मर्द का दर्द / डॉ विजय कुमार कन्नौजे

मर्द का दर्द / डॉ विजय कुमार कन्नौजे


नारी बिना ना मर्द हैं
मर्द का एक दर्द है।
एक अनजाने कन्या लाकर
पालने पोसने का कर्ज है।

सिर झुका विनती नार को
हाथ जोड़ अर्ज है।
जन्म दाता माता पिता का
जिंदगी भरे कर्ज है।

मर्द का एक दर्द है।।

पाप कर्म किया है मर्द
बच्चन पालना फर्ज है
माता पिता पत्नी सहित
बच्चों का कर्ज है।
मर्द का एक दर्द है।।

भू गगन जल अग्नि वायु
इनका भी अर्ज है।
देश भक्ति कर्तव्य पालन
मर्द का एक दर्द है।।

संस्कार संस्कृति सभ्यता
मानवता का धर्म है।
कर्त्तव्य कठिन जीवन में
मर्द का एक दर्द है।।

जन्म से मौत तक मर्द का
भंयकर कर्ज है।
उऋण होना इस कलयुग में
मर्द का एक दर्द है।।

मिल जाती यदि नार सुशील
महौषधि तर्ज है।
नर नारी मिल द्वी कर्ज चुकाते
दर्द मिटाने अर्ज है।।