मीन सिंधु में दहक रही
बड़वानल की लपटों में घिर
मीन सिंधु में दहक रही।
आग हृदय की कौन बुझाए
नदियाँ झीलें धधक रही।।
मौन हुई बागों में बुल बुल
धुँआ घुली है पुरवाई
सन्नाटों के ढोल बजे हैं
शोक मनाए शहनाई
अमराई में बौर झरे सब
बया रुदन मय चहक रही।
बड़वानल……………….।।
सृष्टा का वरदान बताकर
शोषण किया धरोहर का
भँवरे ने भी खून पिया बस
ताजी कली मनोहर का
शान फूल की रही तभी तक
जब तक तन में महक रही।
बड़वानल………………..।।
सागर की लहरें भी छिपने
भँवरों में गोते खाती
चीख पुकार सुने सीपी की
कछुए की भरती छाती
मेघ देखते खड़े तमाशे
स्वाति बूंद बस फफक रही।
बड़वानल………………..।।
चिनगारी को ढूँढ रहें है
सूरज से राकेश मिले
साक्ष नहीं दे कोई तारा
ऋण धन के आवेश मिले
पीड़ित होकर मातृ साधना
लाचारी में सिसक रही।
बड़वानल……………।।
.
✍©
बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
वरिष्ठ अध्यापक
बौहरा – भवन
सिकंदरा, ३०३३२६
दौसा, राजस्थान,९७८२९२४४७९