मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 7

हाइकु
हाइकु

हाइकु अर्द्धशतक

३०१/
आज के नेता
है जनप्रतिनिधि
नहीं सेवक।


३०२/
है तू आजाद
बचा नहीं बहाना
तू आगे बढ़।

३०३/.
मित्र में खुदा
करे निस्वार्थ प्रेम
रिश्ता है जुदा।

३०४/ छाया अकाल
जल अमृत बिन
धरा बेहाल।

३०५/ सांध्य सितारा
शुक्र बन अगुआ
लड़े अंधेरा।

३०६/ स्वाभिमान ही
सबसे बड़ी पूंजी
जीवन कुंजी।


३०७/ बानी हो मीठी
चुम्बकीय खिचाव
शीतल छांव।

३०८/ प्रेरणा पथ
खुला पग पग में
परख चल।


३०९/
अच्छे करम
परलोक संपत्ति
जीवन बीमा।


३१०/ एक जिन्दगी
लाख सपने बुनें
कैसी बंदगी?

३११/
फल की खोज
बिन कर्म फूल के
होती बेमानी।

३१२/ माया का फंदा
फैला कर है रखा
ढोंगी का धंधा।


३१३/
रक्षाबंधन
बहन असुरक्षित
भाई तू कहाँ?


३१४/ आज की पीढ़ी
दुर्व्यसनी हो, चढ़े
मौत की सीढ़ी।

३१५/.
होती बेटियाँ
रिश्तों की है कड़ियाँ
मोती लड़ियाँ।


३१६/ नन्हीं चिड़िया
छोड़ चली आशियाँ
पाके आसमां।

३१७/ बना बंजारा
सारी दुनिया घर
आसमां छत।


३१८/ पी का दीदार
बजती हर बार
दिल सितार।  

३१९/ चांद तुकड़ा
लगती प्यारी बेटी
फूल मुखड़ा।

३२०/ टेढ़ी मुस्कान
हृदयाघात करे
तीर कमान।

३२१/ हिन्दी दिवस
एक संकल्प दिन
हिन्दी के लिए।

३२२/ बाती हिन्दी की
जलती रहे सदा
पीढ़ी को दे लौ।

३२३/ मां, बापू, गुरू
नमस्ते, शुभ दिन
सबमें हिन्दी।

३२४/ आज ये हिन्दी
घर में ना हो बंदी
आ हिन्दी बनें।


३२५/ जीवन विद्या
एक जीवन शैली
आज की मांग।

३२६/ आज के नेता
है जनप्रतिनिधि
नहीं सेवक।  

३२७/ कर्म ही पूजा
परिवार मंदिर
बच्चे देवता।


३२८/ भूमि खजाना
अन्न ,जल ,आश्रय
अस्तित्व मेरा।

३२९/ जीवन मेरी
हवा आवागमन
मैं कुछ नहीं।


३३०/ माटी पुतले
टुटते बिखरते
माटी में मिले।

३३१/ छांव,शीतल~
शहर से है दूर
गांव, पीपल


३३२/ अवैध कब्जा~
इंसानों से बेबस
जंगल राजा।

३३३/ ताश का घर~
हवा का झोंका आया
गयी बिखर।


३३४/ विज्ञान पढ़ा~
कबाड़ से जुगाड़
जिसने गढ़ा।  

३३५/ नभ में चांद ~
कोयले की खान में
चमके हीरा।


३३६/ आंखे छलकी~
बोझिल सी जिन्दगी
हो गई हल्की।

३३७/
प्रेम दर्दीला,
प्रेम बड़ा बेढब ,
फिर भी प्रेम ।

३३८/
उधारी मोल,
कल की सौदेबाज़ी,
जी का जंजाल ।

३३९/
नारी जीवन,
आभूषण प्रियता,
पर है टिकी ।

३४०/
कवि से बचो
कहीं कैद करले
कविता में ही।

३४१/
प्रेरणा-पथ
हर पग पग में
परख चल।

३४२/ कलमकार,
समाज को दिशा दे,
तू कर्णधार ।  

३४३/ रचनाकार,
नवनिर्माण करे
बन आधार ।

३४४/ जो चाटुकार,
झूठी शान से जीये
होके लाचार ।

३४५/ ओ मेरे यार
तू ही जीवन मेरा
बाकी बेकार ।

३४६/ पहरेदार ,
तू जगे हम सोये
है उपकार।

३४७/ तू सरकार
एकता तेरी बल,
होती अपार।

३४८/ हाईकूकार
चंद शब्दों में रचे
असरदार ।

३४९/ धुप में छाया
होता अमृत तुल्य
हरा हो काया ।


३५०/ गर्मी की मार
दो धारी तलवार
हुए लाचार ।  

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *