“मेरे आंगन में “

होठ तेरे जैसे,
दो कुसुम खिले;
यौवन के कानन में ।
आंखें तेरी जैसी,
दो झील हैं गहरी;
रूप के मधुबन में ।
गाल हैं तेरे चिकने जैसे,
दो नव किसलय;
निकले उपवन में।
बिंदिया की चमक है जैसे,
इंदु हँसे;
नील गगन में।
केश तेरे लहराए जैसे,
घनघोर घटाएं;
झूम के आये सावन में।
दुल्हन बनकर बोलो,
कब आयेगी तू
मेरे आंगन में।
दिनेश चंद्र प्रसाद “दीनेश”
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