कवि / कविता पर कविता/ राजकुमार ‘मसखरे
आज़कल कवि होते नही हैं
वे सीधे ही कवि बन जाते हैं,
कुछ लिखने व मंथन से पहले
कोई नकली ‘नाम’ जमाते हैं !
यही कोई ‘उपनाम’ लिख कर
फिर नाम मे ‘कवि’ लगाते हैं,
दो,चार रचना क्या लिख डाले
‘भाँटा-मुरई’ को सही बताते हैं !
‘पताल चटनी’ लिख- लिख कर
ये समृद्ध साहित्यकार कहाते हैं,
फिर फर्जी डिग्री हासिल कर के
पीएचडी वाले डॉक्टर हो जाते हैं !
जुगाड़ लगाकर पुरस्कृत हो जाते
फिर राष्ट्रीय कवि भी बन आते हैं,
क्या लिखें व किसके लिये लिखें
ये भूल, इन्हें सिरहाने धर जाते हैं !
किसी आका का चारण बन
वह शानदार मंच सजवाते हैं,
फिर भक्ति की गाना गा-गा कर
अपनी वाह ! वाह ! करवाते हैं !
शब्दों को अर्थ,लेखनी को पहचान
अबला को बल व वंचितों को मान,
कवि / साहित्यकार तो वही होते हैं
जो समाज हित में लिखते,दे ध्यान !
तुक मिलाओ, मात्रा और वर्ण गिनों
ठीक,पर कविता की नही परिभाषा,
हों व्याकरणिक,दिल को झकझोर दे
यही कवि से है सब की अभिलाषा !
— *राजकुमार ‘मसखरे’*