Category: अन्य काव्य शैली

  • घर का संस्कार है बेटी

    घर का संस्कार है बेटी


    घर आँगन की शान,अभिमान है होती।
    माँ बाप की जान पहचान होती है बेटी।
    अक्सर शादी के बाद पराए हो जाते हैं बेटे।
    दो कुलों की मान-सम्मान होती है बेटी।1।
    माँ के रूप में ममता की मूरत है बेटी।
    पत्नी के रूप में फर्ज की सूरत है बेटी।
    पीहर व ससुराल के बीच सामंजस्य बिठाये।
    दया,त्याग,प्रेम की सच्ची मूरत है बेटी।2।
    भाई के कलाई में रेशम का प्यार है बेटी।
    बहन के लिए दुलार,घर का व्यवहार है बेटी।
    घर घर में पूजी जाए,तीज त्यौहार है बेटी।
    बेटा एक विचार है तो घर का संस्कार है बेटी।3।

    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
    तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ. ग.) पिन- 493558
    मोब.- 8103535652
              9644035652
    ईमेल- [email protected]

  • युवाओं के प्रेरणास्रोत- स्वामी विवेकानंद

    युवाओं के प्रेरणास्रोत- स्वामी विवेकानंद

    युवाओं के प्रेरणास्रोत

    स्वामी विवेकानंद
    स्वामी विवेकानंद

    दिव्य सोच साधना से अपनी,पावन ज्ञान का दीप जलाया।
    सोए लोगों की आत्मा को,स्वामी जी ने पहली बार जगाया।
    भगवा हिंदुत्व का संदेश सुनाकर,भारत को विश्वगुरु बनाया।
    तंद्रा में सोई दुनिया के लोगों को,विश्वश्रेष्ठ विवेकपुंज ने जगाया।

    11 सितंबर1893 को शिकागो में हिंदुत्व का ध्वज फहराया।
    संभव की सीमा से परे,असंभव को भी कर दिखलाया।
    समता,ममता से परहित परोपकार का मंत्र जो बतलाया।
    रुको न जब तक लक्ष्य न पाओ का प्रेरणा पुंज फैलाया।

    प्रेम योग से भक्ति योग के सफर को जीना सिखलाया।
    नव भारत के स्वप्नदृष्टा,इंसानियत का पाठ है पढ़ाया।
    ज्ञान,भक्ति,त्याग,तप साधना समर्पण से ही बाल नरेंद्र।
    आत्मज्ञानी,विश्वश्रेष्ठ विवेकपुंज स्वामी विवेकानंद कहलाया।

    12जनवरी 1863 मकर संक्रांति के दिन कलकत्ता में जन्मे विवेकानंद।
    पिता विश्वनाथ दत्त व माँ भुवनेश्वरी देवी को दिव्यशक्ति ने किया आनंद।
    भगवा वसन,भगवा साफा,लाल रंग के कपड़े का था उनका कमरबंद।
    भारतीयता का उदघोषक,आत्मविश्वास से जीने वाला फैलाता सुगंध।

    चेहरे पर आकाश की थी व्याप्ति,हृदय में सिंधु सी अतल गहराई थी।
    कदमों में प्रकृति सी अपरिमित गति,मृगनयनों से दिव्यता दिखलाई थी।
    व्यक्तित्व में कठिन तप की ऊष्मा,मंजी देह से झरता था संयम का अनुनाद।
    दृढ़ प्रतिज्ञ सन्यासी ने भारत को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने की बीड़ा उठाई थी।

    तार्किक ओजस्वी वाणी इनकी प्रतिभा मेधा का सबने लोहा माना।
    भाई बहन के संबोधन से शुरू होता वक्तव्य जग ने पहली बार जाना।
    सनातन धर्म की संस्कृति विरासत को विश्व ने पहली बार पहचाना।
    विवेकानंद की वाणी से गूँज उठा शिकागो धर्मसभा का कोना कोना।

    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री

  • शीत/ठंड पर हाइकु

    शीत/ठंड पर हाइकु

    हाइकु

    शीत/ठंड पर हाइकु

    [1]
    शीत प्रदेश
    बरस रही चाँदी
    धूप बीमार ।

    [2]
    शीत लहर
    कँपकपाते होंठ
    हँसे धुनियाँ ।

    [3]
    बैरन शीत
    प्रीतम परदेश
    खुशियाँ सुन्न ।

    [4]
    मुस्काती धुँध
    सूरज असहाय
    जीवन ठप्प ।

    [5]
    ठण्ड में धूप
    देती गरमाहट
    ज्यों माँ की गोद ।

    अशोक दीप✍️
    जयपुर

  • महामारी से भी मिला उपहार-समय के सदुपयोग की कला और जीवन शैली में सुधार।

    महामारी से भी मिला उपहार-समय के सदुपयोग की कला और जीवन शैली में सुधार।

    कोरोना जैसी महामारी फैली,
    बदल गई, जीवन की शैली।।
    समय का इसने सदुपयोग सिखाया,
    जीने का नया ढंग समसाझा।

    आज मैं नौरा छतवाल,आई हूँ,इस मंच पर कुछ विचारों का आदान-प्रदान करने, इस वैषविक महामारी का कुछ बखान करनें। काफी कुछ इस महामारी ने हमसे छीन दिया है। हमें लगता है कि यह हमारी प्रगति के मार्ग में बाधा बन गई है,पर जानते हो यह एक पहलू है। हमें दूसरे पहलू को भी भूलना नहीं है। यह महामारी,हमारी अंधाधुंध दौड़ में एक बैरीगेटबन कर आई है।

    कोरोना वायरस चला जाएगा। अगर नहीं भी गया,तब भी हम इसी के साथ जी लेंगे,जैसे कई दूसरी बीमारियों के साथ जी रहे हैं। सच कहा है किसी ने कि दुख इंसान को माँजता है और उसे बेहतर बनाता है। आपदाएँ आती हैं और आती रहेंगी,पर इनके समय मनुष्य काम करना बिलकुल नहीं छोड़ सकता।

    आज यह उक्ति भी सत्य सिद्ध हो गई कि ‘आवश्यकता’आविष्कार की जननी है।
    महोदय! आज इस महामारी के कारण मनुष्य अपने घर तक सीमित जरूर है पर उसकी सोच उसके घर तक नहीं है,उसने इस बाधा का सामना करने के लिए लाइन ‘प्लेटफार्म’ढूँढ लिया है। आज ‘ज़ूम’पर ऑनलाइन क्लास से शिक्षा ली जा रही है। हम हर समय,समय की कमी की शिकायत करते थे। आज,हमारे पास काफी समय है,हम अपने भीतर की कला को सँवार सकते हैं, ज़िंदगी की भाग दौड़ को भूलकर, अपनों के बीच समय बिता सकते है।।

    प्रकृति के सुन्दर दर्शन हमें इसी महामारी के दौरान ही हुए हैं। प्रदूषण रहित प्रकृति,नदियों का कल-कल करता स्वच्छ जल,हम कह सकते हैं कि हमने देखा है इसी महामारी के दौरान। सड़कों पर गाड़ियाँ कम हैं, और पौधे ज़्यादा। नदियों में मछलियाँ ज़्यादा हैं और कचरा कम। विवाह जैसे अवसरों पर अब लोगों की फिजूलखर्ची नहीं होती।

    यही नहीं, खान-पान में भी सुधार लाई है यह कोरोना जैसी महामारी। लोग डर से ही सही,घर का सादा खाना,खाने लगे हैं,वरना तो लोगों की जीवन शैली इतनी विचित्र थी कि क्या कहूँ। बाहर से मंहगा खाना मँगवा कर खाना,फिर वह खाना खा-खा कर,उससे बेडौल बने शरीर को ‘जिम’ जाकर ठीक करने का प्रयास करना,लोगों के लिए ‘स्टेट्स सिंबल’बन गया था। कोरोना के फैलते हुए पैरों को देखकर लोग डरे हुए हैं,वे इसी महामारी के कारण ही सही,जीवन में सुधार लाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।

    मुझे दुःख है इस महामारी से होने वाले नुकसान का,परन्तु मैं जीवन के प्रति साकारात्मक सोच रखती हूँ और,इसीलिए,इससे होने वाले परिवर्तन मुझे प्रभावित करते हैं। तो चलो,आओ,सभी मिलकर ढूँढते हैं कोरोना के काले बादलों में एक इंद्रधनुष…।

    खुशियों के लिए,
    क्यूँ करूँ किसी का इंतजार,
    मैं ही तो हूँ,
    अपने जीवन की शिल्पकार,
    चलो आज,
    मुश्किलों को हराते हैं
    और एक बार फिर इस महामारी में,
    शिद्दत से मुस्कराते हैं…

    • नौरा छतवाल
  • कोरोना कइसे भागही – महदीप जंघेल

    कोरोना कइसे भागही – महदीप जंघेल

    दारू भट्ठी में भीड़ ल देखके,
    मोला लगथे अकबकासी।
    कोरोना बेरा मा अइसन हालत ले,
    लगथे अब्बड़ कलबलासी।

    बिहनिया ले कतार म ठाढ़ होके,
    घाम पियास म अइंठत हे,
    सियनहीन गाय सरी ठाढ़े-ठाढ़े ,
    हफरत लाहकत हे।

    धरे पइसा,लपेटे मुहूँ मा गमछा,
    अगोरा मा खड़े हवय।
    कोरोना ल भुलागे,एक ठन काबर,
    दू ठन बर धरे हवय।

    नशाखोरी के फेर म पड़ के,
    कोरोना असन बीमारी ल भुलागे।
    अइसे झपावत हे जइसे,
    कोरोना के दवई ल पागे।

    संगी हो अइसने में हमर देश ले ,
    कोरोना कइसे भागही।
    कोन जनि अइसन अनचेतहा मन के,
    अंतस ह कब जागही।

    बड़े- बड़े बलशाली देश के गति ल,
    देख के थोरको समझ जाहु।
    दुरिहा-दुरिहा रेहेअउ मास्क लगाये बर
    एक्को झन भुलाहु।

    कोरोना जइसन जीवलेवा रोग ला ,
    खेलवना झन बनाहु।
    नइ त अपन जिनगी ल ,
    दुबारा नइ देख पाहु।

    एक दूसर ले दूरी बनाके रखव,
    दुरिहा ले गोठियावव,
    मास्क लगाके निकलो घर ले,
    साबुन से बार -बार हाथ धोवव,

    सुरता रखव जम्मो बात के,
    रखव साफ सफाई आसपास।
    कोरोना सिरतोन मा भागही,
    अपन सुरक्षा अपने हाथ।

    जय जोहार……

    ✍️रचनाकार
    महदीप जंघेल
    निवास ग्राम-खमतराई
    तहसील-खैरागढ़
    जिला-राजनांदगांव(छ.ग)