हाइकु अर्द्धशतक
३०१/
आज के नेता
है जनप्रतिनिधि
नहीं सेवक।
३०२/
है तू आजाद
बचा नहीं बहाना
तू आगे बढ़।
३०३/.
मित्र में खुदा
करे निस्वार्थ प्रेम
रिश्ता है जुदा।
३०४/ छाया अकाल
जल अमृत बिन
धरा बेहाल।
३०५/ सांध्य सितारा
शुक्र बन अगुआ
लड़े अंधेरा।
३०६/ स्वाभिमान ही
सबसे बड़ी पूंजी
जीवन कुंजी।
३०७/ बानी हो मीठी
चुम्बकीय खिचाव
शीतल छांव।
३०८/ प्रेरणा पथ
खुला पग पग में
परख चल।
३०९/
अच्छे करम
परलोक संपत्ति
जीवन बीमा।
३१०/ एक जिन्दगी
लाख सपने बुनें
कैसी बंदगी?
३११/
फल की खोज
बिन कर्म फूल के
होती बेमानी।
३१२/ माया का फंदा
फैला कर है रखा
ढोंगी का धंधा।
३१३/
रक्षाबंधन
बहन असुरक्षित
भाई तू कहाँ?
३१४/ आज की पीढ़ी
दुर्व्यसनी हो, चढ़े
मौत की सीढ़ी।
३१५/.
होती बेटियाँ
रिश्तों की है कड़ियाँ
मोती लड़ियाँ।
३१६/ नन्हीं चिड़िया
छोड़ चली आशियाँ
पाके आसमां।
३१७/ बना बंजारा
सारी दुनिया घर
आसमां छत।
३१८/ पी का दीदार
बजती हर बार
दिल सितार।
३१९/ चांद तुकड़ा
लगती प्यारी बेटी
फूल मुखड़ा।
३२०/ टेढ़ी मुस्कान
हृदयाघात करे
तीर कमान।
३२१/ हिन्दी दिवस
एक संकल्प दिन
हिन्दी के लिए।
३२२/ बाती हिन्दी की
जलती रहे सदा
पीढ़ी को दे लौ।
३२३/ मां, बापू, गुरू
नमस्ते, शुभ दिन
सबमें हिन्दी।
३२४/ आज ये हिन्दी
घर में ना हो बंदी
आ हिन्दी बनें।
३२५/ जीवन विद्या
एक जीवन शैली
आज की मांग।
३२६/ आज के नेता
है जनप्रतिनिधि
नहीं सेवक।
३२७/ कर्म ही पूजा
परिवार मंदिर
बच्चे देवता।
३२८/ भूमि खजाना
अन्न ,जल ,आश्रय
अस्तित्व मेरा।
३२९/ जीवन मेरी
हवा आवागमन
मैं कुछ नहीं।
३३०/ माटी पुतले
टुटते बिखरते
माटी में मिले।
३३१/ छांव,शीतल~
शहर से है दूर
गांव, पीपल
३३२/ अवैध कब्जा~
इंसानों से बेबस
जंगल राजा।
३३३/ ताश का घर~
हवा का झोंका आया
गयी बिखर।
३३४/ विज्ञान पढ़ा~
कबाड़ से जुगाड़
जिसने गढ़ा।
३३५/ नभ में चांद ~
कोयले की खान में
चमके हीरा।
३३६/ आंखे छलकी~
बोझिल सी जिन्दगी
हो गई हल्की।
३३७/
प्रेम दर्दीला,
प्रेम बड़ा बेढब ,
फिर भी प्रेम ।
३३८/
उधारी मोल,
कल की सौदेबाज़ी,
जी का जंजाल ।
३३९/
नारी जीवन,
आभूषण प्रियता,
पर है टिकी ।
३४०/
कवि से बचो
कहीं कैद करले
कविता में ही।
३४१/
प्रेरणा-पथ
हर पग पग में
परख चल।
३४२/ कलमकार,
समाज को दिशा दे,
तू कर्णधार ।
३४३/ रचनाकार,
नवनिर्माण करे
बन आधार ।
३४४/ जो चाटुकार,
झूठी शान से जीये
होके लाचार ।
३४५/ ओ मेरे यार
तू ही जीवन मेरा
बाकी बेकार ।
३४६/ पहरेदार ,
तू जगे हम सोये
है उपकार।
३४७/ तू सरकार
एकता तेरी बल,
होती अपार।
३४८/ हाईकूकार
चंद शब्दों में रचे
असरदार ।
३४९/ धुप में छाया
होता अमृत तुल्य
हरा हो काया ।
३५०/ गर्मी की मार
दो धारी तलवार
हुए लाचार ।