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  • जगन्नाथ रथयात्रा पर हिंदी कविता (Jagannath Rathyatra)

    जगन्नाथ रथयात्रा पर हिंदी कविता (Jagannath Rathyatra) : Jagannath Rathyatra दूसरे शब्दों में रथ महोत्सव एकमात्र दिन है जब भक्तों को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है, उन्हें देवताओं को देखने का मौका मिल सकता है। यह त्योहार समानता और एकीकरण का प्रतीक है। रथ यात्रा भारत के पुरी में जून या जुलाई के महीनों में आयोजित भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु का अवतार) से जुड़ा एक प्रमुख हिंदू त्योहार है| पुरी रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है और हर साल एक लाख तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, न केवल भारत से बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से भी।

    जगन्नाथ रथयात्रा पर हिंदी कविता (Jagannath Rathyatra)

    जगन्नाथ रथयात्रा पर हिंदी कविता (Jagannath Rathyatra)

    शुक्ल पक्ष आषाढ़ द्वितीय।
    रथयात्रा त्योहार अद्वितीय।

    चलो चलें रथयात्रा में।
    पुरी में लोग बड़ी मात्रा में।

    जगन्नाथ के मंदिर से।
    भाई बहन वो सुन्दर से।

    जगन्नाथ, बलभद्र हैं वो।
    बहन सुभद्रा संग में जो।

    मुख्य मंदिर के बाहर।
    रथ खड़े हैं तीनों आकर।

    कृष्ण के रथ में सोलह चक्के।
    चौदह हैं बलभद्र के रथ में।
    बहन के रथ में बारह चक्के॥

    रथ को खींचों।
    बैठो न थक के।

    मौसी के घर जाएंगे।
    मंदिर (गुंडिचा )हो आएंगे।

    नौ दिन वहां बिताएंगे।
    लौट के फिर आ जाएंगे।

    बहुड़ा जात्रा नाम है इसका।
    नाम सुनो अब कृष्ण के रथ का।

    नंदिघोषा, कपिलध्वजा।
    गरुड़ध्वजा भी कहते हैं।

    लाल रंग और पीला रंग।
    शोभा खूब बढ़ाते हैं।

    तालध्वजा रथ सुन्दर सुन्दर।
    भाई बलभद्र बैठे ऊपर।

    नंगलध्वजा भी कहते हैं।
    बच्चे, बूढ़े और सभी।

    गीत उन्हीं के गाते हैं।
    रंग-लाल, नीला और हरा।

    ये त्योहार है खुशियों भरा।
    देवदलन रथ आता है।

    बहन सुभद्रा बैठी है।
    कपड़ों के रंग काले-लाल।

    दो सौ आठ किलो सोना।
    तीनों पर ही सजता है।

    खूब मनोहर सुन्दर झांकी।
    कीमत इसकी कोई न आंकी।

    दृश्य मन को भाता है।
    एक झलक तो पा लूँ अब।

    विचार यही बस आता है।

    चलो चलें रथ यात्रा में।
    पुरी में लोग बड़ी मात्रा में॥

    जगन्नाथ रथयात्रा पर कविता 2

    “हे प्रभु जगन्नाथ थाम मेरा हाथ,
    अपने रथ में ले चल मुझे साथ।
    लुभाये न मुझको अब कोई पदार्थ
    मेरा तो बस अब एक ही स्वार्थ,
    धर्म युद्ध हो या कर्म युद्ध हो
    तू बने सारथि, मैं बनूँ पार्थ ।
    मैं हूँ अन्जान बन के मेरा नाथ
    अपने रथ में ले चल मुझे साथ।”

    उसके हाथ में
    कोई हथियार नहीं था
    उसका चेहरा बड़ा भव्य था
    वह खुली जीप में आया था

    उसके आगे पीछे
    लम्बा चौड़ा काफ़िला था वाहनों का
    माथे पर पट्टियाँ बांधे
    जोश में नारे लगाती
    अनुयायियों की
    उन्मादी भीड़ थी
    उसके चारों ओर

    वह रौंदता जा रहा था
    मेहनतकशों की बनायी
    उम्मीदों की सड़क

    उसके आने से पहले ही
    लोग दुबक चुके थे घरों में
    किसी अनिष्ट की आशंका से
    बंद हो गए थे बाज़ार
    फैला हुआ था सन्नाटा चारों ओर
    कोई नहीं देख रहा था
    उसकी सवारी
    अनुयायियों की उन्मादी भीड़ के सिवा

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    स्त्री पर कविता ( Stree Par Kavita )गणतंत्र दिवस पर कविता 1

    जगन्नाथ रथयात्रा कब मनाई जाती है?

    आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि जगन्नाथ रथयात्रा कब मनाई जाती है

    जगन्नाथ रथयात्रा कैसे मनाई जाती है?

    जब तीनों रथ बनकर तैयार हो जाते हैं तब इन तीनों रथों की विधिवत पूजा की जाती है. इतना ही नहीं जिस रास्ते से यह रथ निकलने वाले होते हैं उसे ‘सोने की झाड़ू’ से साफ़ भी किया जाता है।

  • महिला दिवस पर कविता

    बेखबर स्त्रियां

    स्त्रियों के सौंदर्य का
    अलंकृत भाषा में
    नख से शिख तक मांसल चित्रण किए गए
    श्रृंगार रस में डूबे
    सौंदर्य प्रेमी पुरुषों ने जोर-जोर से तालियां बजाई
    मगर तालियों की अनुगूंज में
    स्त्रियों की चित्कार
    कभी नहीं सुनी गईं

    कविताओं में स्त्रियां
    खूब पढ़ी गई और खूब सुनी गई
    मगर आदि काल से अब तक
    कविताओं से बाहर
    यथार्थ के धरातल पर
    स्त्रियां ना तो पढ़ी गईं और ना ही कभी सुनी गईं

    स्त्रियों पर कई-कई गोष्ठियां हुईं
    स्त्री विमर्श पर चिंतन परक लेख लिखे गए
    स्त्री उत्पीड़न की घटनाओं पर शाब्दिक दुख प्रगट किए गए
    टीवी चैनलों पर बहसें हुईं
    अखबारों पर मोटे मोटे अक्षरों से सुर्खियां लगाई गईं
    स्त्रियां खबरों पर छाई रहीं

    पर घटनाओं से पहले
    और घटनाओं के बाद बेखबर रही स्त्रियां।

    –नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    मुझे स्त्री कहो या कविता

    मुझे स्त्री कहो या कविता
    मुझे गढ़ों या ना पढ़ों
    मुझे भाव पढ़ना आता है।
    खुबसूरती का ठप्पा वाह में
    कभी प्रथम पृष्ठ अखबार में
    किसी घर में,
    किसी गुमनामी राह पर।
    लेकिन मैं भी आदत से लाचार हूॅं
    कभी झुक कर उठ जाती हूॅं
    कभी टूट कर जुड़ जाती हूॅं
    मुझे नदी की तरह है जीना
    सीखा है उसी की धार से
    इसी लक्ष्य के साथ
    हर कदम आगे बढ़ती रहती हूॅं।

    अंतर्आत्मा के महल में
    उन्मुक्त गगन में
    शशि,दिनकर की छांव में
    खुद को सिंचते रहती हूॅं।
    अंधेरापन के खड़कने से
    अनायास ही कुछ चटकने से
    हृदय के दरकने से
    कर्णकटु स्वर से
    सहम सी जाती हूॅं
    न जाने क्यूं,
    अपनी अस्मिता को बिन जताएं ही
    एक कदम पीछे खिसक जाती हूॅं।

    पैरों में पायल,
    हाथों में चूड़ियाॅं
    कानों में झुमकी और माथे पर बिंदियाॅं
    पल्लू के साथ कभी छांव, कभी धुप दिखाती
    दर्पण को चेहरे की भाषा समझाती
    स्वप्निल नैनों को मटकाती
    मुस्कुराते हुए मुखड़े को लेकर
    दबे पांव चलकर
    होंठों को सीलकर
    सबकी हुजूम जुटाती
    फिर भी न जाने क्यूॅं
    बड़ी मासुमियत से
    स्त्रियां,न जाने कब
    अपनों से छली जाती है।

    सुबह का चार,संध्या के चार में
    कभी महसूस नहीं होती
    बच्चों को भेजती स्कूल और
    खुद भागती हुई आंफिस,स्त्रियाॅं
    थकान को छोड़ किसी दूकान पर
    पुनः जाती अपने आशियाने में
    खुद को भूलाकर
    कमरधनी की जगह पल्लू को बांधकर
    सहेजती रहती अपने आशियाने के फूल को
    कब तार-तार हो गई जीवन
    कब बह गई पंक्तियां
    फिर,न जाने कब स्त्रियां
    परिस्थितियों के हिसाब में
    अपने ही अंदाज से ठगी सी रह जाती है।

    आज बदल गई है परिस्थितियां
    इस पर हो रहे हैं विमर्श,
    भाषणों में, गढ़ रहे हैं किताबों में
    चल रही है जालसाजी दिमागों में
    कभी भेड़-बकरियों की तरह नोंचे जातें हैं,
    अनकही – अनसुनी बागों में।
    सब कुछ बदल रहा है
    लेकिन नही बदली है नारी की तक़दीर
    क्या पता इस खेमें में आ जाए किसकी तस्वीर
    लेकिन संस्कृतियों के मिठास में
    रह गई हूॅं सिमटकर
    मैं भी चाहती हूॅं जवाब दूॅं झटकाकर
    लेकिन न जाने क्यूं
    रिश्तों की डगमगाहट से
    कॅंप – कॅंपा जाती हूॅं मैं
    लड़खड़ा सी जाती है पंक्तियां
    वास्तव में कब बदलेगी परिस्थितियाॅं
    इसी आस में छलनी हो जाती हूॅं।

    निधी कुमारी

    नारी का सम्मान करो



    लावणी छंद
    वेद ग्रंथ में कहें ऋचाएँ, जड़ चेतन में ध्यान धरो।.
    जननी भगिनी बिटियाँ पत्नी, नारी का सम्मान करो।..

    नारी से नर नारायण हैं, नारी सुखों की खान है।
    प्रसव वेदना की संधारक, नारी कोख़ बलवान है।
    ममता की मूरत है जग में,सुचिता शील वरदान है।
    ज्वाला रूप धरे नारी तब, लागे ग्रहण का भान है।
    गगन बदन भेदन क्षमता है, मुक्त कंठ गुणगान करो…
    जननी भगिनी बिटियाँ पत्नी, नारी का सम्मान करो।…

    सती रूप भी सहज कहाँ था,पुरुष भला क्या सह सकता!
    काल विधुर परिणाम करे तो, चँद बरस नहीं रह सकता।
    दो कुल की संस्कारी सरिता, क्या गंगा सा बह सकते?
    करता और बखान कलम से, बिना शब्द क्या कह सकते?
    श्वेद गार कर बाग सजाती,सह नारी श्रमदान करो…
    जननी भगिनी बिटियाँ पत्नी, नारी का सम्मान करो।…

    अस्थि तोड़ती प्रसव वेदना, अबला ही सह सकती है।
    सफल चरण की नेक कहानी,गृहणी ही कह सकती है।
    कभी अडिग हो चट्टानों सी, कभी नयनजल बहती है।
    विषम घड़ी में ढाल बनें वह, पिय वियोग में जलती है।
    त्याग तपस्या नारी कारण, जीवन का बलिदान करो।
    जननी भगिनी बिटियाँ पत्नी, नारी का सम्मान करो।…

    डॉ ओमकार साहू मृदुल

    अर्धांगिनी

    कहने को तो पत्नी अर्धांगिनी कहलाती है,
    पर कितनी खुशकिस्मत औरतें ये दर्ज़ा पाती हैं।
    घर में रहने वाली औरतें हाउसवाइफ कहलाती हैं,
    वो तो कभी किसी गिनती में ही नहीं आती हैं।

    चाहे ज़माना लाख कहे कि औरतें हैं महान,
    पर घर में रहने वाली औरतों को तो सब समझते हैं बेकार सामान।

    क्या करती रहती हो घर पर?ये उलाहना तो आम है,
    बाहर जाकर काम करने वाली औरतें ही सबकी नज़रों में महान है।

    घर, बच्चों, बड़े-बूढों को संभालना तो सबको मामूली काम लगता है,
    उन्हें बात-बात में नीचा दिखाना अब बड़ा आम लगता है।

    फिल्मों के ज़रिए लोगों को बताना पड़ता है,
    हाउसवाइफ का काम अब लोगों को जताना पड़ता है।

    जिन working women पर महानता का tag लगा है,
    कभी उनसे पूछा कि तेरा हाल क्या है?

    चाहे बाहर हाड़तोड़ मेहनत कर थकी-हारी घर आती है,
    फिर भी घर-गृहस्थी संभालने की ज़िम्मेदारी उसी के ही हिस्से आती है।

    दो पाटों के बीच पिसती रहती है,
    ये औरतें अपने आप में बस घुटती रहती हैं।

    कभी कुछ नहीं कह पाती मुँह से क्या उनकी चाहत है,
    प्यार और सम्मान, बस यही देती उनको राहत है।

    गर ये भी ना दे पाओ तो उसे अर्धांगिनी भी ना कहना,
    ख़ुद के आधे हिस्से को सम्मान और आधे हिस्से को तिरस्कार कभी ना देना।

    क्या हुआ जो पत्नी के सोते तुमने थाली परोस कर खा ली,
    क्या हुआ जो पत्नी किचन में काम कर रही थी,इसलिए शर्ट तुमने खुद निकाली,
    क्या हुआ जो एक ग्लास पानी तुमने खुद लेकर पिया,
    क्या हुआ जो आज तुमने अपना बिस्तर समेटा,


    क्या हुआ जो आज बाज़ार से सामान लाना पड़ा,
    क्या हुआ जो आज दाल में तेज नमक खाना पड़ा,
    क्या हुआ जो कभी समय पर चाय नहीं मिली,
    क्या हुआ जो आज की फरमाइश आज पूरी नहीं हुई।

    जो अपना पूरा जीवन adjust करके निकाल देती है,
    जो अपनी पसंद-नापसंद भी बिसार देती है,
    जो कभी-कभी बिन बात के भी गुस्सा हो जाती है,
    जो कभी रूठ जाती है,कभी चिड़चिड़ाती है।


    वो सिर्फ तुम्हारा ध्यान पाना चाहती है,
    कुछ बातें गुस्से में बताकर तुम्हें सिखाना चाहती है।
    क्योंकि वह जानती है कि जिन बातों पर उसे गुस्सा आता है,
    उसके जाने के बाद उन आदतों में प्यार जताकर देखने वाला और कोई नहीं होता है।

    ये पति-पत्नी दोनों जीवन गाड़ी के हैं दो पहिये,
    ये बात सौ प्रतिशत सही है,इसे झूठी ना कहिये।

    लड़खड़ा जाएगी ये गाड़ी गर औरत साथ ना देगी,
    जितना सम्मान देती है, ये उतना सम्मान भी चाहेगी।

    गर खिलखिलाते चेहरे पर चुप की चुप्पी छा जाएगी,
    तो ना होली पर ना दिवाली पर घर में रौनक नज़र आएगी।

    गर सच्चे दिल से औरत को समानता का दर्ज़ा देते हो,
    घर को उनकी ज़रूरत है, ये सच्चे दिल से कहते हो,
    तो बस प्यार और सम्मान से उन्हें सींचते रहिएगा,
    चाहे housewife हो या working wonen,

    उन्हें अपनेपन का साथ देते रहियेगा।
    जैसे खूबसूरती दिखाने वाला आईना भी टूटकर
    एक चेहरे को हज़ार चेहरों में बिखेर देता है,
    उस तरह से औरत के आत्मसम्मान को टूटकर कभी बिखरने ना दीजियेगा।

    श्रीमती किरण अवधेश गुप्ता

    हाँ मैं नारी हूँ

    मैं ही तुमको जीवन देती हूँ लेकिन अपना नाम नहीं देती हूँ।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैं ही इस संसार की रचना करती हूँ।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम इस संसार में मुझे बस सुनाते हैं, फिर भी मैं कुछ नहीं कहती हँू।
    लेकिन तुम यह नहंी जानते हो कि मैं सब कुछ समझती हूँ।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’


    तुम मुझे बुरा भला कहते हो तो भी मैं तुम्हारे सामने जवाब नहीं देती हूँ।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैंने अपने पति के जीवन को यमराज से भी छुडा़या है।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे रोज ताने मारते हो तो भी मैं तुम्हारे साथ ही रहती हँू।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैंने एक बार अपने प्रेम की खातिर जहर को भी पी लिया है।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे कमजोर समझते हो लेकिन मुझे मेरे ईश्वर ने सहनशक्ति दी है।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैंने एक बार अपने राज्य की खातिर

    अपने बच्चे को पीठ पर बाँधकर अग्रेजोें को धूल चटायी है।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे रोजाना अपने पिंजरे में कैद करने की कहते हो।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैं चाँद पर भी होकर आयी हूँ।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे नारी समझते हो लेकिन मैं नारी नहीं नारायणी हूँ।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैं ही तेरी रचयिता हँू।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे कार्य करने की मशीन समझते हो फिर भी मैं तेरे सुख दुख में साथ देती हँू।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि इस दुनिया को मैं ही चलाती हँू।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मेरे चरित्र पर सवाल उठाते रहे मैं केवल परीक्षा देती रही।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैंने अपने पति के वचन की खातिर चैदह वर्ष वनवास किया है।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’


    तुम मेरी हर समय तपस्या लेते रहे तो भी मैं देती रही।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि जरूरत पड़ने पर मैं पत्थर की अहिल्या भी बन गयी।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’

    धर्मेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)

    इंसान के रूप मे जानवर

    क्यों ,जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है
    वो जानकर भी कि ये गलत है फिर भी गलती बार-बार कर रहा है
    वो कुछ इस तरह से लिप्त हो रहे दरिंदगी मे मानो
    दरिंदगी के लिए ही पैदा हुआ हो सो हजार बार कर रहा है.
    मर चुका है इंसान उसका राक्षस को संजोए हुए हैं
    अंजाम की परवाह नहीं मौत का कफ़न ओढ़े हुए हैं
    वो बहन बेटी की इज्ज़त से आज खुलेआम खेल रहा है
    चीख रही निर्भया कितने उसे दर्द मे धकेल रहा है

    क्यों, जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है.
    उसके कृत्य को थू-थू सारा ही संसार कर रहा है
    जिस देश मे जल -पत्थर भी पूजे जाते हैं
    यहां संस्कृति है ऐसी नारी भी देवी कहे जाते हैं
    फिर क्यों, इंसान इतना शैतान होता जा रहा है
    छेड़खानी-बालात्कारी हर दिन छपता जा रहा है
    हमारे संस्कार को धूमिल वो हर बार कर रहा है
    क्यों, जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है.

    आनंद कुमार, बिहार

    तुझको क्या लगता है

    नारी शक्ति (महिला जागृति)

    सैलाब को समेटे खुद में
    वो शीतल मंद नदी से बहती है
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती है।

    मान सम्मान परंपराओं के आवरण में
    वो खुद की क्षमताओं की सीमाओं को बांधे रखती है
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती है।

    जागृत ज्वाला प्रचंड है वो
    पर स्वभाव ठंडी गंगाजल सी रखती हैं
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती हैं।

    कौन जंजीरों में बांध सका है उसको
    वो प्रेम वशीभूत अपना सब कुछ समर्पण करती है
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती है।

    कि कैसे आवाहन करूं मैं नारी कि जागृति का
    वो जागृत देवी स्वरूपा हर रूप में बसती है
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती है।

    प्रांशु गुप्ता

    लगता है मेरी अस्थियो को फिकँवाने चले है

    दरिंदो ने दरिंदगी निभा ही दी,
    फरिश्ते अब मेरी मौत के बाद मदद की दुहार लगाने लगे है।
    मेरे माँ-बाप को गले से लगाने चले है,
    लगता है मेरी अस्थियो को फिकँवाने चले है।
    काश! काश!
    बालात्कार कर छोड़ गई बेटी,
    आसमाँ में परिंदो सा उड़ पाती।
    मुस्कुराहट पर हक है उसका ,
    ये बात दुनिया मुसकुराकर कह जाती।
    हाँ, तब वो जिंदा होती।।
    उसे कोई गले से लगाने वाला तो होता ,
    उसके लिए लड़ जाने वाला तो होता ।
    मरकर भी जिंदा हो जाती,
    उसकी लाश को सहलाने वाला तो कोई होता।।
    कह दो अपने सभापति से
    अगली सभा थोड़ी पहले बुलाये,
    कम से कम मन जिंदा तो होगा लड़ जाने के लिए।
    माँ-बाप के पास लाश तो होगी जलाने के लिए।।
    जिंदा रहने की चाहत मर-सी गई होगी,
    कैसे जीऊँगी ये सोच वो डर-सी गई होगी,
    शायद तब उसकी रूह उससे बिछड़-सी गई होगी।।
    मौत की वजह दरिंदे है,
    पर जिंदा रहने की चाहत क्यों मरी उसकी वजह ???

    नाम-पायल

    नारी तुम हो नदी की धारा

    तुमसे ही है जीवन सारा,
    तुम ही हो शक्ति,
    तुम ही हो भक्ति,
    पुरातन से लेकर नूतन तक ,
    तुमने ही यह दुनिया सवारी,
    इतने जुल्म  सहकर,
    कुरीतियो  का ज़हर पीकर,
    पहाड़ जैसी मुसीबत झेलकर भी,
    अपने मार्ग से न डगमगाई,
    और ओढ़ी सफलता की रजाई ।                  


     कभी लक्ष्मी बाई बनकर,
    अंग्रेजों को धूल चटाई।
     तो कभी  इंदिरा गाँधी बनकर,
     देश हित  सरकार  बनाई।
    कभी  सावित्री  फुले  बनकर
    कुरीतियो के ख़िलाफ़ आवाज़  उठाई।


    कभी  कल्पना  चावला  बनके,
    चाँद  तक पहुँचने  की राह  बताई।
    कभी किरण बेदी बनकर,
    चोरो  की  करी  धुलाई।
    तो कभी  लेखिका  बनकर,
    कलम  की ताकत  बताई।


    कभी  पी वी सिंधु  बनके,
    ओलिंपिक मैं गाड़  दिए  झंडे।
    कभी  मैरीकॉम  बनके,
    दिखाई  मुक्केबाज़ी की कला।        
    तो कभी श्वेता सिंह बनके,
    सारे  जहाँ  की  खबर  सुनाई।

    हर रूप  में  तुम हो  आई,
    जिसमे  यह  दुनिया समाई     ।                          

    तुम ही  हो  तिरंगे की शान,
    तुमसे ही है देश का मान,
    तुमसे ही है देश का मान….।।

    यक्षिता जैन , रतलाम मध्य प्रदेश

    तू नारी है तू शक्ति है

    “भारत की शान हो,
    हम सबकी अभिमान हो!
    स्वर्णिम इतिहास के लिए,
    देश की गौरव गान हो!!”

    “खुशियों का संसार हो,
    जीवन का आधार हो !
    प्रेम की शुरुआत हो,
    जीवन का आगाज हो!!”

    “माता का मान हो,
    पिता का सम्मान हो!
    पति की इज्जत हो,
    रिश्तो का शान हो!!”

    “जीवन की छाया हो,
    मोहभरी माया हो!
    जीवन को परिभाषित,
    करने वाली निबंध हो!!”

    “स्नेह,प्रेम,ममता,का भंडार हो,
    आज बनी युग की निर्माता हो!
    नारी तुम स्वतंत्र हो,
    जीवन धन यंत्र हो!!”

    कृष्णा चौहान

    नारी तू ही शक्ति है

    नारी तू कमजोर नहीं, तुझमें अलोकिक शक्ति है,
    भूमण्डल पर तुमसे ही, जीवों की होती उत्पत्ति है।
    प्रकृति की अनमोल मूरत, तू देवी जैसी लगती है,
    परिवार तुझी से है नारी, तू दिलमें ममता रखती है।।

    म से “ममता”, हि से “हिम्मत” ला से तू “लावा” है,
    महिला का इतिहास भी, हिम्मत बढ़ाने वाला है।
    ठान ले तो पर्वत हिला दे, विश्वास नहीं ये दावा है,
    हिम्मत करे तो दरिंदों की, जान का भी लाला है।।

    याद कर अहिल्याबाई, रानी दुर्गावती भी नारी थी,
    दुश्मन को छकाने वाली, लक्ष्मी बाई भी नारी थी।
    शीशकाट भिजवाने वाली, हाड़ीरानी भी नारी थी,
    सरोजिनी नायडू, रानी रुद्रम्मा देवी भी नारी थी।।

    वहशी हैवानों की नजरों में, रिश्ते ना कोई नाते है,
    मां, बहन, बेटियों से भी, विश्वासघात कर जाते हैं।
    मौका मिले तो वहशी गिद्ध नोच नोच खा जाते हैं,
    सबूत के अभाव में दरिंदे, सज़ा से भी बच जाते हैं।।

    तू ही काली, तू ही दुर्गा, तू ही मां जगदम्बा है,
    खड़्ग उठाले उस पर तू, जो मानवता ही खोता है।
    निर्बल समझे जो तुझको, पालता मन में धोखा है,
    सबक सिखादे वहशियों को, समझते जो “मौक़ा” है।।

    आम आदमी समीक्षा और चर्चा कर दूर हो जाते हैं,
    पीड़ित नारी “अपनी नहीं”, इसी से संतुष्ट हो जाते हैं।
    घटना घटने के बाद बहना, सब सहानुभूति जताते हैं,
    जिम्मेदार, संभ्रांत व्यक्तियों के, वक्तव्य छप जाते हैं।

    अब नारी तू ही हिम्मत करले, शक्तियों को जगाले तू,
    अपने मुंह को ढकने वाले, पल्लू को कफ़न बनाले तू।
    इज्ज़त पे जो भी हाथ डाले, उसी को सबक सिखादे तू,
    आंखों से खूनी आंसू पोंछ, गुस्से को हथियार बनाले तू।

    है बेमिसाल नारी

               कहते है इसे नारी
               है विश्वास से भरी |

               शक्ति की मिसाल
              रखती सबका ख्याल |

                 है समझ से परे
                काल भी इससे डरे |
            
                 आँसुओ की गागर
                 पर करे नहीं उजागर |

           है अनोखी ये ममता की देवी
              है निशब्द जगत हर कवि |

                  जीवन की रचयिता
                 हर स्थिति की विजेता |

       है ज़रा सी प्यार की भूखी
       ना करो उसे दुखी |

      लगन से उसका जतन कर
      वो संवारे स्वर्ग जैसा तुम्हारा घर|  

    रिंकू सेन

    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है

    पंडित जवाहर लाल जी कह गए,
    लोगों को जगाने के लिए,
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    घर परिवार की जिम्मेदारी हंस कर उठा लेती है
    किसी से कुछ ना कहती अपने दुख सारे सह लेती है.
    जानती है वह अच्छे से खुद को मजबूत बनाना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    पिता के घर की बिटिया रानी भाई बहनों की मां बन जाती है.
    ससुरजी के घर की लक्ष्मी होती पत्नी स्वरूप में पति की जां बन जाती है.
    जानती है वह अपना कर्तव्य निभाना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    श्रृष्टि की रचना भी एक महिला आदि भवानी मां ने की है.
    महिलाओं को मां के रूप में देवी मां की उपमा दी है.
    इस संसार में महिलाओं का होना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    एक बार जो नारी कदम उठाती है.
    अपने परिवार गांव को आगे बढ़ाती है.
    उसका शिक्षित भी होना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना भी जरूरी है.

    दहेज प्रथा अशिक्षा असमानता का सामना करती है.
    यौन हिंसा भ्रूण हत्या का भी दुःख वह सहती है.
    इन सब पर अब रोक भी लगाना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    घरेलू हिंसा वैश्यावृत्ति मानव तस्करी भी सहती है.
    लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में इनको पीछे धकेलती है.
    महिलाओं को अब सशक्त बनाना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    महिला पुरुष के बीच असमानता से जन्म समस्याओं का होता है.
    इन समस्याओं के कारण राष्ट्र का विकास बाधित होता है.
    महिलाओं को पुरुषों के बराबर होने का अधिकार होना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    भारतीय समाज में अब महिलाओं में सशक्तिकरण लाना होगा.
    महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना होगा.
    महिलाओं के विरुद्ध अपनी बुरी सोच को बदलना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    रीता प्रधान

    भारतीय स्त्रियों पर कविता

    स्त्री

    कोई व्रत है नहीं औरत के लिए
    उपवास नहीं कन्या के लिए,
    पत्नी का व्रत है पति के लिए
    माँ का उपवास है सुत के लिए।
    फिर भी जाने किस मिट्टी से
    औरत को बनाया ईश्वर ने,
    नए जीव को जन्म भी देती है
    लंबी सी उम्र जी लेती है।

    सीता

    पति की अनुगामिनी बनती है
    हर सुख दुख में संग चलती है,
    महल हो या वनवास ही हो
    हर पथ सहभागिनी बनती है।
    पर अग्निपरीक्षा देकर भी
    जब परित्यकता बन जाती है,
    निज स्वाभिमान की रक्षा में
    धरती में समा भी जाती है।

    द्रौपदी

    मत्स्य चक्षु भेदा जिसने
    निज हृदय में उसे बिठाती है,
    पर मातृ आज्ञा की खातिर
    वह पांच कंत अपनाती है।
    ऐसी कुलवधू द्यूत में जब
    दांव पर लगाई जाती है,
    निज सखा को विनय सुनाकर तब
    वो मानिनी लाज बचाती है।

    राधा

    वो परम प्रेयसी बनती हैं
    बंसी बट में यमुना तट पर,
    प्रियतम से दूर विरह सहकर
    जीवन न्योछावर करती है।

    मीरा

    भक्ति में जोगन बनती है
    प्रेम अनन्य वो करती है,
    हंसकर विष भी पी जाती है
    मूरत में समाहित होती है।

    शबरी

    बृहद प्रतीक्षा करती है
    अपने गृह प्रभु के आने की,
    वो प्रेम से जूठे बेर खिलाकर
    परमधाम को पाती है।

    उर्मिला

    चौदह वर्ष दूर प्रियतम से
    महल में वन सी रहती है,
    भाई संग भेज प्राणप्रिय को
    वह विरह वेदना सहती है।

    पन्ना धाय

    निज सुत उत्सर्ग वो करती है
    राजपुत्र की रक्षा में,
    ऐसी बलिदानी थी नारी
    यूं राजभक्ति वो निभाती है।

    रानी लक्ष्मी बाई

    घोड़े पर चढ़ दत्तक सुत बांध
    रणचंडी बन जाती है,
    राज्य की रक्षा करने को
    बलिदानी जान लुटाती है।

    सावित्री

    पतिव्रत धर्म निभाती है
    नित सत्यकर्म अपनाती है,
    मृत पति के प्राण को दृढ़ होकर
    यमराज से छीन भी लाती है।

    सशक्त नारी

    नारी की शक्ति न कम आंको
    जो ठान ले वो कर जाती है,
    भावना के बस कमज़ोर हो वो
    बिन मोल के ही बिक जाती है।

    चाह

    कितने किरदार निभाती है
    बदले में किंचित चाह लिए,
    कुछ प्यार मिले, सम्मान मिले
    थोड़ी परवाह चाहती है।
    कोई उसके लिए भी व्रत रखे
    यह लेशमात्र भी चाह नहीं,
    बस उसके किए की कद्र करे
    इतना सा मान चाहती है।।

    नारी तू ही शक्ति है

    नारी तू कमजोर नहीं, तुझमें अलोकिक शक्ति है,
    भूमण्डल पर तुमसे ही, जीवों की होती उत्पत्ति है।
    प्रकृति की अनमोल मूरत, तू देवी जैसी लगती है,
    परिवार तुझी से है नारी, तू दिलमें ममता रखती है।।

    म से “ममता”, हि से “हिम्मत” ला से तू “लावा” है,
    महिला का इतिहास भी, हिम्मत बढ़ाने वाला है।
    ठान ले तो पर्वत हिला दे, विश्वास नहीं ये दावा है,
    हिम्मत करे तो दरिंदों की, जान का भी लाला है।।

    याद कर अहिल्याबाई, रानी दुर्गावती भी नारी थी,
    दुश्मन को छकाने वाली, लक्ष्मी बाई भी नारी थी।
    शीशकाट भिजवाने वाली, हाड़ीरानी भी नारी थी,
    सरोजिनी नायडू, रानी रुद्रम्मा देवी भी नारी थी।।

    वहशी हैवानों की नजरों में, रिश्ते ना कोई नाते है,
    मां, बहन, बेटियों से भी, विश्वासघात कर जाते हैं।
    मौका मिले तो वहशी गिद्ध नोच नोच खा जाते हैं,
    सबूत के अभाव में दरिंदे, सज़ा सेभी बच जाते हैं।

    तू ही काली, तू ही दुर्गा, तू ही मां जगदम्बा है,
    खड़्ग उठाले उस पर तू, जो मानवता ही खोता है।
    निर्बल समझे जो तुझको, पालता मन में धोखा है,
    सबक सिखादे वहशियों को, समझते जो मौक़ा है।

    आम आदमी समीक्षा और चर्चा कर दूर हो जाते हैं
    पीड़ित नारी “अपनी नहीं”, इसी से संतुष्ट हो जाते हैं
    घटना घटने के बाद बहना सब सहानुभूति जताते हैं
    जिम्मेदार, संभ्रांत व्यक्तियों के, वक्तव्य छप जाते हैं

    अब नारी तू ही हिम्मत करले, शक्तियों को जगाले तू
    अपने मुंह को ढकने वाले, पल्लू को कफ़न बनाले तू
    इज्ज़तपे जोभी हाथडाले, उसीको सबक सिखादे तू
    आंखसे खूनीआंसू पोंछ, गुस्सेको हथियार बनाले तू

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान

    मैं एक नारी हूँ

    मुझसे ही इस सृष्टि का निर्माण हुआ है,
    मैं ना कभी हारूँगी, ना मैं कभी हारी हूँ।

    मेरा वजूद से ही कायम है इस दुनिया का वजूद,
    मैं कोई उपभोग की वस्तु नही, मैं एक नारी हूँ।

    कितने कारनामे अंजाम दिए मैंने, कितनो को पछाड़ा है,
    आ जाऊं गर मैदान में तो मैं सौ पर भी भारी हूँ।

    कभी पुलिस बनकर रक्षा करती हूं, कभी मैं एक खिलाड़ी हूँ,
    राजनीति में गर हिस्सा लूं तो मैं भी सत्ताधारी हूँ।

    मोम सी फितरत है मेरी, ममता की मैं मूरत हूँ,
    क्रोधित कोई गर मुझे पाए तो मैं एक चिंगारी हूँ।

    कितने अपराध होते है, जो बस मेरे ही खिलाफ होते है,
    मुझको शिकार समझने वालों मैं भी एक शिकारी हूँ।

    हर रूप में मैं ढल जाती हूँ, हर रिश्ते को आज़माती हूँ,
    सहनशीलता की मूरत हूँ, ना समझना बेचारी हूँ।

    आजाद अशरफ माद्रे

    बेटी तो है फूल बागान( महिला जागृति पर रचना )

    गांव, शहर में मारी जाती, बेटी मां की कोख की,
    बेटी मां की कोख की, बेटी मां की कोख की।।

    जूही बेटी, चंपा बेटी, चन्द्रमा तक पहुंच गई,
    मत मारो बेटी को, जो गोल्ड मेडलिस्ट हो गई,
    बेटी ममता, बेटी सीता, देवी है वो प्यार की।
    बेटी बिन घर सूना सूना, प्यारी है संसार की,
    गांव, शहर में मारी जाती, बेटी मां की कोख की।।

    देवी लक्ष्मी, मां भगवती, बहन कस्तूरबा गांधी थी,
    धूप छांव सी लगती बेटी, दुश्मन तूने जानी थी।
    कल्पना चावला, मदरटेरेसा इंदिरागांधी भी नारी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वो तो, झांसी वाली रानी थी,
    गांव, शहर में मारी जाती, बेटी मां की कोख की।।

    पछतावे क्यूं काकी कमली, किया धरा सब तेरा से,
    बेटा कुंवारा रह गया तेरा, करमों का ही फोड़ा है।
    गांव-शहर, नर-नारी सुनलो, बेटा-बेटी एक समान,
    मत मारो तुम बेटी को, बेटी तो है फूल बागान।।

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान

  • विश्व बाल दिवस पर कविता

    विश्व बाल दिवस पर कविता

    जवाहरलाल नेहरू

    विश्व बाल दिवस पर दोहा:-

    बाल दिवस पर विश्व में,
    हों जलसे भरपूर!
    बच्चों का अधिकार है,
    बचपन क्यों हो दूर!!१


    कवि , ऐसा साहित्य रच,
    बचपन हो साकार!
    हर बालक को मिल सके,
    मूलभूत अधिकार!!२


    बाल श्रमिक,भिक्षुक बने,
    बँधुआ सम मजदूर!
    उनके हक की बात हो,
    जो बालक मजबूर!! ३

    बाबूलाल शर्मा

    अलबेला बचपन पर हास्य कविता

    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!
    अंतरमन में भरा उजाला,बाहर सघन अँधेरा था!


    खेतों की पगडँडियाँ मेरे,जोगिँग वाली राहें थी!
    हरे घास की बाँध गठरिया,हरियाली की बाँहें थी!
    चलता रहता में अनजाना,माँ बापू का पहरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!…….!!(१)

    गाय भैंस बहुतेरी मेरे,बकरी बहुत सयानी थी!
    खेतों की मैड़ों पर चरकर,बनती सबकी नानी थी!
    चरवाहे की नजरें चूकी,दिन में घना अँधेरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……..!!(२)  

    साथी ग्वाले सारे मेरे, ‘झुरनी’ सदा खेलते थे!
    गहरी ‘नाडी’ भरी नीर से,मिलकर बहुत तैरते थे!
    चिकनी मिट्टी का उबटन था,मुखड़ा बना सुनहरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!…….!!(३)

    मोरपंख की खातिर सारे,बाड़ा बाड़ा हेर लिया!
    तब जाकर पंखों का बंडल,घर में मैनें जमा किया!
    एक रुपये में बेचे सारे,हरख उठा मन मेरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……!!(४)

    ‘बन्नो’ की बकरी को दुहकर, हम छुप जाते खेतों में!
    डाल फिटकरी बहुत राँधते,और खेलते रेतों में!
    ‘कमली- काकी’ देय ‘औलमा’,दूध चुराया मेरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……!!.(५)  

    भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’
    टापरवाड़ा!!

    अच्छा था बचपन मेरा

    कहाँ फँस गए
    जिम्मेदारियों के दलदल में
    होकर जवान
    इससे तो अच्छा था
    बचपन मेरा

    न कोई दिखावा
    न कोई बहाना
    सब कुछ अपना ही अपना
    न मेरा
    न तेरा
    इससे तो अच्छा था
    बचपन मेरा

    सब कुछ मिल जाता था
    छोटी सी जिद्द से
    रोकर आँसू बहाने से
    अब तो
    बहाना पड़ता है पसीना
    शाम हो या सवेरा
    इससे तो अच्छा था
    बचपन मेरा

    सुबह खेलते, खेलते शाम
    न कोई चिंता
    न कोई काम
    हर एक का प्यारा
    हर कोई था प्यारा
    पर अब
    रिश्ते नाते भूल कर
    पैसे कमाने में
    बीत रहा जीवन तेरा
    इससे तो अच्छा था
    बचपन मेरा

    बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
    गॉंव – रिसालियाखेड़ा
    जिला – सिरसा (हरियाणा)

    नई सदी का बचपन

    न मिट्टी के खिलौनें,
    न वो पारम्परिक खेल।
    जहाँ पकड़म-पकड़ाई, छुपम-छुपाई
    चोर-सिपाही, बच्चों की रेल।
    अब न दादी के हाथ का मक्खन
    न नानी का वो दही-रोटा,
    राजा-रानी की कहानियाँ
    जो सुनाती थी दादी-नानी
    अब बन कर रह गई
    एक कहानी।


    स्कूल से सीधा पीपल पर जाना
    घंटो खेल खेलना और बतियाना
    मित्र मण्डली सँग घूमना
    वो बारिश में नहाना
    वो बच्चों का बचपन
    और बचपन की मस्ती
    न जाने कहाँ खो गई
    विज्ञान की इस नई सदी में
    शायद मोबाइल और कंप्यूटर
    के भेंट चढ़ गई।

    बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
    गॉंव – रिसालियाखेड़ा
    जिला – सिरसा (हरियाणा)


    मिट्टी जैसा होता है बचपन


    मिट्टी जैसा होता है बचपन
    जैसे ढालो ढल जाए
    कूट-पीट कर जैसा चाहो
    ये वैसा ही उभर आए!

    जल कर सोना कुंदन होता
    ऐसे ही बचपन कि कहानी
    जितना तपाए कुम्हार बर्तन को
    वो पक्का बनता उतना ही !!

    नवीन विचारों का प्रभाव
    ऐसा ही होता बचपन पर
    नीर पड़े जब माटी पर
    नव रूप मिले उसको नित पल !!!

    पक जाए बचपन बने जवानी
    जैसे तपे माटी सुहानी
    मिले गुण अब तक जो प्राणी
    वही फलेंगे पूरी जवानी !!!

    कुट ले पिट ले ऐ माटी तू
    बाद में न कहना कुम्हार से
    ‘मन’ तो थी बावरी बाबा
    तुम तो ‘मन’ को समझाते !!

    मंजु ‘मन’

    चाचा फिर तुम आओ ना

    चाचा नेहरु न्यारे थे
    हम बच्चों के प्यारे थे
    चाचा फिर तुम आओ ना
    हमको गले लगाओ ना

    दूर जहां तुम जाओगे
    बच्चों से मिल आओगे
    हमको साथ धुमाओ ना
    बच्चों से मिलवाओ ना,

    गुब्बारे हम टांगेंगे
    केक सभी हम काटेंगे
    नवम्बर चौदह आओ ना
    बाल दिवस मनवाओ ना,

    चाचा नेहरु सबके हो
    प्यार दुलार के पक्के हो
    स्वर्ग हमें दे जाओ ना
    प्यार हमें कर जाओ ना,

    तुम बच्चों में बच्चे हो
    अपने मन के सच्चे हो
    आशीषित कर जाओ ना
    हम पर प्यार लुटाओ ना,

    जन्म मुबारक तुमको हो
    हैप्पी हैप्पी बड्डे हो
    बांट मिठाई खाओ ना
    खुशियां मिल मनाओ ना।

    रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

    बच्चे है कल का भविष्य

    बच्चे होते मन के सच्चे,

    है भविष्य के तारे,

    पढ़ते – लिखते – खेलते रहे,

    बने देश के सितारें |

    अच्छे – अच्छे पाठ इन्हे,

    है सिखाना हमे इन्हें,

    आसमा के तारो को,

    छुने का सपना इन्हे दिखाना हैं |

    प्रगति के मार्ग पर इन्हें बढ़ाना हैं,

    देश का भविष्य बदलना हैं,

    बच्चों को सजा सवार के,

    स्कुल हमे भेजना हैं|

    आज के बच्चे को कल का,

    देश का भविष्य बनाना हैं |

    जब मैं छोटा था – मनीभाई नवरत्न

    जब मैं छोटा था
    जब मैं छोटा था
    तब बहुत मोटा था ।
    तब ना थी चिंता ना जलन ना दर्द ।
    तब थी फटी हुई पेंट और नाक में सर्द ।

    आज फिर उसी पल को पाने की सोचता हूं ।
    गुमनाम जीवन में बचपन को खोजता हूं ।
    उस पल जब गिरता जमीन में
    तब उठाता कोई ।
    आज जब गिरता हूं तब दुनिया रहती खोई ।

    उस पल ऊटपटांग बातें
    दिल में घर कर जाती थी ।
    आज सच्ची कड़वी बातें
    नया संकट को लाती हैं
    तब नोट थे कागज के चिट्ठे ।
    जो लाती थी बेरकुट व नड्डे ।

    आज बन गए वे जिंदगी और जुनून ।
    जिसे पाने को लोग कर जाएं बंदगी और खून।
    बड़ा घिनौना ये जवानी की मारामारी ।
    बचपन में ही छुपी जीवन की खुशियां सारी ।

    तभी तो कहूं –
    “समाज को बाल अपराध से बचाएं ।
    बाल शिक्षा से उनको काबिल बनाए ।
    तब भ्रष्टाचार ना टिक पायेगी ।
    खुली बाजार में उसकी इज्जत लूट जाएगी।”

    मनीभाई नवरत्न

    हां मैं बच्चा हूं

    हां मैं बच्चा हूं ।
    अकल का थोड़ा कच्चा हूं।
    मुझे आता नहीं झूठ बोलना
    और फरेब करना
    मैं तो दिल से नेक और सच्चा हूं ।
    हां मैं बच्चा हूं ।
    ( मनीभाई रचित )

    बाल दिवस पर रुचि के तीन कविता

    1 बाल कविता – “बच्चे”

    बच्चों की आई बारी |
    है मस्ती की तैयारी ||
    आई छुट्टी गर्मी की |
    ठंडी – ठंडी कुल्फी की ||

    भोले -भाले प्यारे हैं |
    मीठे खारे तारे हैं ||
    कच्ची माटी के भेले |
    मिट्टी की रोटी बेलें ||

    छक्का मारे राहों में |
    टेटू छापे गालों में ||
    नाना -नानी आये हैं |
    ढेरों खाजे लाये हैं ||

    कवियित्री – सुकमोती चौहान “रुचि”

    2 भारत के वीर बच्चे हम

    भारत के वीर बच्चे हम
    वचन के पक्के,मन के सच्चे हम
    काट डालें अत्याचार का सर
    तलवार की वो धार हम।
    जला दें बुराइयों को
    आग की ओ लपटें हैं हम।
    उखाड़ दें अन्याय की जड़ें
    तूफान की ओ शबाब हम।
    बहा ले चलें गिरि विशाल
    नदी की हैं ओ सैलाब हम।
    मिलकर जिधर चलें हम
    बाधाओं से न डरें हम
    टकरायें हमसे किसमें है दम
    ओ मजबूत फौलाद हैं हम।
    वतन के रखवाले हम
    आजादी के मतवाले हम
    मातृभूमि के दुलारे हम
    वीरों ने अपने रक्त से सींचा
    उस चमन के महकते सुमन हम
    भारत के वीर बच्चे हम।

    कवियित्री – सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया, महासमुंद, छ. ग.

    3 शिशु

    कितनी अनुपम है यह छवि
    मस्ती में चूर अलबेली चाल
    कितनी प्यारी कितनी नाजुक
    नन्हें नरम हाथों की छुअन।
    क्या , है ऐसा कोमल? दुनिया का कोई स्पर्श?
    वह चपलता वह भोलापन
    प्यारी सूरत दर्पण सा मन
    पल में रोना पल में हँसना
    इतना सुखद इतना सुंदर
    क्या है ऐसा आकर्षक? दुनिया का कोई सौंदर्य?
    मन को आनंदित करे
    तुतली बातों की मिठास
    कितना मोहक ,कितना अनमोल
    अधरों की निश्छल मुस्कान
    क्या है ऐसा पावन? दुनिया में हँसी किसी की?
    पहले पग की सुगबुगाहट से
    थुबुक – थाबक चलना वह
    पग नुपूर की छन – छन में
    लहर सा नाचना वह
    बाल सुलभ वह चेष्टाएँ
    फीकी लगे परियों की अदाएँ
    क्या है इतना सुखदायी ? दुनिया का कोई वैभव विलास?

    कवियित्री – सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया, महासमुंद, छ. ग.

    बाल दिवस पर कविता के सामान आप के मन को आनंदित करे ऐसी कविता बहार की कुछ अन्य कविताये :- शाकाहारी दिवस पर कविता

  • गणतंत्र दिवस पर कविता

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    गणतंत्र दिवस पर कविता : गणतन्त्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था।

    Republic day

    गणतंत्र पर दोहा

    वीरों के बलिदान से,मिला हमें गणतंत्र।
    जन-जन के सहयोग से,बनता रक्षा यंत्र।।

    गणतंत्र दिवस हो अमर,वीरों को कर याद।
    अपनों के बलिदान से,भारत है आजाद।।

    भगत सिंह,सुखदेव को,नमन करे यह देश।
    आजादी देकर गए,सुंदर सा परिवेश।।

    आपस में लड़ना नहीं,हम सब हैं परिवार।
    बंद करें संवाद से,आपस के तकरार।।

    झंडा लहराते रहें,भारत की यह शान।
    गाएँ झंडा गीत हम,राष्ट्र ध्वज हो मान।।

    राजकिशोर धिरही

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    सज रहा गांव गली

    सज रहा गांव गली, सज रहा देश।
    दिन ऐसा आया है ,  जो है विशेष।
    दुनिया बदल रही पल पल में।
    चलो आज हम भी  लगा लें रेस।
    जश्न ए आजादी का ,हम मनाएंगे
    चलो इक नया इंडिया, हम बनाएंगे ।
    तो आओ मेरे संग गाओ, मेरे यारा
    झूमते हुए लगालो ये नारा…
    वन्दे मातरम….


    सुनो सुनो ध्यान से, मेरी जुबानी।
    तकलीफ़ो से भरी, देश की कहानी।
    फिरंगियों ने की थी जो , मनमानी।
    पड़ गई जिनको  भी मुंह की खानी ।
    देश के वीरों का नाम, हम जगायेंगे।
    चलो इक नया इंडिया, हम बनाएंगे ।
    तो आओ मेरे संग गाओ, मेरे यारा
    झूमते हुए लगालो ये नारा…
    वन्दे मातरम….

    -मनीभाई नवरत्न

    जन गण मन गा कर देखो- राकेश सक्सेना

    बस एक बार छू भर कर देखो,
    दिल की तह से महसूस कर देखो,
    गांधी भगत पटेल की तस्वीर पर,
    ख़ून पसीने की बूंदें तो देखो।।

    कितना त्याग किया वीरों ने,
    तस्वीर में छिपी सच्चाई तो देखो,
    बीवी बच्चे परिवार का मोह,
    देश हित में छोड़ कर तो देखो।।

    भूखे-प्यासे जंगल बीहड़ों में,
    भटक-भटक जी कर तो देखो,
    मीलों पैदल चल चलकर,
    जनजन में भक्ति जगाकर देखो।।

    आज़ादी हमें मिली थी कैसे,
    एकबार तस्वीरें छू कर तो देखो,
    अनशन आंदोलन फांसी का दर्द,
    देशहित में मर कर तो देखो।।

    आज़ाद भारत में इतराने वालों,
    वीर सेनानियों के आंसू तो देखो,
    क्या हमने राष्ट्र धर्म निभाया,
    दिल पर हाथ रख कर तो देखो।।

    कालाबाजार, भ्रष्टाचारों से,
    मुक्त भारत के सपने तो देखो,
    वीर सेनानियों की तस्वीरों पर,
    सच्ची श्रद्धांजलि देकर भी देखो।।

    फिर गर्व से सर उठा कर देखो,
    फिर झण्डा ऊंचा लहराकर देखो,
    फिर दिल में भक्ति जगाकर देखो,
    फिर जन गण मन भी गा कर देखो।।

    राकेश सक्सेना

    आया दिवस गणतंत्र है

    आया दिवस गणतंत्र है
    फिर तिरंगा लहराएगा
    राग विकास दोहराएगा
    देश अपना स्वतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    नेहरू टोपी पहने हर
    नेता सेल्फ़ी खिंचाएगा।
    आज सत्ता विपक्ष का
    देशभक्ति का यही मन्त्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    चरम पे पहुची मंहगाई
    हर घर मायूसी है छाई
    नौ का नब्बे कर लेना
    बना बाजार लूटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।


    भुखमरी बेरोजगारी
    मरने की है लाचारी
    आर्थिक गुलामी के
    जंजीरो में जकड़ा
    यह कैसा परतन्त्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    सरहद पे मरते सैनिक का
    रोज होता अपमान यहाँ
    अफजल याकूब कसाब
    को मिलता सम्मान यहां
    सेक्युलरिज्म वोटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    सेवक कर रहा है शासन
    बैठा वो सोने के आसन
    टूजी आदर्श कोलगेट
    चारा खाकर लूटा राशन
    लालफीताशाही नोटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।


    भगत -राजगुरु- सुभाष-गांधी
    चला आज़ादी की फिर आँधी
    समय की फिर यही पुकार है
    जंगे आज़ादी फिर स्वीकार है
    आ मिल कसम फिर खाते हैं
    देश का अभिमान जगाते हैं।
    शान से कहेंगे देश स्वतंत्र है
    देखो आया दिवस गणतंत्र है।


          ©पंकज भूषण पाठक”प्रियम”

    अमर रहे गणतंत्र दिवस

    अमर रहे गणतंत्र दिवस
    ले नव शक्ति नव उमंग
    अमर रहे गणतंत्र दिवस।
    ले नव क्रांति शांति संग।


    हो सबका ध्वज तले संकल्प।
    एक रहें हम नेक रहें।
    हो हम सबका एक विकल्प।
    ममता समता हो हम में


    नव भारत की नई नींव
    मज़बूत बनाएँ हम सबमें
    इस शक्ति का हो संचार
    कुर्बां होने की शक्ति हो।


    हममें निहित हो सदाचार।
    विश्व बंधुत्व पर कर विश्वास।
    ऐ बंधु कदम बढाये जा
    अंतिम श्वास तक नि:स्वार्थ।


    विश्व शांति की लिए मशाल।
    फैला दे जग में संदेश
    लिए विशाल लक्ष्य विकराल।
    जला दे अंधविश्वास की मूल।
    तोड़ दे जाति भाषा वाद।
    प्रगति के ये बाधक शूल।


    अमर रहे गणतंत्र दिवस।
    सच कर दो यह विश्वास
    अमर रहे गणतंत्र दिवस।

    • सुनील गुप्ता  सीतापुर सरगुजा छत्तीसगढ

    मैंने हिंदुस्तान देखा है

    मैंने जन्नत नहीं देखा यारों मैंने हिंदुस्तान देखा है
    भाईचारे से रहते हर हिंदू और मुसलमान देखा है
    गीता-क़ुरान रहते साथ और पवित्र गंगा कहते हैं
    हरे-भगवे की छोड़ बैर सब जय जय तिरंगा कहते हैं


    लहराओ तिरंगा और सब जय जयकार करो
    दुश्मन से ना लड़ो बुराइयों पर ही वार करो
    सलाम ऐसे सैनिक जो स्वार्थ नंगा कहते हैं
    घर वालों की फ़िकर छोड़ जय जय तिरंगा कहते हैं


    तीन रंग के झण्डे में अद्भुत सामर्थ्यता छाई है
    ना जाने कितनों ने इसकी ख़ातिर जान गवाई है
    इंक़लाबियों को याद कर सुनाओ उनकी कहानी
    गर्व से भरो सर्वदा भले ही आँख में ना आए पानी


    आज़ादी के ख़ातिर तुम भी हो जाओ मतवाले
    लड़ो अपने आप से बन जाओ हिम्मत वाले
    आज़ादी के दीवानों को कल हमने ये कहते देखा
    जय जय हिंदुस्तान के नारों को एक साथ रहते देखा

    -दीपक राज़

    नव पीढ़ी हैं हम

    नव पीढ़ी हैं हम हिन्दुस्तान के
    वंदे मातरम्,वंदे मातरम् गाएंगे

    सबसे बड़ा संविधान हमारा
    अम्बेडकर पर हमें है गर्व
    लोकतंत्र है अद्वितीय हमारा
    चलो मनाते हैं गणतंत्र पर्व
    आजादी के हैं परवाने
    वतन पे जान लुटाएंगे
    नव पीढ़ी हैं……

    हम हैं भारत माता के लाल
    हमारी बात ही कुछ और है
    दुनिया एक दिन मानेगी
    हम ही जमाने की दौर हैं
    हमारे हौसले हैं फौलादी
    कांटों में फूल खिलाएंगे
    नव पीढ़ी हैं…..

    अब होगा दिग्विजय हमारा
    शिखर पर परचम लहराएगा
    वो  दिन अब  दूर  नहीं है
    जब चांद पे तिरंगा छाएगा
    इरादे नेक हैं हमारे
    दुनिया को दिखलाएंगे
    नव पीढ़ी हैं……

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    बोल वंदे मातरम्

    सांसों में गर सांसे है,
    और हृदय में प्राण है।
    अभिमान तेरा..है तिरंगा,
    और राष्ट्र..तेरी शान है।
    सिंह-सा दहाड़ तू…
    और बोल वंदेमातरम्…
    और बोल वंदेमातरम्….।


    है ये ओज की वही ध्वनि,
    जिससे थी अंग्रेजों की ठनी।
    हर कोनें-कोनें में जय घोष था,
    बाल-बाल में भरता जो रोष था।
    करके मुखर गाया जिसे सबने,
    वह गीत है वंदेमातरम्…..
    चल तू भी गा और मै भी गाऊं,
    हृदय के स्पंदन में वंदेमातरम्,
    और बोल वंदेमातरम्….
    और बोल वंदे मातरम्….।


    वीरों में जिसने अलख जगाया था,
    क्रांति लहर..को ज्वार दिलाया था।
    जिसने गगन में लहराया जय हिंद,
    वो राग है वंदे, वंदे मातरम्…
    वो राग है वंदे…..,वंदे मातरम्….।
    जिसे सुनकर शत्रु सारे कांपे थे,
    डरकर जिससे सरहद से वो भागे थे।
    गर्व करता है सैनिक जिसपे,
    वो जाप है अमर, वंदे मातरम्…।


    वो जाप है वंदे मातरम्,वंदे मातरम्।
    पंजाब,सिंध, गुजरात और मराठा,
    द्राविड़,उल्कल,बंग एकता का धार है।
    पहचान है हिन्द का है वंदेमातरम्,
    श्वास में जो ज्वाल सा निकले…,
    शब्द-शब्द में है जिसमें बसते मेरे प्राण हैं।
    वो गीत मेरा अभिमान है…..
    पुक्कू बोल जोर से वंदे मातरम्…..।।
    और बोल वंदे….मातरम्….।
    और बोल वंदे….मातरम्….।

        ©पुखराज यादव “प्राज”
           पता- वृंदावन भवन-163, विख- बागबाहरा,जिला- महासमुन्द (छ.ग.) 493448

    स्वतन्त्रता का दीप

    स्वतन्त्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा


    (१)
    अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरी शान की
    ये बात आ खडी है अब तो तेरे स्वाभिमान की
    कटे नहीं,मिटे नहीं,झुके नहीं तो बात है
    अपने फर्ज पर सदा डटे रहे तो बात है
    तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जायेगा
    जो देश प्रति है फर्ज अपने फर्ज तू निभाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!

    (२)
    जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले
    छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले
    भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गयी
    नहीं झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गयी
    उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो
    एक-एक करके सबको देश से मिटाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!


    (३)
    मिली हमें आजादी कितनी माँ के लाल खो गये
    हँसते-हँसते भारती की गोद  जाके खो गये
    आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें
    भेद-भाव में बँटे जो साथ में मिला इन्हें
    सौंप ये वतन गये जो हमसे उम्मीदें बाँध जो
    सँवार के उम्मींदे उनकी देश को सजाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!
    स्वतन्त्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा !
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!


    शिवाँगी मिश्रा

    भारत की शान पर हो जाऊंँ कुर्बान,
    लब पे सदा रहे भारत का गुणगान।
    देश के संविधान का एसा हुआ था आरंभ,
    26जनवरी1950 को गणतंत्र हुआ प्रारंभ।


    हिंदुस्तान है वीर पराक्रम योद्धाओं से भरा,
    देख युद्ध कौशल-साहस दुश्मन हम से डरा।
    बनो नेक इंसान न करो अनर्गल-बहस,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    इस आजादी की ख़ातिर कितने हुए बलिदान,
    मंगल पांडे लक्ष्मीबाई महात्मा गांधी जी महान।
    देश-प्रेम को अपनाकर देशद्रोहियों को भगाइए,
    परोपकार से नित-दिल में देश प्रेम को जगाइए।


    वीरों के पुत्र हो न,रखो हृदय में कशमकश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।
    भारतीय सविधान के निर्माता को सादर नमन,
    भीमराव अंबेडकर जी थे स्वतंत्रता का चमन ।दुश्मन-अंग्रेजों की कूटनीति,हुआ था विफल,
    क्रांतिकारियों के कारण ये मुहिम हुआ सफल।


    मनाओ सभी 73वें गणतंत्र दिवस की-यश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    हिंदुस्तान के सपूतों एक वादा करना,
    देश के दुश्मनों से हरगिज़ न डरना।
    नित करो अपने मातृभूमि से प्यार,
    देश रक्षा के लिए सदैव रहो तैयार।


    आतंकवाद-सांप्रदायिकता को दूर भगाओ,
    राष्ट्र रक्षा के लिए अभी से तैयार हो जाओ।
    दो सबको खुशियां न करो किसी को विवश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    हिंदू-मुस्लिम,जैन-बौद्ध,और सिख-ईसाई,
    न करो लड़ाई आपस में है सब भाई-भाई।
    याद रखो,एकता में ही है बल और शक्ति,
    सदैव हृदय में रहे हिन्दुस्तान की भक्ति।


    देश के वीरों दिल में रहे देश भक्ति का रस,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    सब मिलकर फहराएं तिरंगा ये देश की शान है,
    सभी राष्ट्रों से अनमोल हमारा हिन्दुस्तान है।
    कहता है “अकिल” भारत देश है सबसे प्यारा,
    विश्व गुरू कहें-जन,सबके आंखों का है ये तारा।


    ज्ञान के प्रकाश से दूर हो अज्ञानता का तमस,
    मुबारक हो आप सभी को, गणतंत्र दिवस।

    अकिल खान

    गणतंत्र दिवस – डॉ एन के सेठी

    लोकतंत्र का पर्व मनाएं।
    सभी खुशी से नाचे गाएं।।
    दुनिया में है सबसे न्यारा।
    यहभारत गणतंत्र हमारा।।

    इसकी जड़ है सबसे गहरी।
    इसकी रक्षा करते प्रहरी।।
    सबसे बड़ा विधान हमारा।
    नमन करे जिसको जग सारा।।

    लोकतंत्र का महापर्व है।
    हमको इस पर बड़ा गर्व है।।
    भारत प्यारा वतन हमारा।
    ये दुनिया में सबसे न्यारा।।

    भिन्न – भिन्न जाती जन रहते।
    विविध धर्म भाषा को कहते।।
    नाना संस्कृतियों का संगम है।
    खुशियाँ होती कभी न कम है।।

    उत्सव अरु त्यौहार मनाते।
    इक दूजे से प्यार जताते।।
    नारी का सम्मान यहाँ है।
    मेहमान का मान यहाँ है।।

    वसुधा को परिवार समझते।
    सर्वसुख की कामना करते।।
    करती पावन गंगा-धारा।
    सूरज फैलाए उजियारा।।

    हम दुश्मन को गले लगाते।
    सबमिल गीत खुशी के गाते।।
    करता हमसे जो गद्दारी।
    मिटती उसकी हस्ती सारी।।

    रण में पीठ न कभी दिखाते।
    दुश्मन के हम होश उड़ाते।।
    त्याग शील पुरुषार्थ जगाएं।
    लोकतंत्र का मान बढ़ाएं।।

    ©डॉ एन के सेठी

    उत्सव यह गणतंत्र का

    उत्सव यह गणतंत्र का , राष्ट्र मनाये आज ।
    जनमानस हर्षित सकल , खुशी भरे अंदाज ।।
    खुशी भरे अंदाज , गगनभेदी स्वर गाते ।
    भारत भूमि महान , प्रणामी भाव दिखाते ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , असंभव सारे संभव ।।
    लालकिले से गाँव , सभी पर होते उत्सव ।।

    उत्सव में उत्साह का , दिखता प्यारा रंग ।
    तन मन की संलग्नता , दुनिया होती दंग ।।
    दुनिया होती दंग , किये हम काम अजूबे ।
    भारत बना अनूप , प्रेम के छंदस डूबे ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , सभी जन के अधरासव ।
    रंगबिरंगे दृश्य , बने अब प्यारे उत्सव ।।

    उत्सव के दिन आज है, गाओ मंगल गान ।
    जल थल अरु आकाश में , उड़े तिरंगा शान ।।
    उड़े तिरंगा शान , मोद से हर्षित सारे ।
    सजे धजे सब लोग , आज हैं अतिशय प्यारे ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , सभी सुख होते उद्भव ।
    झूमे धरती आज , मनाते है सब उत्सव ।।

    रामनाथ साहू ” ननकी “

    भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    धरा हरित नभ श्वेत, सूर्य केसरिया बाना।
    सज्जित शुभ परिवेश,लगे है सुभग सुहाना।।
    धरे तिरंगा वेश, प्रकृति सुख स्वर्ग लजाती।
    पावन भारत देश, सुखद संस्कृति जन भाती।।

    भारत गर्वित आज,पर्व गणतंत्र हमारा।
    फहरा ध्वज आकाश,तिरंगा सबसे प्यारा।।
    केसरिया है उच्च,त्याग की याद दिलाता।
    आजादी का मूल्य,सदा सबको समझाता।।

    सिर केसरिया पाग,वीर की शोभा होती।
    सब कुछ कर बलिदान,देश की आन सँजोती।।
    शोभित पाग समान,शीश केसरिया बाना।
    देशभक्त की शान,इसलिए ऊपर ताना।।

    श्वेत शांति का मार्ग, सदा हमको दिखलाता।
    रहो एकता धार, यही सबको समझाता।।
    रहे शांत परिवेश , उन्नति चक्र चलेगा।
    बनो नेक फिर एक,तभी तो देश फलेगा।।

    समय चक्र निर्बाध,सदा देखो चलता है।
    मध्य विराजित चक्र, हमें यह सब कहता है।।
    भाँति भाँति ले बीज,फसल तुम नित्य लगाओ।।
    शस्य श्यामला देश, सभी श्रमपूर्वक पाओ।।

    धरतीपुत्र किसान, तुम इनका मान बढ़ाओ।
    करो इन्हें खुशहाल,समस्या मूल मिटाओ।।
    रक्षक देश जवान, शान है वीर हमारा।
    माटी पुत्र किसान,बनालो राज दुलारा।।

    अपना एक विधान , देश के लिए बनाया।
    संशोधन के योग्य, लचीला उसे सजाया।।
    देश काल परिवेश ,देखकर उसे सुधारें।
    कठिनाई को देख, समस्या सभी निवारें।।

    अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा।
    शुभ संस्कृति परिवेश,तिरंगा सबसे न्यारा।।
    बँधे एकता सूत्र, पर्व गणतंत्र मनाएँ।
    विश्व शांति बन दूत,गान भारत की गाएँ।।

    गीता उपाध्याय’मंजरी’ रायगढ़ छत्तीसगढ़

    आओ मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ

    सागर जिसके चरण पखारे
    गिरिराज हिमालय रखवाला है
    कोसी गंडक सरयुग है न्यारी
    गंगा यमुना की निर्मल धारा है
    अनेकताओ में बहती एकता
    अदभुत गणतंत्र हमारा है
    केसरिया सर्वोच्च शिखर पर
    मध्य में इसके तो उजियारा है
    यह चक्र अशोक स्तंभ का देखो
    तिरंगे के नीचे में हरियाला है
    तीन रंग का ये अपना तिरंगा
    ये हम सबको प्राणों से प्यारा है
    वीर सपूतों की ये पावन धरती
    शहीदों ने स्व लहू से संवारा है
    जनता यहां करती है शासन
    अकेले आजाद वो रखबारा है

    आचार्य गोपाल जी

    प्यारा तिरंगा हमारा है

    रहे जान से भी प्यारा तिरंगा हमारा है |
    शहीदो खून से सींचा इसे सवारा है |
    झुकने ना देंगे लहर रुकने ना देंगे |
    पर्वतो शिरमोर हिमालय हमारा है |

    चरण पखारता सागर गरजता है |
    योगो युगो बहती गंगा नाम प्यारा है | 
    महाराणा लक्ष्मी रवानी शान कहानी है |
    आबरू वतन जंगल जीवन गुजारा है |

    गर्व हमे हम भारत के है लाल |
    हो पैदा वतन के वास्ते हम दुबारा है |
    चाल दुश्मनों  अब चलती  नही |
    दिया जवाब मुकम्मल हिन्द बहारा है |

    हो मजहब कोई सब भाई समझते है |
    पड़ी जरूरत वतन सबको पुकारा है |
    मिली आजादी लाखो कुर्बानियों सिला |
    रहे कायम यही स्वर्ग शहिदों इसारा है |

    आए चाहे कितनी आंधिया ओ तूफान |
    हम डिगे नहीं वतन परस्ती सहारा है |
    मांग लेगा जान वतन जब भी हमारी |
    रख हथेली गरदन खुद ही पसारा है |
    यूं ही चलती रहे जस्ने आजादी सदा |
    आंच आये माँ भारती नहीं हमको गवारा हैं |

    श्याम कुँवर भारती

    तिरंगे का सम्मान

    देशभक्ति का गीत आओ फिर दुहराते हैं
    पावन पर्व राष्ट्र का रस्मों रीत निभाते हैं।
    स्वतंत्र देश के गणतंत्र दिवस पर फिर से
    एक दिन के अवकाश का जश्न मनाते है।

    सूट-बूट में अफसर,नेता खादी लहराते हैं
    भ्रष्टाचार की कालिख़ खादी में छिपाते है।
    नौनिहाल बेहाल भूखे सड़क सो जाते हैं।
    भ्रस्टाचारी जेल में बैठ बटर नान उड़ाते हैं।

    सरहद पे जवान गोली से नहीं भय खाते हैं
    अपने देश के गद्दारों की गाली से घबराते हैं।
    राजनीति पर चौपाल पे चर्चा खूब कराते है।
    गन्दी है सियासत इसबात पे ठहाके लगाते है

    पर इस कचरे को साफ करने से कतराते हैं।
    घर आकर टीवी और बीबी से गप्पें लड़ाते हैं।
    सच्चाई सिसकती कोने में झूठे राज चलाते है
    भ्रस्टाचार के डण्डे में, झंडा तिरंगा फहराते हैं।

    तिरंगे को देना है तुझको अब सम्मान अगर
    देश का रखना है तुझको जो अभिमान अगर।
    आओ मिलकर फिर एक कसम हम खाते हैं।
    भय भूख और भ्रस्टाचार को देश से मिटाते है।

    जंगे-आज़ादी का गीत फिर एकबार दोहराते हैं।
    स्वाधीनता के गणतंत्र का फिर त्यौहार मनाते है।
    कट्टरता के जंजीरो से समाज को मुक्त कराते हैं
    वन्देमातरम जयहिंद का नारा बुलंद कर जाते है।

    भीतर बैठे गद्दारों को अब बेनक़ाब कर जाते हैं
    दुश्मन की छाती पर चढ़, राष्ट्रध्वज फहराते हैं।

    पंकज भूषण पाठक “प्रियम”

    आ गया गणतंत्र दिवस प्यारा

    जय जय भारत भूूमि तेरी जय जयकार

    आ गया गणतंत्र दिवस प्यारा, जश्न देश मना रहा।
    लहर लहर तिरंगा आज चहुंओर लहरा रहा।।
    स्वतंत्र गणराज्य से , सर्वोच्च् शक्ति भारत आज बन रहा।
    न्याय, स्वतंत्रता,समानता की कहानी विश्व पटल पर रख रहा।।

    एकता और अखंंडता की मिशाल बना हिंदुस्तान।
    बहु सांस्कृतिक भूमि,  संंप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य महान।।
    भाईचारा, बंंधुत्व की भावना यहां सदा पनपी हैं।
    भारत की सभ्यता संस्कृति तो सदा ही चमकी हैं।।

    नारी शक्ति सफलता के झंंडे नित गाड़ रही।
    सीमा पर दुश्मनों से सीधे टक्कर ले रही।।
    शिक्षा, स्वास्थ्य का आज रहा नहीं  हैं अभाव।
    हमें तो हैं इस भारत भूूमि से अटूट लगाव।।

    समाज, धर्म के साथ सब भाषाएं यहां पनप रही हैं।
    सांमजस्य पूूर्ण व्यवहार से मानवता यहां खिल रही है।।
    लाल किले की प्रराचीरें गणतंत्र संंग स्वतंत्रता की याद दिलाती है।
    गांव की गलियां भी दूूूधिया रोशनी में नहाती हैं।।

    गरीबी, बेेेेरोजगारी, अशिक्षा शनैै: शनैः मिट रहे हैं।
    भण्डार इस धरा के धान से नित भर रहे हैं।।
    याद आती हमेें शहीदों की कुर्बानी खूब।
    उग रही है आजादी की सांस में नयी दूब।।

    रंगीन अंदाज में खुलकर हम भारतवासी जीते हैं।
    आज  भी हम भावों से रीते हैं।।
    सरहद पर जवान धरती मांं की  रक्षा में मुस्तैद हैं।
    स्वतंत्र है, गणतंत्र हैैं, बेेेडियों में नहीं कैद हैं।

    सामाजिक, सांस्कृतिक,   राजनैतिक, आर्थिक रूप से भारत मजबूत हैं।
    भारत शांति, अहिंंसा का विश्व में असली दूत हैं।।
    आओ हम सब गणतंत्र का सम्मान करेें।
    स्वतंत्रता संग गणतंत्र पर अभिमान करें।।

    विजयी भव का आशीर्वाद हमने पााया हैं।
    खुद भी जागे हैंं,दूसरों को भी जगाया हैैं।।
    पल्लवित, पुुष्पित भारत माता,  सत्यमेव जयतेे हमारा गहना।
    हिंदी, हिन्दू, हिंदोस्तान, हम हैंं विश्वगुरू हमारा क्या हैं कहना।।

    जय जय भारत भूमि तेरी जय जयकार।
    जय जय भारत भूमि तेरी जय जयकार।।
    धार्विक नमन, “शौर्य”, असम

    सत्यमेव   जयते   का   नारा   भ्रष्टमेव   जयते  होगा

    राजनीति  का  दामन  थामे  अपराधों की चोली है|
    चोली चुपके से दामन के कान में कुछ तो बोली है|
    अपराधी  फल  फूल  रहे हैं  नोटों की फुलवारी में|
    नेता  खेला  खेल   रहे   हैं   वोटों   की  तैयारी  में|
    अपराधों  का  उत्पादन  है  राजनीति  के  खेतों में|
    फसल  इसी  की  उगा रहे नेता चमचों व चहेतों में|
    नाच  रही  है  राजनीति  अपराधियों  के प्रांगण में|
    नौकरशाही  नाच  रही  है  राजनीति  के आँगन में|
    प्रत्याशी चयनित होता है जाति धर्म की गिनती पर|
    हार-जीत निश्चित होती है भाषणबाजी  विनती पर|
    मुर्दा भी जिन्दा  होकर  मतदान  जहाँ कर जाता है|
    लोकतन्त्र का जिन्दा सिस्टम जीते जी मर जाता है|
    जहाँ   तिरंगे   के  दिल पर तलवार चलाई जाती है|
    संविधान  की  आत्मा  खुल्लेआम  जलाई जाती है|
    वोटों   का   सौदा   होता   है  सत्ता  की  दुकानों में|
    खुली  डकैती  होती  है  अब कोर्ट कचहरी थानों में|
    निर्दोषों  को  न्याय  अदालत  पुनर्जन्म  में  देती  है|
    दोषी   को   तत्काल   जमानत  दुष्कर्म  में  देती  है|
    शोषित जब  भी  अपने अधिकारों से वंचित होता है|
    लोकतंत्र  का  पावन  चेहरा  तभी  कलंकित होता है|
    भ्रष्टाचारियों का विकास जब दिन प्रतिदिन ऐसे होगा|
    सत्यमेव   जयते   का   नारा   भ्रष्टमेव   जयते  होगा|

    देशभक्ति  की  प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है

    देशभक्ति  की  प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है|
    हर  गाली से  बढ़कर  शायद  देश द्रोह  की  गाली है|
    जिनको  फूटी  आँख  तिरंगा  बिल्कुल नहीं सुहाता है|
    निश्चित   ही  आतंकवाद   से  उनका   गहरा  नाता है|
    राष्ट्रवाद   के  कथित  पुजारी   क्षेत्रवाद   के  रोगी  हैं|
    देश  नहीं  प्रदेश  ही  उनके  लिए  सदा  उपयोगी  हैं|
    महापुरुष  की  मूर्ति  तोड़ने  वाले  भी  मुगलों  जैसे|
    गोरी, बाबर, नादिर, गजनी, अब्दाली  पगलों   जैसे|
    मीरजाफरों, जयचन्दों, का  जब जब  पहरा होता है|
    घर  हो  चाहे  देश  हो  अपनों  से  ही खतरा होता है|
    पूत   कपूत  भले  होंगे  पर  माता  नहीं   कुमाता  है|
    ऐसा  केवल  एक  उदाहरण  मेरी   भारत  माता   है|
    माँ  की  आँखों  के  तारे  ही माँ को आँख दिखाते हैं|
    आँखों  में  फिर  धूल  झोंककर आँखों से कतराते हैं|
    भारत  माँ  के  मस्तक  पर  जब पत्थर फेंके जाते हैं|
    छेद हैं  करते  उस  थाली  में  जिस  थाली में खाते हैं|
    कुछ  बोलें  या  ना  बोलें  बस  इतना  तो हम बोलेंगे|
    देशद्रोहियों    की   छाती   पर    बंदेमातरम्   बोलेंगे|
    भारत माता  की  जय  कहने  से  जो  भी कतराते हैं|
    भारत   तेरे   टुकड़े    होंगे   कहकर   के   गुर्राते   हैं|
    ऐसे  गद्दारों  को  चिन्हित  करके  उनकी  नस तोड़ो|
    किसी  धर्म  के  चेहरे  को आतंकवाद से मत जोड़ो|

    प्रतिशोधों  की  चिंगारी  को  आग  उगलते  देखा है


    प्रतिशोधों  की  चिंगारी  को  आग  उगलते  देखा है|
    काले  धब्बे  वाला  उजला  धुँआ  सुलगते  देखा  है|
    नफरत का सैलाब भरा है पागल दिल की दरिया में|
    भेदभाव  का  रंग  भरा  है अब भी हरा केशरिया में|
    गौरक्षक  के  संरक्षण  में  गाय  को  काटा  जाता है|
    जाति-धर्म  के  चश्में  से  इन्सान  को बाँटा जाता है|
    धरती से अम्बर तक जिनकी ख्याति बताई जाती है|
    उन्हीं पवन-सुत की भारत में  जाति  बताई जाती है|
    जातिवाद  जहरीला   देखा  सामाजिक  संरक्षण  में|
    भारत   बंद   कराते   देखा   जातिगत  आरक्षण  में|
    हमने   जिन्दा  इंसानों  को  जिन्दा  ही  सड़ते  देखा|
    मुर्दों   को   हमने   कब्रों-शमशानों  में  लड़ते   देखा|
    देखा  हमने  धर्मग्रंथ  के  आयत  और  ऋचाओं को|
    ना  हो   दंगा,  नहीं   करेंगे  आपस  में  चर्चाओं  को|
    देख   लिया    धर्मान्धी   ठेकेदारों    वाली    पगदण्डी|
    देख  लिया  है  हमने  मुल्ला,पण्डित पापी पाखण्डी|
    धर्मान्धी   लिबास   पहन  जब   मानव   नंगा   होता  है|
    अमन-शान्ति की महफिल में फिर खुलकर दंगा होता है|

    आजादी गुलाम हुई


    फसल  बाढ़  में  चौपट  भी है  नहर खेत भी सूखे हैं|
    सबकी   भूख   मिटाने  वाले  अन्न-देवता   भूखे   हैं|
    सबका  महल  बनाने  वाले  मजदूरों  की  छतें  नहीं|
    पेड़  के  नीचे  सोते  परिवारों   के घर  के  पते  नहीं|
    उजियारे  के  बिन  अँधियारा   कैसा  दृश्य बनाएगा|
    फुटपाथों  पर  भूखा बचपन कैसा भविष्य बनाएगा|
    माँ  के  गहने  बेंच  के  शिक्षा  सब  पूरी करते देखा|
    पी. एच. डी.  बेरोजगार  को  मजदूरी  करते  देखा|
    पाकीज़ा   रिश्तों   को   हमने  तार-तार  होते  देखा|
    अपनी  अस्मत  को  लुटते  एक  बेटी को रोते देखा|
    दरिन्दगी,  वहशी,  हैवानी,  लालच बुरी निगाहों पर|
    घर  में जलती  बहू, बहन-बेटी  जलती  चौराहों  पर|
    नही  समझ  में  आता  है  अब  सुबह हुई या शाम हुई|
    गुलामी    आजाद   हुई   या   आजादी    गुलाम   हुई|
                  —-“अली इलियास”—-

    चलो तिरंगा लहराएँ

    गणतंत्र दिवस का नया सबेरा,   
    यूँ ही ना मुस्काया।
              चढ़े सैकड़ों बलिवेदी पर, 
              तब ये शुभदिन आया।
    लाखों जुल्म सहे हमने,
    तब आजादी को पाया।
                विधि लिखा विद्वानों ने,    
                भारत गणतंत्र बनाया।
    जन मन के प्राँणों से प्यारा, 
    भारत देश सजाया।

             श्रद्धा से कर वंदन उनको, 
               आज प्रदीप जलाएँ।

    उनके तप का पावन ध्वज,  
    चलो तिरंगा लहराएँ।
                 रविबाला ठाकुर”सुधा”

  • शहीदों पर कविता

    शहीदों पर कविता

    शहीदों पर कविता , उस व्यक्ति को हम शहीद कहते हैं. ऐसे व्यक्ति जो कि किसी भी लड़ाई में देश की सुरक्षा करते हुए या देश के नागरिकों की सुरक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देते हैं. ऐसे व्यक्तियों को शहीद कहा जाता है. यह व्यक्ति पुलिस, जल सेना, वायु सेना, थल सेना, BSF, होम गार्ड आदि के सिपाही होते है, इन्ही के लिए कविता बहार की कुछ कविताये जो इनके शहादत को बुला नहीं देगी

    mahapurush

    शहीदों पर कविता

    ढह गई वह इमारत
    जिसके लोकार्पण के
    पत्थर की सीमेंट
    नहीं सूखी अभी तलक
    जिसके निर्माण की फाईल
    अभी हुई थी पास
    हाल ही में हुए थे
    इंजीनीयर के हस्ताक्षर
    फाईल पर
    इमारत क्यूं न ढहे
    इसने खड़ी कर दी
    कितनी आलीशान इमारतें
    ठेकेदार की कोठी
    इंजीनीयर का बंगला
    बड़े बाऊ का फलैट
    इस इमारत को
    मिलना ही चाहिए
    शहीद का दर्जा
    जो ठेकेदार, इंजीनीयर
    व बड़े बाऊ के
    भवन पर
    हो गई कुर्बान

    विनोद सिल्ला

    शहीदों पर कविता

    गूंज रही थीं
    स्वरलहरियां
    ‘शहीदों की चिताओं पर
    लगेंगे हर वर्ष मेले’
    अवसर था
    एक शहीद की
    चिता पर लगे मेले का
    इस मेले में हुए एकत्रित
    शहीद की जाति के लोग
    था आयोजन का मुख्यातिथि
    शहीद की जाति का सफेदपोश
    जिसने बताया शहीद को
    अपनी जाति का गौरव
    अपनी जाति का
    मान-सम्मान
    संकीर्णता ने
    शहीद की
    शहादत का दायरा
    कर दिया
    कितना संकुचित
    और कर लिए
    अपनी जाति के
    सभी वोट पक्के

    शहीदों की शहादत की कहानी

    शहीदों की शहादत की  कहानी   भी सुनानी है।
    चरण रज वीर की लेकर यूँ मस्तक से लगानी है।
    ये सरहद  जो हमारी  है ,यही गुरुधाम है यारों,
    मिटे जो देश की   खातिर उन्हें  सम्मान दो प्यारों।
    चलें हम राह पर  उनकी,हमें किस्मत बनानी  है,
    शहीदों  की शहादत की   कहानी भी सुनानी है।
    रखा है   मान वीरों ने    बचायी लाज आँचल की
    दुआ अब दे रही आत्मा, हुई आवाज़ पायल की
    दिलाकर न्याय यूँ उनको हमें कीमत चुकानी है ।
    शहीदों की शहादत की   कहानी भी   सुनानी है।
    नहीं औकात दुश्मन की जो हमको आँख दिखलाये
    रही आदत हमारी है  कि सबका मान   रख    आये ।
    सिखायी शास्त्र ,ग्रंथों ने वही     रीती     निभानी है
    शहीदों की     शहादत       की कहानी भी सुनानी है ।
    सदा दिल की हि सुनते हैं हमें मत आज़माओ तुम
    अगर चुप हैं डराने को न अब भभकी दिखाओ तुम
    यही वो    बात है अपनी जो    दुनियाको दिखानी है
    शहीदों   की शहादत    की कहानी भी  सुनानी है।
                     नीलम सिंह

    शहादत पर कविता

    शहादत की इबादत का,
    यही दस्तूर होता है।
    दिलो मे गर्व भर जाए,
    नयन में नीर होता है।
    मुल्क का मान रखते हैं,
    मौत ईमान रखते हैं।

    जगे जब वीर सीमा पे,
    चैन से देश सोता है।
    छोड़ परिवार सब प्यारे,
    सितारे गगन गिनता है।
    तभी तो हर शहादत पे,
    किसी का चाँद खोता है।

    नमन करते शहादत को,
    शमन आतंक करते है।
    शहीदी मान के खातिर,
    शरीरी तान बोता है।
    मुझे मन हूक उठती है,
    तिरंगे कफन चाहत की।

    मिला ना क्यों मुझे अवसर,
    सोच के लाल रोता है।
    शहीदों की शहादत से,
    यही पैगाम है मिलता।
    मरें तो देश के खातिर,
    जनम क्यों व्यर्थ ढोता है।

    करें अब होंश की बातें,
    दिलों में जोश जग जाएँ।
    का्व्य जो जोश भरता है,
    जोश ही शोक धोता है।

    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं

    छोड़ चले प्यारे वतन को ,मेरे वीर जवान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे है,दिखते अब निशान है।

    ऐसे धोखे बार बार हम , अकसर खाते रहे हैं
    भारत माँ की आँखों से,आंसू भी आते रहे हैं
    बिखर गए टुकड़े होकर,ऐसा क्यों बलिदान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान है।

    सुनके क्या गुजरी है,मुँह का निवाला छूट गया
    जिनके भी कश्मीर में थे, उनका दिल टूट गया
    आज खबर मैं देखूं कैसे,उनमें अपनी जान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान है।

    एक -एक कतरे पर ,भारत माँ का नाम लिखा
    ओढ़ तिरंगा आये जब,सब देशों में मान दिखा
    अंतिम सांस बचे  तो बोेले ‘मेरा देश महान है’
    ज़ख्म भी  गहरे भरे हैं , दिखते अब निशान है

    चीख निकल गयी माँ की, मूर्छित हो गई बेटी
    तोड़ चूड़ियां दहाड़ मार,पत्नी धरती पर लेटी
    सदमें में परिवार,फिर भी जिन्दा वो हैवान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान हैं।

    मुर्दा बनकर तूआतंकी,किस बिल में सोया है
    मेरे वतन का कोना-कोना,गला फाड़ रोया है
    ढूंढ-ढूंढ मारेगे तुमको,जब तक तन में प्रान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं , दिखते अब निशान है।


    ✍–धर्मेन्द्र कुमार सैनी,बांदीकुई

    शहीद बना दो

    वतन पर शहीद हो जाऊँ,
    ऐसा मेरा दिल बना दो ।
    भगत,आजाद,
    या फिर से मुझे बिस्मिल बना दो ।। (1)

    तूफानों से निबाह,
    मेरा बरसों से रहा ।
    अब मुझे किसी कश्ती का,
    शाहिल बना दो ।। (2)

    दुश्मनों के नापाक ईरादे,
    टिक नहीं पाएंगे ।
    बस उनके लिए मुझे,
    बेरहम क़ातिल बना दो ।। (3)

    मातृभूमि के सिवा,
    और कुछ भी याद न रहे ।
    ऐसा कोई देशभक्त,
    मुझे कोई फाज़िल बना दो ।। (4)

    बसंती चोला लिए,
    राख हो जाऊँ इस मुल्क पर ।
    मेरे भी जीवन को,
    तुम किसी काबिल बना दो ।। (5)

    बापू के महान विचार,
    जीवित रहें फ़लक पर ।
    इस धरा की मिट्टी को,
    सदा के लिए दुर्मिल बना दो ।। (6)

    वीरों की शहादत को,
    सुभद्रा सी रोशनाई दूँ ।
    दिनकर,चतुर्वेदी,
    या फिर मुझे धूमिल बना दो ।। (7)

    प्रकाश गुप्ता ‘हमसफ़र’

    कारगिल जंग के वीर

    वतन की हिफाजत के लिए त्याग दिए प्राण।
    तुमने आह!तक नहीं किये त्यागते समय प्राण।।
    सीने पर गोली खा के हो गये देश के लिए शहीद।
    मुख में था मुस्कान गोली खा के भी बोले जय हिंद।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 1।।

    धन्य हैं जिसने तुमको आंचल में छुपा कर दुध पीलाई वो माता।
    धन्य है जिसने तुमको हाथ पकड़कर चलना सीखलाया वो पिता।।
    धन्य है जिसने तुमको वीरता की राखी पहनाई वो बहन।
    धन्य है जिसने तुम्हारे लिए सदा जीत की दुआ मांगती वो पत्नी।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 2।।

    जब तक रहेगा सुरज-चांद अमर रहेगा तुम्हारा नाम।
    हिंद देश के हिंदुस्तानी कर रहे हैं तुमको बारंबार प्रणाम।।
    मां-बाप के आंखों के तारा भारत माता की सपूत वीर।
    अपने खून से सजाया तुमने भारत माता की तस्वीर।।
    मेरे वतन क जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमके शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 3।।

    वीर शहीदों भारत मां की सपुत करते हैं तुमपे नाज।
    श्रद्धा सुमन के दो फूल समर्पित करते हैं हम तुम को आज।।
    जिसने बहाया अपना खून – पसीना वो है कितना महान।
    धन्य हुई भारत मां की मिट्टी की रख ली आन बाण शान।।
    मेरे वतन के जांबाज तुमको शत् – शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 4।।

    कर दिए वीरान दुश्मनों ने वो माता-पिता के गुंजते आंगन।
    उजाड़ दिए माथे की सिंदूर इक पतिव्रता नारी की सुहागन।।
    अगल कर दिए भाई-बहन के प्रेम की रक्षा-बंधन से।
    कर दिए अलग वीर सपूत को भारत माँ की दामन से।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों को बारंबार नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।।5।।

    पुनीत राम सूर्यवंशी “सोनाखान”

    वतन के रखवाले

    सरहद की दुर्गम घाटी चोटी पर,
    नित प्रहरी बन तैनात हैं
    निशि-वासर हिमवर्षा,पावस में
    कर्तव्यनिष्ठ भारत माँ के लाल हैं।

    घर  छोड़ सरहद पर बैठे हैं रणबांकुरे
    देशवासी चैन की नींद सो पाते हैं
    अमन शांति सर्वत्र है हमसे
    निर्भय, निडर परिवेश बनाते हैं।
    मात- पिता परिवार प्रियजन
    सबसे बढ़कर है देश की रक्षा
    बारूद के ढेर पर तोपों से हम
    दुश्मन से करते हैं सुरक्षा।

    जब जब रिपु ने वार किया
    देश की थाती पर प्रहार किया
    बसंती चोला पहन निकले हम
    अरि का भीषण संहार किया।
    आँच न आने देंगे माँ तुझ पर
    प्राणों की बाजी लगा देंगे
    आँख उठाई दुश्मन ने तो
    अस्तित्व जड़ से मिटा देंगे।

    जान हथेली पर लेकर हम
    दुश्मन की ईंट बजाते हैं
    छठी का दूध दिलाकर याद
    भारत माँ का ध्वज़ फहराते हैं।
    वतन के हम रखवाले हैं
    फौलादी सीना ताने मतवाले हैं
    आज़ादी की रक्षा में तत्पर
    शहादत देने वाले हैं।
    आतंकी जेहादी का हम
    सीमा पर ढेर लगाते हैं
    फर्ज़ निभाने की खातिर
    सर पर कफ़न बांध कर चलते हैं।।

    सौभाग्य है हम रखवालों का
    हिफाज़त-ऐ-वतन जीवन बिताते हैं
    मौका-ए-शहादत मिल जाए तो
    तिरंगे में लिपट कर आते हैं।  

    कुसुम लता पुंडोरा

    वतन परस्ती में खुद को

    नाम वतन के अपनी आन और शान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    है हिम्मत तो आगे आओ,
    देशभक्ति का बिगुल बजाओ
    देखो लुटेरा लूट रहा है,
    माँ बहनों की लाज बचाओ
    देख तू खुद को सच से न अंजान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    आज वतन भी ताक रहा है,
    कौन फ़र्ज़ से भाग रहा है
    मातृभूमि की रक्षा के हित,
    कौन हितैषी जाग रहा है
    सबसे पहले अपने वतन का मान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    साम्प्रदायिकता परवान चढ़ रही
    अनैतिकताएं कितनी बढ़ रही
    हिन्दू मुस्लिम राजनीति है
    सब क़ौमें आपस में लड़ रहीं
    बंदे तू तो खुद को हिंदुस्तान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    भिन्न भिन्न परिवेश हो चाहे,
    अलग भाषा और भेस हो चाहे
    जग में हमको एक है रहना
    आपस मे कई भेद हों चाहे
    वीर शहीदों के पूरे अरमान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    वतन की खातिर मरना सीखो
    अपने वतन पर मिटना सीखो
    आंच न इस कि आन पे आए
    इन दावों पर टिकना सीखो
    अपनी पावन माटी का सम्मान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    अपने वतन की बात निराली,
    कहीं ईद और कहीं दीवाली
    रंग बिरंगी परम्परा है
    यहां भजन और वहाँ कव्वाली
    ‘चाहत’ है गीतों में तू यशगान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’

    वतन हमारा है चमन – देश पर दोहे

    वतन हमारा है चमन, भाँति-भाँति के फूल |
    रंग रूप सबसे अलग, “जन-गण-मन” है मूल |

    उर में बसता हिन्द है, बसे तिरंगा नैन |
    जय भारत जय हिन्द की, बसा जीभ पर बैन ||

    तीन रंग का ओढ़कर, आज दुशाला यार |
    देश प्रेम में डूबकर, करते जय जयकार ||

    भारत प्यारा देश है, प्यारे सारे लोग |
    जो जैसा है सोचता, वैसा पाता भोग ||

    सिक्का चित पट से बना, दोंनो हुए विशेष |
    हुए आदमी कुछ बुरे, बुरा नहीं है देश ||

    सुकमोती चौहान रुचि

    आजाद हिन्दुस्तान पर कविता

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    चारो ओर फैला प्रदूषण, भारत माता कराह रही |
    स्वच्छ भारत अभियान चला,नदियों में भी राह नही |

    प्रकृति से करते खिलवाड़, मन में अब उत्साह नही |
    इस धरा को स्वर्ग बनाने, जय बोलो युवा संतान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |

    चारो ओर आतंक मचा है, दुश्मन गोली बरसाते है |
    भारत माँ के वीर सपूत, सीने पर गोली खाते हैं |
    दोस्ती का हाथ बढ़ाकर,शत्रु को भी अपनाते हैं |
    बहुत वीरगांथाए हैं, जय बोलो बलिदान की |

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    अणु -परमाणु बना रहे, बना रहे मिसाइल हैं |
     इंटरनेट का जाल बिछा,तरंगो से सब घायल हैं |

    रासायनिक उर्वरको का, प्रयोग करते जाहिल हैं |
    सुधार प्रक्रिया अपनाने को, जय बोलो विज्ञान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |

    राजनीति के गलियारो में, अच्छे नेताओ का टोटा है |
    भ्रष्टाचार मचा हुआ है, हमारा सिक्का खोटा है |
    गरीब मजदूरों के पास, न थाली न लोटा है |
    हिन्दू मुस्लिम भाई -भाई, जय बोलो इंसान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |

    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    शिक्षा व्यवस्था चौपट सब,स्कूल में कौन पढ़ाते है |
    निजी विद्यालय को देखो , शुल्क रोज बढ़ाते है |
    ट्यूशन और फरमानो से, बच्चे बोझ से दब जाते हैं |
    शिक्षा में  गुणवत्ता लाने, जय बोलो शिक्षा मितान की |

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    हाहाकार मचा हुआ है,देख  हिमालय की घाटी में |
    वीर सपूत लोहा लेते हैं, रक्त सिंचते है माटी में |

    अर्थव्यवस्था बिगाड़ रहे,यही शत्रु की परिपाटी  में |
    आतंकियो को मार भगाने , जय बोलो जवान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के  किसान की |

    मोहम्मद अलीम

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