मेरे गिरधर, मेरे कन्हाई जी / रचयिता:-डी कुमार–अजस्र

मेरे गिरधर मेरे कन्हाई जी.

goverdhan shri krishna

जब भी आवाज दूं चले आना ,
मेरे गिरधर , मेरे कन्हाई जी ।
रीत प्रीत की भूल न जाना ,
जो भक्त-भगवान बनाई जी ।

तन-मन प्यासा जन्म-जन्म से,
दरस को तरसे ये अखियां।
बोल बोल-के छेड़े है जग ,
ताने देती है सखियां ।
लाज मेरी भी अब तुम्हारे हाथों,
आकर लाज बचाओ जी ।
जब भी आवाज दूं चले आना ,
मेरे गिरधर , मेरे कन्हाई जी ।
रीत प्रीत की भूल न जाना ,
जो भक्त-भगवान बनाई जी ।

भक्त प्रहलाद ,राधा और मीरा ,
पुकार न खाली गई कभी ।
एक आवाज पर दौड़ पड़े तुम,
भक्त पुकारे तुमको जब भी ।
भरी सभा जब द्रोप पुकारी ,
लाज बचाई आकर जी ।
जब भी आवाज दूं चले आना ,
मेरे गिरधर , मेरे कन्हाई जी ।
रीत प्रीत की भूल न जाना ,
जो भक्त-भगवान बनाई जी ।

तीन लोक मित्र पर वारे ,
गूढ़ मित्रता सिखलाई जी।
मित्र सुदामा गरीब जन्म का,
पर मित्रता तुमने निभाई जी।
मित्र न कोई छोटा-बड़ा हो ,
मित्र ‘ अजस्र ‘ बनाई जी ।
जब भी आवाज दूं चले आना ,
मेरे गिरधर , मेरे कन्हाई जी ।
रीत प्रीत की भूल न जाना ,
जो भक्त-भगवान बनाई जी ।

✍️✍️ *डी कुमार –अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)*

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