Category: अन्य काव्य शैली

  • हाकलि/मानव छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    हाकलि/मानव छंद [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रत्येक चरण में 14 मात्रा होती हैं , तीन चौकल के बाद एक द्विकल होता है (4+4+4+2) l यदि तीन चौकल अनिवार्य न हों तो यही छंद ‘मानव’ कहलाता है l

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    उदाहरण –

    बने ब/हुत हैं/ पूजा/लय,
    अब बन/वाओ/ शौचा/लय l
    घर की/ लाज ब/चाना/ है,
    शौचा/लय बन/वाना है l
    – ओम नीरव

    विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है –
    22 22 22 2
    गागा गागा गागा गा
    फैलुन फैलुन फैलुन अल
    किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l

  • मापनीमुक्त मात्रिक छंद विशेषताएं

    मापनीमुक्त मात्रिक छंद विशेषताएं :

    (क) इन छंदों की लय को किसी मापनी में बाँधना संभव नहीं है l इन छंदों की लय को निर्धारित करने के लिए कलों ( द्विकल 2 मात्रा, त्रिकल 3 मात्रा, चौकल 4 मात्रा) का प्रयोग किया जाता है –
    द्विकल = 2 या 11
    त्रिकल = 21 या 12 या 111
    चौकल = 22 या 211 या 112 या 121 या 1111

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    (ख) कलों के अतिरिक्त चरणों या पदों के आदि-अंत में किसी निश्चित मात्राक्रम की चर्चा भी की जाती है जिसमें प्रायः वाचिक भार ही प्रयुक्त होता है l
    (ग) कभी-कभी कलों का प्रतिबन्ध पूरा होने पर भी लय बाधित हो जाती है अर्थात लय होने पर कलों का प्रतिबन्ध होना अनिवार्य है किन्तु कलों का प्रतिबन्ध होने पर लय का होना अनिवार्य नहीं है l
    उदाहरण :
    श्रीरा/म दिव्य/ रूप/ को , लंके/श गया/ जान l
    4+4+3+2 , 4+4+3
    चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल, चौकल+चौकल+त्रिकल
    अर्थात इस पंक्ति में दोहा छंद के अनुसार कलों का प्रतिबन्ध पूरा है फिर भी यह पंक्ति दोहा छंद की लय में नहीं है l
    यह पंक्ति दोहे की लय में इस प्रकार होगी —
    दिव्य/रूप/ श्री/राम/ को, जान/ गया/ लं/केश l
    3+3+2+3+2 , 3+3+2+3
    (घ) मापनीमुक्त छंदों में लय ही सर्वोपरि है जो मुख्यतः अनुकरण से आती है l अस्तु रचनाकारों के लिए उचित है कि वह पहले किसी जाने-समझे छंद को सस्वर गाकर उसकी लय को मन में स्थापित करे , फिर उसी लय पर अपना छंद रचे और अंत में मात्राभार तथा नियमों की जांच कर लें l
    (च) मापनीमुक्त मात्रिक छंद तीन प्रकार के होते हैं – 1) सम मात्रिक छंद जिनके सभी चरणों के मात्राभार और नियम सामान होते हैं जैसे चौपाई, रोला आदि 2) अर्धसम मात्रिक छंद जिनमें मात्राभार और नियम की दृष्टि से विषम चरण परस्पर एक सामान होते है और उनसे भिन्न सम चरण परस्पर एक सामान होते हैं जैसे दोहा, सोरठा, बरवै आदि तथा 3) विषम मात्रिक छंद जिनके चरणों के मात्राभार और नियम भिन्न होते हैं किन्तु अर्धसम मात्रिक नहीं होते हैं जैसे कुण्डलिया, कुण्डलिनी, छप्पय आदि l

  • चौपई या जयकरी छंद कैसे लिखें

    चौपई या जयकरी छंद [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रयेक चरण में 15 मात्रा होती हैं, अंत में 21 या गाल अनिवार्य होता है, कुल चार चरण होते हैं, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l

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    उदाहरण :
    भोंपू लगा-लगा धनवान,
    फोड़ रहे जनता के कान l
    ध्वनि-ताण्डव का अत्याचार,
    कैसा है यह धर्म-प्रचार l
    – ओम नीरव

  • चौपाई छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    चौपाई छंद [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती हैं , अंत में 21 या गाल वर्जित होता है , कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l

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    उदाहरण :
    बिनु पग चलै सुनै बिनु काना,
    कर बिनु करै करम विधि नाना l
    आनन रहित सकल रस भोगी,
    बिनु बानी बकता बड़ जोगी l
    तुलसीदास

    विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है –
    22 22 22 22
    गागा गागा गागा गागा
    फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन
    किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l

  • श्रृंगार छंद [सम मात्रिक]कैसे लिखें

    श्रृंगार छंद (उपजाति सहित) [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती हैं, आदि में क्रमागत त्रिकल-द्विकल (3+2) और अंत में क्रमागत द्विकल-त्रिकल (2+3) आते हैं, कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l

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    उदाहरण :
    भागना लिख मनुजा के भाग्य,
    भागना क्या होता वैराग्य l
    दास तुलसी हों चाहे बुद्ध,
    आचरण है यह न्याय विरुद्ध l
    – ओम नीरव