रहे कलह नये
पीत……………..।।
. °°°°°°°

बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
बौहरा भवन
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

दिवस आधारित कविता