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  • बाल कविता – भ्रमण

    बाल कविता - भ्रमण

    बाल कविता – भ्रमण

    सुबह भ्रमण को हम जाएं ।
    ठंडी – ठंडी हवा में नहाएं ।।

    वो देखो-देखो कौन आए ।
    बन्दरों की फौज शोर मचाए।।

    नाच रहे ठुमक-ठुमक कर मोर ।
    भ्रमण-पथ पर ये दृश्य मन भाए।।

    नन्हीं चिड़ियों के मधुर तराने ।
    मैना-तीतर मिल सुर मिलाए ।।

    पेड़ पौधे मिलकर गाना गाये।
    ठंडी हवाएं मन को बहुत भाये।।

    रचनाकार
    *श्रीमती सरिता नायक “सरि”
    शा. पूर्व माध्यमिक शाला -डुगडुगीया
    विकास खंड -कुनकुरी
    जिला -जशपुर

  • लोकन बुढ़िया-नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    लोकन बुढ़िया

    स्कूल कैंपस के ठीक सामने
    बरगद के नीचे
    नीचट मैली सूती साड़ी पहनी
    मुर्रा ज्वार जोंधरी के लाड़ू
    और मौसमी फल इमली बिही बेर बेचती
    वह लोकन बुढ़िया
    आज भी याद है मुझे

    उस अकेली बुढ़िया को
    स्कूल के हम सब बच्चे जानते थे
    मगर आश्चर्य तो यह है
    उस बुढ़िया की धुंधली आंखें
    हम सबको पहचानती थी
    हम सबका नाम जानती थी उसकी स्मृति

    हमारे पाँच-दस पैसों की खरीदी से
    उसे कितना फायदा होता था
    हमें नहीं पता
    पर वह समय से रोज
    अपने ठीए पर बैठी मिलती थी

    अपार प्रेम और सहानुभूति से भरी
    वह लोकन बुढ़िया
    भांप लेती थी हमारे चेहरे के भाव
    पढ़ लेती थी हमारी आंखों की भाषा

    हमारे पास कभी पैसे ना होने पर
    वह भूल जाती थी
    अपना व्यावसायिक धर्म
    और हमारी दी हुई गालियां
    यूं ही दे देती थी खाने के लिए लाड़ू

    नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • वीर नारायण सिंह माटी के शान

    वीर नारायण सिंह माटी के शान

    वीर नारायण सिंह माटी के शान

    वीर नारायण सिंह माटी के शान

    देस बर अजादी, नइ रिहिस असान ।
    वीरमन लड़ीन अउ, हाेगिन बलिदान ।
    सबोदिन हे अगुआ म छत्तीसगढ़िया ।
    वीर नारायण सिंह ह, इ माटी के शान।

    इक बेला राज म, महा दुकाल छाइस।
    दुख पीरा घेरिस अउ सबला तड़पाइस।
    कइसे देखे भुखमरी हमर वीर सहासी।
    माखन ल लूटिस, फेर अनाज बटादिस।

    आंदोलन के बात म अगुआ रइथे वीर।
    सेना बनाइस अंग्रेज बर, जेल ला चीर।
    नारायण तोर चरन वंदन धन्न धन्न  वीर।
    देस खातिर लुटा दय तै,अपन के सरीर ।

    दाई बबा के गुन ह मिल जाथे सौगात म।
    देस परेम जिम्मेदारी, सौपे जाथे हाथ म। 
    हे सियानहा! धन्नबाद हे तोर जुझारूपना
    जेल म सपथ लेय ,भगाना अंग्रेजी सेना।

    रजधानी मांझा म,  जय स्तंभ देथे सुरता।
    कमती होही बखान ह नई होवे जी पूरता।
    हे सोनाखनिहा! अंग्रेज ल लगाय लगाम।
    आदिवासी बिंझवार ! तोला मोर प्रणाम।

    🖊️मनीभाई नवरत्न

  • शाश्वत अनुष्टुप्छन्द में कविता

    मैं दिलवर दीवाना हर जनम का प्रिये ।
    भाये तेरे बिना कोई कभी हो सकता नहीं ।।

    दीवाने सब हैं मस्त धन दौलत लिए हुए ।
    अपनी तो फकीरी से यारी है निभा रहे ।।

    पद लोलुपता तेरी मौलिकता उड़ा गई ।
    पतनोन्मुख इंसान अंदर से मरा हुआ ।।

    दीवानेपन की बात यूँ कहते नहीं बने ।
    है अजीब खुमारी सी जो जीता समझे वही ।।

    उसके नाम का हूँ मैं दीवाना बस जान लो ।
    मतलब किसी से है तो उसी दिलदार से ।।

    तोल रहा तराजू में दूसरों को यहाँ वहाँ ।
    जो न्यायाधीश तू ही हो अपना तो पता चले ।।

    —– रामनाथ साहू “ननकी”

  • आजादी के अलख जगैय्या

    आजादी के अलख जगैय्या

    वीर नारायण तोर जीनगी के एके ठन अधार।
    सादा जीवन जीबो अउ बढ़िया रखबो विचार।
    हक के बात आही त, नई झुकन गा बिंझवार
    अंग्रेज ला चुनौती देबो, मचा देबो हाहाकार।

    सोनाखान मा जनम लिस, रामराय परिवार।
    जेकर पूर्वज रिहीन तीन सौ गां के जमींदार।
    अकाल पढ़िस राज मा, भुखमरी के शिकार।
    वीर अपन आंखी ले तो , नइ सकिस निहार।

    माखनलाल रहीस हे, कसडोल के साहूकार।
    एकदम निर्दई जमाखोरी, असत के बौछार।
    नई दिस जी एकोदाना,जनता हाेईन लचार।
    तेकर बर लड़ीस हमर वीर नारायण सरदार।

    आजादी के अलख जगैय्या, तोर बल अपार।
    क्रूर अंग्रेज मन के आघू मा तै लड़े बर तैयार।
    विद्रोही सेना बनाके, माटी के छूटिस उधार।
    बैरी कापें डर म, जब कबरा मा करस सवार।

    कुर्रुपाट के जंगल ल, बनाय तै दुर्गम दीवार।
    अंग्रेज मन ला नचा डारे, करके तै छापामार।
    परेशान करे जीभर अउ नई सहे तै अत्याचार।
    शहादत तोर देखके पूरा देस करिस जयकार।

    🖊️मनीभाई नवरत्न