Category: अन्य काव्य शैली

  • सरसी/कबीर/सुमंदर छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें


    सरसी/कबीर/सुमंदर छंद [सम मात्रिक] विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    विशेष : चौपाई का कोई एक चरण और दोहा का सम चरण मिलाने से सरसी का एक चरण बन जाता है l

    उदाहरण :
    पहले लय से गान हुआ फिर, बना गान ही छंद,
    गति-यति-लय में छंद प्रवाहित, देता उर आनंद।
    जिसके उर लय-ताल बसी हो, गाये भर-भर तान,
    उसको कोई क्या समझाये, पिंगल छंद विधान।

    – ओम नीरव

  • लावणी/कुकुभ/ताटंक छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    लावणी/कुकुभ/ताटंक छंद [सम मात्रिक] विधान – 30 मात्रा, 16,14 पर यति l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

    छंद
    छंद


    विशेष – इसके चरणान्त में वर्णिक भार 222 या गागागा अनिवार्य होने पर ताटंक , 22 या गागा होने पर कुकुभ और कोई ऐसा प्रतिबन्ध न होने पर यह लावणी छंद कहलाता है l

    उदाहरण :
    तिनके-तिनके बीन-बीन जब, पर्ण कुटी बन पायेगी,
    तो छल से कोई सूर्पणखा, आग लगाने आयेगी।
    काम अनल चन्दन करने का, संयम बल रखना होगा,
    सीता सी वामा चाहो तो, राम तुम्हें बनना होगा।

    – ओम नीरव

    विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है –
    22 22 22 22, 22 22 22 2
    गागा गागा गागा गागा, गागा गागा गागा गा
    फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन, फैलुन फैलुन फैलुन अल
    किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है l इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l

  • बीर/आल्ह छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    बीर/आल्ह छंद [सम मात्रिक] विधान – 31 मात्रा, 16,15 पर यति, चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत l

    छंद
    छंद

    उदाहरण :
    विनयशीलता बहुत दिखाते, लेकिन मन में भरा घमण्ड,
    तनिक चोट जो लगे अहम् को, पल में हो जाते उद्दण्ड।
    गुरुवर कहकर टाँग खींचते , देखे कितने ही वाचाल,
    इसीलिये अब नया मंत्र यह, नेकी कर सीवर में डाल।

    – ओम नीरव

  • मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक] विधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति, यति से पहले वाचिक भार 12 या लगा, चरणान्त में वाचिक भार 22 या गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

    छंद


    विशेष – दोहा के क्रमागत दो चरणों के अंत में एक लघु बढ़ा देने से मुक्तामणि का एक चरण बनता है l

    उदाहरण :
    विनयशील संवाद में, भीतर बड़ा घमण्डी,
    आज आदमी हो गया, बहुत बड़ा पाखण्डी l
    मेरा क्या सब आपका, बोले जैसे त्यागी,
    जले ईर्ष्या द्वेष में, बने बड़ा बैरागी l

    – ओम नीरव

  • सोरठा छंद [अर्ध सम मात्रिक] कैसे लिखें

    सोरठा छंद [अर्ध सम मात्रिक]

    विधान – 11,13,11,13 मात्रा की चार चरण , सम चरणों के अंत में वाचिक भार 12 (अपवाद स्वरुप 12 2 भी), विषम चरणों के अंत में 21 अनिवार्य, सम चरणों के प्रारंभ में ‘मात्राक्रम 121 का स्वतंत्र शब्द’ वर्जित, विषम चरण तुकांत जबकि सम चरण अतुकांत l

    छंद
    छंद

    विशेष – दोहा छंद के विषम और सम चरणों को परस्पर बदल देने से सोरठा छंद बन जाता है ! इसप्रकार अन्य लक्षण दोहा छंद के लक्षणों से समझे जा सकते हैं l

    उदाहरण :
    चरण बदल दें आप,
    दोहा में यदि सम-विषम,
    बदलें और न माप,
    बने सोरठा छंद प्रिय l

    – ओम नीरव