मन भँवरा नर देह

मन भँवरा नर देह

कविता संग्रह
कविता संग्रह


भोर कुहासा शीत ऋतु
तैर रहे घन मेह।
बगिया समझे आपदा
वन तरु समझे नेह।।
.
तृषित पपीहा जेठ में
करे मेह हित शोर
पावस समझे आपदा
कोयल कामी चोर

करे फूल से नेह वह
मन भँवराँ नर देह।
भोर……………..।।
.
ऋतु बासंती आपदा
सावन सिमटे नैन
विरहा तन मन कोकिला
खोये मानस चैन

पंथ निहारे गेह का
याद करे हिय गेह।
भोर…………….।।

याद सिंधु को कर रहा
भटका मन घन श्याम
नेह नीर के भार को
ढोता तन अविराम।

दुख में सुख को ढूँढता
मन को करे विदेह।
भोर……………..।।

गई प्रीत की रीत क्या
पावन प्रणय विवाद
देख नया युग नौ दिवस
रही पुरानी याद

डूब रहा अलि द्वंद में
कुसुमित रस संदेह।
भोर…………….।।

बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *