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  • मन की अभिलाषा

    मन की अभिलाषा

    वेदना का हो अंत
    फिर आए जीवन में बसंत
    मन की प्रसन्नता हो अनंत
    दुःख का पूर्णविराम हो
    मन में न कोहराम हो।

    आस का पंक्षी सहन पाए
    उड़ने को पूरा गगन पाए
    दुविधा में न क्षण लुटाए
    मन का मधूर सुर तान हो
    मन में न कोहराम हो।

    संघर्ष का मार्ग प्रशस्त हो
    देश-जनहित हेतू जीवन व्यस्त हो
    आस न टूटे, हौसले न पस्त हो
    देशहित को चलते सुबह-शाम हो
    मन में न कोहराम हो।

  • नवोदय क्रांति परिवार प्रेरणा गीत

    जन जन को जगाएंगे।
    नवोदय क्रांति लाएंगे।
    आओ शिक्षक, प्यारे शिक्षक,
    हम सब मिलकर शिक्षा में नई क्रांति लाएंगे।
    जन जन को जगाएंगे।
    नवोदय क्रांति लाएंगे।


    पालक,अभिभावक,जन
    प्रतिनिधि मिलकर शाला
    को रंगीन बनाएंगे।
    जन जन को जगाएंगे।
    नवोदय क्रांति लाएंगे।


    राष्ट्रिय शिक्षक संचेतना लाएंगे।
    कश्मीर से कन्याकुमारी तक
    शिक्षा का अलख जगाएंगे।
    हर शाला को डिजिटल बनाएंगे।
    जन जन को जगाएंगे।
    नवोदय क्रांति लाएंगे।


    हम हैं शिक्षक, शिक्षा की ज्योत जलाएंगे।

    राष्ट्रिय शिक्षक संचेतना लाएंगे।
    आओ शिक्षक, प्यारे शिक्षक
    हम सब मिलकर शिक्षा मेंएक
    नई क्रांति लाएंगे।
    जन जन को जगाएंगे।
    नवोदय क्रांति लाएंगे।
    शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाकर
    एक नया इतिहास बनाएंगे।

    जन जन को जगाएंगे।
    नवोदय क्रांति लाएंगे।
    जय हिन्द जय भारत।

    कैलाश परमार जिला इंदौर मध्यप्रदेश

  • जब विपदा आ जाए सम्मुख – उपमेंद्र सक्सेना

    जब विपदा आ जाए सम्मुख



    जिसका साथ निभातीं परियाँ, मनचाहा सुख पाता है
    जब विपदा आ जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता है।

    क्या है उचित और क्या अनुचित, बनी न इसकी परिभाषा
    दुविधा में जो फँसा कभी भी, टूटी उसकी अभिलाषा
    जिसका मन हो लगा गधी में, वह उसको अपनाता है
    जब विपदा आ जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता है।

    उधर खूब पैसा ही पैसा, और इधर है कंगाली
    आज योग्यता भरती पानी, देखें इसकी बदहाली
    तिकड़म से जो पनप गया वह, अपनी धाक जमाता है
    जब विपदा जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता है।

    व्यर्थ हुई साहित्य- साधना, चलती अब ठेकेदारी
    अगर माफिया साथ लगा हो, पड़ता वह सब पर भारी
    मानवता से उसका कोई, दिखता कहीं न नाता है
    जब विपदा आ जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता है।

    चाहे कोई अधिकारी हो, नेता हो या व्यापारी
    चार दिनों की सुखद चाँदनी, फिर रातें हों अँधियारी
    मिट्टी का पुतला है जो भी, मिट्टी में मिल जाता है
    जब विपदा आ जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता है।

    खुद अपनी औकात भूलकर, हुआ यहाँ जो अभिमानी
    याद उसे आएगी नानी, करता है जो नादानी
    जो विनम्र होता है वह ही, परम पिता को भाता है
    जब विपदा आ जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता है।

    धन -दौलत, पदवी के बल पर, समझा खुद को तूफानी
    समय बदलता है जब करवट, होती है तब हैरानी
    अंत समय तिकड़म का ताऊ, भी खुद मुँह की खाता है
    जब विपदा आ जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता है।

    रचनाकार-✍️ उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)

  • नया अब साल है आया – उपमेंद्र सक्सेना

    नया अब साल है आया

    नया अब साल है आया, रहे इंसानियत कायम
    मुहब्बत के चिरागाँ इसलिए हमने जलाए हैं।

    सुकूने बेकराँ मिलती, अगर पुरशिस यहाँ पे हो
    न हो वारफ़्तगी कोई, दिले मुज्तर कहीं क्यों हो
    नवीदे सरबुलंदी से, जुड़ें सब ये तमन्ना है
    सरे आज़ार के पिन्दार को कुदरत यहाँ दे धो

    अमीरों के घरों में खूब भामाशाह पैदा हों
    मिटे अब मुफ़लिसी का दौर ये पैगाम लाए हैं।

    करें हम दीद-ए- बेबाक, दर्दे लादवा जब हो
    मिले तब जिंदगी में हक़ बज़ानिब दौर हो ऐसा
    फरेबे मुसलसल होती, रक़ाबत में कहीं पे जब
    वहाँ मंजर हमेशा से, रहा हैवानियत जैसा

    अक़ाइद में न हो मौजे- हवादिस जो खलिश अब दे
    तबस्सुम हो तक़ल्लुम में, मिटेंगी तब बलाएँ हैं।

    सितम -खुर्दा बशर के जख्म पर मरहम लगाएँ हम
    फ़जाँ में हो नहीं दहशत, तभी वो चैन से सोए
    न हो अग़ियार जब कोई, लगेंगे सब यहाँ अपने
    न काशाना कहीं उजड़े, न कोई जुल्म अब ढोए।


    हक़ीकत को बयाँ करके, अमन की हम दुआ करते
    सग़ाने दहर बातें सुन हमारी तिलमिलाए हैं।

    नज़्म निगार✍️ उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद -निवास’
    बरेली( उ.प्र)

  • पीर दिलों की मिटायें

    पीर दिलों की मिटायें

    पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें
    पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें l
    पलती हों जहां खुशियाँ, चलो एक ऐसा आशियाँ सजाएँ ll

    हर एक चहरे पर हो मुस्कान, ना हो ग़मों का कोई निशान l
    फेहरे जहां संस्कृति, संस्कारों का परचम, चलो एक ऐसा उपवन सजाएँ ll

    जहां ना हो कोई कुटिल राजनीति का शिकार, ना ही अंधभक्ति सिर चढ़कर बोले l
    सादा हो जीवन, सदविचारों से पुष्पित, चलो एक ऐसा गुलशन सजाएँ ll

    जहां ना हो कोई नवजात, कूड़े के ढेर का हिस्सा l
    चलो मातृत्व के वात्सल्य से पोषित एक खूबसूरत जहां बसायें ll

    भाई को भाई से हो मुहब्बत, रिश्तों में पावनता झलके l
    चलो पारिवारिक संस्कृति और संस्कारों का परचम लहरायें ll

    हो चहरों पर मुस्कान, दिलों में ना गिला शिकवा हो l
    चलो आपसी मुहब्बत से रोशन एक आशियाँ सजाएँ ll

    जहां राम ना रहीम को लेकर हो वैमनस्य मन में l
    चलो राम और रहीम की पावन छवि से अपना आशियाँ सजाएँ ll

    एक ऐसा जहां ना पलती हो राजनीति, ना हो धर्म पर अंधविश्वास l
    अपनी इस धरा को, उपवन को एक खूबसूरत उपवन बनाएं ll

    पीर दिलों की मिटायें, चलो एक ऐसा नया जहां बसायें l
    पलती हों जहां खुशियाँ, चलो ऐसा आशियाँ सजाएँ ll

    अनिल कुमार गुप्ता अंजुम