हाइकु अर्द्धशतक
२०१/ प्रभात बेला~
शहर में सजती
रंगीन मेला।
२०२/ हिलते पात~
दिवस सुधि लेते
आई प्रभात।
२०३/ खनिज खान~
पठार की जमीन
चौड़ा सपाट।
२०४/
रूई बिछौना~
पामीर के पठार
संसार छत।
२०५/ फंसा पतंगा
फूल की लालच में
लोभ है जाल।
२०६/ पिरो के रखा~
एकता के सूत्र में
अंतरजाल।
२०७/ बारिश बूंदें~
उगी है मशरूम
छतरी ताने।
२०८/
राजसी शान~
मशरूम आसन
बैठा मेढ़क।
२०९/ ताजगी देता~
अदरक की चाय
मन को भाय।
२१०/ खांसी की दवा~
अदरक का काढ़ा
भगाये जाड़ा।
२११/ बांस सी पत्ती
हल्दी सा तना शल्क
है अदरक।
२१२/ फल आम के,
बरगद के पत्ते।
रूप आक के~
२१३/ मात्रा का फेर~
उचित मात्रा दवा
आक विषैला।
२१४/ अंतर लाल
श्वेत कटोरी फूल~
रक्तार्क आक।
२१५/ एकता सूत्र~
मुण्डक पुष्पक्रम
गेंदा का फूल।
२१६/ नभ के तारे~
धरती में खिले हैं
गेंदा बन के।
२१७/ जीवन छीना~
तड़प रही मीन
जल के बिना।
२१८/ माया का जाल ~
निगली बंशी कांटा
लाचार मीन।
२१९/ विद्रोही बन~
ना हो द्रोहभावना
किसी के प्रति।
२२०/ भम्र का भूत~
संबंधों में दरार
तोड़ता प्यार।
२२१/ नवजीवन~
अण्डा पड़े दरार
निकला चूजा।
२२२/ जल संकट~
जमीन में दरार
छाया अकाल।
२२३/ भूमि स्खलन
झुर्रीदार दीवार
पड़ी दरार।
२२४/ सुखते ताल
पड़ गई दरार
पानी की मार।
२२५/ वो घुंघट में~
कलसी पानी भरे
पनघट में।
२२६/ जल जीवन~
पनघट है दूर
जाना जरूर।
२२७/ मिली आजादी~
जाती हैं पनघट
हाल सुनाती।
२२८/ वो घुंघट में~
कलसी पानी भरे
पनघट में।
२२९/ जल जीवन~
पनघट है दूर
जाना जरूर।
२३०/ मिली आजादी~
जाती हैं पनघट
हाल सुनाती।
२३१/ देश की शान~
सीढ़िया नुमा खेत
चाय बागान ।
२३२/ सेब बागान~
हिमाचल गोद में
रत्नों की खान।
२३३/ आंतकी वृद्धि~
विस्तृत जलकुंभी
संपूर्ण ताल।
२३४/ घड़ा सा तना~
जलरागी पादप
है जलकुंभी।
२३५/ जल खतरा~
बंगाल का आतंक
है जलकुंभी।
२३६/ औषधालय~
संजीवनी पाकर
मन हर्षाये।
२३७/ औषधालय~
डाक्टर की पर्ची में
दलाली बंधा।
२३८/ भटका नाव~
रहस्यमयी टापू
पास बुलाये।
२३९/ सृष्टि का अंत~
विनाश संकेतक
डुबता टापू ।
२४०/ दूर सितारे~
हमारी करतूत
वो देख रहा।
२४१/ पिया लजाई~
चमकते प्रेम से
नैन सितारे।
२४२/ हरी चादर~
शैवाल ने घोला है
अपना रंग।
२४३/ लहर उठी~
फट गया शैवाल
भय खाकर।
२४४/ पौष्टिक खाना~
समुद्री चारागाह
बना शैवाल।
२४५/ अनभिज्ञता~
औंधे मुंह गिराया
शैवाल श्लेष्मा।
२४६/ हर सफर~
बनके परछाई
चलना सखि।
२४७/ शुभ विवाह~
मंडप परछाई
हल्दी निखरा।
२४८/ भीषण गर्मी~
पीपल परछाई
गंगा की घाट।
२४९/ चंद्र ग्रहण~
परछाई धरा की
केतु है माया।
२५०/ सूर्य ग्रहण~
परछाई धरा की
राहू की साया।