संकल्प
मेरी अंजुरी में भरे,
जुगनू से चमकते,
कुछ अक्षर हैं!
जो अकुलाते हैं,
छटपटाते हैं!
सकुचाते हुए कहते हैं-
एकाग्र चित्त होकर,
अब ध्यान धरो!
भीतर की शांति से
कोलाहल कम करो!
अंतर के तम को मिटाकर,
दिव्य प्रकाश भरो!
झंझोड़ कर जगाओ,
सोयी हुई मानवता को,
भटकते राहगीरों को
सही दिशा दिखाओ!
बुद्धत्व का बोध करो
कुछ करो,कुछ तो करो!
शब्दों की चुभन से,
सचेत,सजग हुई मैं,
फिर लिया संकल्प!
कुछ करना होगा!
कुछ तो करना ही होगा…..
डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
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