कालचक्र गतिशील निरन्तर होता नहीं विराम
कालचक्र गतिशील निरन्तर
होता नहीं विराम,
दुख के पर्वत,नदिया,नाले
सुख का अल्प विराम।
अब तक मुझको समझ न आया
इस जगती का राग
रास न आयी इसकी माया
कैसे हो अनुराग !
शिथिल हुआ है तन ये जर्जर
मन भागे अविराम
दुख के पर्वत , नदिया , नाले ,
सुख का अल्प विराम।
छायी है बस ग़म की बदली
आँसू का संवाद
साँसों की सरगम में गूँजे
धड़कन का अनुवाद।
आपाधापी अन्दर- बाहर
तनिक नहीं विश्राम ।
दुख के पर्वत , नदिया ,नाले,
सुख का अल्प विराम ।
कालचक्र गतिशील निरन्तर
होता नहीं विराम
दुख के पर्वत, नदिया ,नाले
सुख का अल्प विराम ।
नीलम सिंह
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद