मैं दिलवर दीवाना हर जनम का प्रिये ।
भाये तेरे बिना कोई कभी हो सकता नहीं ।।
दीवाने सब हैं मस्त धन दौलत लिए हुए ।
अपनी तो फकीरी से यारी है निभा रहे ।।
पद लोलुपता तेरी मौलिकता उड़ा गई ।
पतनोन्मुख इंसान अंदर से मरा हुआ ।।
दीवानेपन की बात यूँ कहते नहीं बने ।
है अजीब खुमारी सी जो जीता समझे वही ।।
उसके नाम का हूँ मैं दीवाना बस जान लो ।
मतलब किसी से है तो उसी दिलदार से ।।
तोल रहा तराजू में दूसरों को यहाँ वहाँ ।
जो न्यायाधीश तू ही हो अपना तो पता चले ।।
—– रामनाथ साहू “ननकी”