शबरी पर कविता

शबरी की भक्ति

kavita bahar

शबरी पर हुई गुरु कृपा,
दीन्हो कुटी निवास।
दर्शन होंगे राम के,
राखो दृढ़ विश्वास।।

शबरी पंथ बुहारती,
इत उत देखे धाय।
आयेगी कब शुभ घड़ी,
राम मिलेंगे आय।।


आवत देखे दूर से,
दौड़ कुटी में जाय।
चखे बेर पत्तल रखे,
मन  में अति हरषाय।।


खात प्रेम से राम फल,
लखन रहे सकुचाय।
आज हुआ जीवन ,फल,
रही नयन फल पाय।।


नाता मानू भक्ति का,
कह रघुवर समझाय।।
वरणन नवधा भक्ति का,
सहज परम पद पाय।।

पुष्पा शर्मा”कुसुम”

जीवन धन्य हुआ शबरी का


राह में श्रद्धा सुमन बिछा कर
करती थी इंतजार।
गुरु के वचनों पर
विश्वास अटल था।
आएंगे प्रभु द्वार।
आये राम शबरी के अँगना,
शबरी हुई निहाल।
कैसे स्वागत करूँ प्रभु का,
सोच के ये बेहाल।
जल का लोटा परे रह गया,
बहे अंसुवन के धारे।
बड़े प्रेम से निरख निरख वह,
प्रभु के पांव पखारे।
बौराई सी शबरी
दोने में फल ले आयी।
चख चख मीठे बेर प्रभु को
अपने हाथों से खिलाई।
भाव के भूखे राम प्रेम से,
जूठे बेर जो खाये।
जीवन धन्य हुआ शबरी का,
परम् रतन धन पाए।।
नवधा भक्ति का पाया ज्ञान,
खुल गए मोक्ष के द्वार।
जन्म मरण के चक्कर से,
हो गयी वह उद्धार।
धन्य धन्य हो माता शबरी,
अविचल भक्ति निभाई।
अटल प्रेम के कारण ही माँ,
दर्शन राम के पायी।


विजिया गुप्ता “समिधा”
दुर्ग – छत्तीसगढ़

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