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  • कोरोना पर कविता – उपमेंद्र सक्सेना

    कोरोना पर कविता

    कोरोना फिरि फैलि रहो है, बाने देखौ केते मारे
    काम नाय कछु होय फिरउ तौ, निकरंगे घरि से बहिरारे।

    मुँह पै कपड़ा नाय लगाबैं, केते होंय रोड पै ठाड़े
    बखरिन मै मन नाय लगत है, घरि से निकरे काम बिगाड़े
    जाय किसउ की फसल उखाड़ैं, खेतन कौ बे खूब उजाड़ैं
    कोऊ उनसे नाय कछु कहै, बात- बात पै बे मुँह फाड़ैं

    समझु न आबै उनै नैकहू, उनके तौ मन एते कारे
    काम नाय कछु होय फिरउ तौ, निकरंगे घरि से बहिरारे।

    धन्नो की रोबै महतारी, जब उखड़ै बाकी तरकारी
    बाकी सुनै नाय अब कोऊ, दइयर लागत हैं अधिकारी
    बइयरबानी देबैं गारी, होत खूब है मारा -मारी
    डर लागत है उनिके जौंरे, काम करत हैं जो सरकारी

    हाय पुलिस की मिली भगति से, जिनने अपुने घरि भरि डारे
    काम नाय कछु होय फिरउ तौ, निकरंगे घरि से बहिरारे।

    केते बइयर भूखे बइठे, जलैं न उनिके घरि मै चूले
    कागद पै सबु काम होत हैं, नेता बादे करिके भूले
    रामकली की बटियन मैऊ,काऊ ने है आगि लगाई
    बाके कंडा सिगरे जरि गै, मट्टी मै मिलि गयी कमाई

    नाजायज जो खूब दबाबै, उनिके  आगे केते हारे
    काम नाय कछु होय फिरउ तौ, निकरंगे घरि से बहिरारे।

    सरकारी स्कूल जो खुलो, बामै मुनिया -बालक पठिबै
    होबत नाय पढ़ाई कछुअइ, मास्टरन की अच्छी कटिबै
    पपुआ की तौ हियाँ लुगाई, उनिके चक्कर मैं जब आई
    भूलि गयी खानो- पीनो सब,लगै न कोई बाय दबाई

    कोरोना से डर काहे को, नैन लड़ंगे जब कजरारे
    काम नाय कछु होय फिरहु तौ,निकरंगे घरि से  बहिरारे।

    रचनाकार- ✍️उपमेंद्र सक्सेना एड०
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली( उ० प्र०)
    मोबा- नं०- 98379 44187

    ( सर्वाधिकार सुरक्षित)

  • अटल बिहारी वाजपेई जी पर कविता

    अटल बिहारी वाजपेई जी पर कविता

    अटल बिहारी वाजपेई जी पर कविता

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी


    25 दिसंबर,1924 को, ग्वालियर की पवित्र भूमि पर,
    एक दिव्य पुत्र ने जन्म लिया।
    धन्य हुई भारत की धरती, भारतरत्न जो आए थे।

    राजनीति के प्रखर प्रवक्ता, भारतरत्न से सम्मानित थे,
    हिंदी कवि और पत्रकार के रूप में भी वो जाने जाते हैं।
    चार दशक तक राजनीति में जो सक्रिय भूमिका निभाए थे,
    दो बार प्रधानमंत्री बनने वाले, वो अटल बिहारी कहलाए थे।

    पोखरण में परमाणु परीक्षण कर, भारत को शक्ति संपन्न बनाने वाले थे,
    सौ साल पुरानी कावेरी जल विवाद को सुलझाने वाले थे,
    वो अटल बिहारी थे जिसने आर्थिक विकास को ऊंचाई पर पहुंचाए,
    थे अटल अपनी हर बात पर, राष्ट्रधर्म को अपनाए थे,
    बड़ा लगाव था बिहार से उनका, कहते थे फक्र से वो,
    आप केवल बिहारी हो, मैं तो अटल बिहारी हूं।

    कुंवारे नहीं, अविवाहित थे, भीष्म पितामह कहलाते हैं,
    राजकुमारी कौल से प्रेमकथा को, कविता में बतलाते हैं।
    नमिता भट्टाचार्य को दत्तक पुत्री स्वीकार किए,
    भारत मां की सेवा में ही जीवन वे व्यतीत किए।
    भारत को लेकर उनकी दृष्टि, भूख, भय, निरक्षरता से मुक्त बनाना था,
    लेकिन उनका यह सपना भी आज तक अधूरा है।

    उनके काव्यसंग्रह में ऊर्जा का भरमार है,
    बचपन से ही देशहित के प्रति उनका रुझान था।
    उनकी कविता पराजय की प्रस्तावना नहीं, जंग का ऐलान है,
    वे हारे हुए सिपाही का नैराश्य निनाद नहीं, जूझते योद्धाओं का विजय संकल्प हैं।
    वे निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष हैं,
    हारते सैनिकों के दृढ़ निश्चय के जोश हैं।

    हे वीर पुरुष! आपकी गाथा का कैसे मैं गुणगान करूं?
    गाथाएं आपकी, आत्मविश्वास मुझमें भर देती है।
    हे कविवर और अमर पुरुष, रचनाएं आपकी मुझको भी आकर्षित करती है।
    शत शत नमन है आपको, हमारा प्रणाम स्वीकार करें।
    सत्यमार्ग सदा ही अपनाएंगे, भारत का मान बढ़ाएंगे।
    ………………………………………………………………
    सृष्टि मिश्रा (सुपौल,बिहार)

  • तुलसी पूजा पर दोहा – हरीश बिष्ठ

    तुलसी पूजा पर दोहा – हरीश बिष्ठ

    तुलसी पूजा पर दोहा

    देवलोक से देवता, करते नित्य प्रणाम |
    तुलसी का जग में सदा, सबसे ऊँचा नाम ||

    जिस घर में तुलसी रहे, रोग रहें सब दूर |
    उस घर में आती सदा, खुशहाली भरपूर ||

    तुलसी घर में लाइए, करिये रोज प्रयोग |
    स्वस्थ रहे तन-मन सदा, दूर रहे सब रोग ||

    तुलसी को पूजें सभी, रोज नवायें शीश |
    सम्मुख रहती है खड़ी , सबकी सच्ची ईश ||

    तुलसी का पूजन करें, रोज सुबह अरु शाम |
    तन को मिलती ताजगी, मन को दे आराम ||

    घर-घर में सबके मिले , रामा-श्यामा नाम |
    गुणकारी है औषधी, आती सबके काम ||

    तुलसी की महिमा बड़ी, जग में अपरम्पार |
    दूर करे सब व्याधियाँ, करती जन उपकार ||

    हरीश बिष्ट “शतदल”
    स्वरचित / मौलिक
    रानीखेत || उत्तराखण्ड ||

  • भारत रत्न अटल जी जन्मदिन पर कविता – उपमेंद्र सक्सेना

    भारत रत्न अटल जी जन्मदिन पर कविता – उपमेंद्र सक्सेना

    भारत रत्न अटल जी जन्मदिन पर कविता

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी

    भारत के प्रधानमंत्री बनकर थे दुनिया में छाए
    राजधर्म के अटल प्रणेता, अटल बिहारी जी कहलाए।
    💐💐
    सन् उन्निस सौ चौबीस में,पच्चीस दिसंबर का दिन आया
    कृष्ण बिहारी जी के घर में, लिया जन्म सबका मन भाया
    मूल निवास बटेश्वर में था, जुड़े ग्वालियर से वे इतने
    लिख डालीं ऐसी कविताएँ, भाव-विभोर हुए थे कितने
    💐💐
    गए कानपुर पिता संग दोनों एल एल.बी. करके आए
    राजधर्म के अटल प्रणेता, अटल बिहारी जी कहलाए।
    💐💐
    सन् उन्निस सौ सत्तावन में पहली बार हुए निर्वाचित
    दिल्ली में संसद तक पैदल जाना उनको लगा न अनुचित
    पैसे पास नहीं थे उनके, रिक्शे का दे कौन किराया
    राज किया लोगों के मन पर, भेदभाव को यहाँ मिटाया
    💐💐
    मानवता के संरक्षक ने, मानव मूल्य सदा अपनाए
    राजधर्म के अटल प्रणेता, अटल बिहारी जी कहलाए।
    💐💐
    तेरह दिन, फिर तेरह मास, और फिर पाँच साल की सत्ता
    राजनीति की धुरी रहे वे, सचमुच सर्वश्रेष्ठ थे वक्ता
    पत्रकार,साहित्यकार, संपादक थे वे सचमुच ऐसे
    पूरा जीवन संघर्षों से तपा बने वे कुंदन जैसे
    💐💐
    ‘भारत- रत्न’ बाजपेयी जी, की महिमा को कौन न गाए
    राजधर्म के अटल प्रणेता, अटल बिहारी जी कहलाए।
    💐💐
    जोड़ा सत्ता से सेवा को, जनहित में सब किया समर्पित
    कालजयी वे गीतकार थे, उन पर भारत- वासी गर्वित
    जब वे बने विदेश मंत्री, कोई दुश्मन नजर न आया
    थे संवेदनशील इसलिए, दीन- दु:खी को गले लगाया
    💐💐
    अद्भुत साहस का परिचय दे, मिटा दिए आतंकी साए
    राजधर्म के अटल प्रणेता, अटल बिहारी जी कहलाए।
    💐💐
    रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

  • राष्ट्रीय सेवा योजना पर कविता (NSS Poem in Hindi)- अकिल खान


    nss poem in hindi -राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) भारत सरकार, युवा मामलों और खेल मंत्रालय की एक केंद्रीय क्षेत्र योजना है, जिसे औपचारिक रूप से 24 सितंबर, 1969 को शुरू किया गया था। यह ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के छात्र युवाओं और स्कूलों के छात्र युवाओं को अवसर प्रदान करता है।

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    राष्ट्रीय सेवा योजना पर कविता

    युवाओं के शक्ति,को यह मजबूत कर दे,
    बेरंग-निरस जीवन,शैली में यह रंग भर दे।
    सामाजिक अत्याचारों का,होता है अंत,
    वैचारिक क्रांति का इसमें,ज्ञान है अनंत।
    देश के विकास के लिए,युवाओं को है सोंचना,
    देश का आधार स्तंभ है,राष्ट्रीय सेवा योजना।

    प्राकृतिक संपदाओं का,हम करेंगे रक्षा,
    देश के हित-अहित पर,हम करेंगे समिक्षा।
    इंसानीयत का चहूं ओर,अलख है जगाना,
    सही-गलत में अंतर,सभी को है बताना।
    स्वतंत्रता रूपी परिधान,अब नहीं है खोना,
    देश का आधार-स्तंभ है,राष्ट्रीय सेवा योजना।

    स्वच्छ भारत अभियान,को चलाकर,
    अस्पृश्यता का लोगों को,पाठ पढाकर।
    शिक्षा की क्रांति से,बेबसों को उठाएंगे,
    द्वेष-छल,कपट को,समाज से हटाएंगे।
    सत्य-अहिंसा के मार्ग पर,शांति को है खोजना,
    देश का आधार स्तंभ है,राष्ट्रीय सेवा योजना।

    युवा मे शक्ति है,बदलाव को ललकारने के लिए,
    युवा में भक्ति है,अन्याय को पछाड़ने के लिए।
    रोते हुए को हंसाओ,दुःखीयों को दो तुम प्यार,
    मिटा कर गुलामी को,दूर करो तुम अत्याचार।
    हिन्दुस्तान की गरिमा को,तुम्ही को है संजोना,
    देश का आधार स्तंभ है,राष्ट्रीय सेवा योजना।

    अनुशासन,कर्तव्यपरायणता का हो जब ज्ञान,
    परोपकार से संसार में मिले,अलग ही पहचान।
    कहता है’अकिल’मेहनत को दिल में भर जाओ,
    कभी याद करेगा जमाना,एसा कुछ कर जाओ।
    ठान लो युवा तुमको,मंजिल तक है पहुंचना,
    देश का आधार स्तंभ है,राष्ट्रीय सेवा योजना।।


    अकिल खान
    सदस्य,प्रचारक “कविता बहार” जिला-रायगढ़ (छ.ग.)