श्याम के दोहे
पागल मनवा ढूँढता, कहाँ मेरा चितचोर ।
मन-मंदिर से झाँकता,मैं बैठा इस ओर।।
पागल फिरता है कहाँ, जीवन है दिन चार ।
वाणी में रस घोलिये,सदा सत्य व्यवहार।।
पागल कहते लोग है,लगी श्याम से प्रीत ।
नहीं मुझे परवाह है,गाऊँ उनके गीत ।।
जब से देखा श्याम को,पगली सी है हाल।
जादू तिरछी नजर का,जग माया जंजाल ।।
सपने में आकर कहे,मेरी बाँह झिँझोर।
आया तेरा साँवरा, देख जरा इस ओर।।
केवरा यदु “मीरा ” राजिम