प्रेम पर कविता -विनोद सिल्ला
गहरा सागर प्रेम का, लाओ गोते खूब।
तैरोगे तो भी सही, निश्चित जाना डूब।।
भीनी खुशबू प्रेम की, महकाए संसार।
पैर जमीं पर कब लगें, करे प्रेम लाचार।।
पावन धारा प्रेम की, बहे हृदय के बीच।
मन निर्मल करके नहा,व्यर्थ करोमत कीच।।
साज बजे जब प्रीत का, झंकृत मन के तार।
रोम-रोम में प्रेम का, हो जाए संचार।।
रीत प्रीत की चल रही, प्रीत अनोखी रीत।
पाकर पावन प्रेम तू, दुनिया को ले जीत।।
प्रीत भला कब जानती, दुनियादारी बात।
प्रीत जानती नेह को, भूल सभी शह-मात।।
सिल्ला सावन प्रेम का, बरस रहा दिन रैन।
तन-मन अपना ले भिगो, आएगा तब चैन।।
-विनोद सिल्ला