मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 6

हाइकु

हाइकु अर्द्धशतक


२५१/ रात की सब्जी~
जय वीरू की जोड़ी
आलू बैंगन।


२५२/ पंचफोरन~
बैंगन की कलौंजी
प्लेट में सजा।


२५३/ बाजार सजा~
डलिया में बैंगन
इतरा रहा।

२५४/ सब्जी का राजा~(बैंगन)
ताज भांति सिर में
डंठल सजा।  

२५५/ रात की सब्जी~
जय वीरू की जोड़ी
आलू बैंगन।


२५६/ पंचफोरन~
बैंगन की कलौंजी
प्लेट में सजा।


२५७/ विषम दशा~
साहसी नागफनी
जीके दिखाता।


२५८/ जुदा कुरूप~
गमला में सजता
मैं नागफनी।


२५९/ कंटीला बन
वजूद से लड़ता
ज्यों नागफनी।

२६०/ जालिका वस्त्र~
शूल बना श्रृंगार
नागफनी की।


२६१/ हाथ बढ़ाता~
डसता नागफनी
उठाके फन ।


२६२/ किसान खु्श~
निकले फूलझड़ी
बाजरा बाली।

२६३/ बाजरा खड़ी~
पोषण भरपूर
पके खिचड़ी।


२६४/ पोषण भरी~
बाजरे की रोटियां
कैल्शियम से।


२६५/ दर्द उत्पत्ति~
रेत मोती में ढले
अद्भुत सीप।

२६६/ बादल सीप~
तेज आंधी के साथ
गिराये मोती।


२६७/ सो जा मनुवा
ये रात्रि बेला तेरी
तेरी ख्वाब की।


२६८/ महके मिट्टी~
धधकती धरा पे
पहली वर्षा।


२६९/ घास पे बुंदे~
बिछी मोती जड़ित
हरी चुनर।


२७०/ टूटे हैं तना~
आंधी ने उसे तोड़ा
जो है तना।  

२७१/ चीटीं चलती
अथक अविराम~
जीवन सीख।

२७२/ छत पे दाना~
चुग गई गौरेया
अपना खाना।

२७३/ खेल तमाशा~
खिलौने का संसार
मीना बाजार।

२७४/ झींगुर शोर~
खामोशी से सुनती
मेरी तन्हाई।


२७५/ घर महके~
गृह लक्ष्मी आने के
संकेत मिले।

२७६/  रिश्तों का जाल~
खाट का ताना बाना
उलझा सिरा।


२७७/ फूलों की माला~
दादा की तस्वीर पे
यादों की पीर।


२७८/ घूमर,पर्दे …..~
दीदी जोड़ी हरेक
घर का कोना ।  

२७९/ घर से दूर~
याद आये भुख में
मां की रोटियां।

२८०/
मां का आंचल~
जेठ दुपहरी में
छाये बादल।

२८१/ अनाथ बच्चे
अचरच तांकते~
खिलौने जिद्द।

२८२/ वट पूजन ~
परिक्रमा करें स्त्री
बन सावित्री।

२८३/ सूत के धागे~
पति दीर्घायु भव
स्त्री की कामना।

२८४/ ज्येष्ठ तेरस~
वट सावित्री व्रत
हिंदू संस्कृति।

२८५/ व्रत पूजन~
सत्यवान की कथा
वट के तले।

२८६/ दिल आईना
टूट बिखर गया~
शोर हुई ना।  

२८७/ सूखा दरिया~

हो रहे हैं बर्बाद

कृषि जरिया।


२८८/ विलासी युग

शांत न कर सके~

मानव भूख।

२८९/  टार्च कटारी

चक्रव्यूह भेदती~

तम पे भारी।

२९०/ हिलती रही

रात भर किवाड़~

जगती रही।

२९१/ बसंत ऋतु

कोयल की पुकार

उमड़े प्यार।

२९२/ ग्रीष्म की ऋतु

सूर्य तेज तर्रार

गर्मी की मार।

२९३/ वर्षा की ऋतु

धरा करे श्रृंगार

लाये बहार।

२९४/ हेमंत ऋतु

लाये तिज त्यौहार

हरेक द्वार।

२९५/ शिशिर ऋतु

खिले फूल मदार

लगे अंगार।

२९६/
कलमकार
सबको राह दिखा
तू कर्णधार।

२९७/ धरा की ताप
हरते मौन वृक्ष
तप करते।

२९८/ पिता के बीज
मां की कोख है धरा
प्रेम से सींच।

२९९/ माटी पुतले
टुटते बिखरते
माटी में मिले।

३००/ शरद ऋतु
अमृत की फुहार
भीगे संसार।

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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