अपना-अपना एक सितारा
इतने तारे आसमान में, उनका क्यों संज्ञान करें
अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।
दुनिया के सब काम आजकल, मतलब से ही चलते हैं
भोले -भालों की छाती पर, दुष्ट मूँग अब दलते हैं
अपना उल्लू सीधा करने को सब खूब मचलते हैं
आस्तीन के साँप यहाँ पर, चुपके-चुपके पलते हैं
अब अपनी औकात भूलकर, लोग यहाँ अभिमान करें
अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।
एक-एक कर सबको मिटना, इस पर कोई गौर नहीं
हाथ- पैर कितना भी फेंके, पर कोई सिरमौर नहीं
एक-दूसरे का हित सोचें, ऐसा है अब दौर नहीं
फैली आग आज नफरत की, बचने का है ठौर नहीं
समाधान भी कुटिल हो गया, धूर्त यहाँ व्यवधान करें
अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।
पता नहीं कब क्या हो जाए, देखी किसने यहाँ घड़ी
अफरा-तफरी मची हुई है, हाय समस्या हुई खड़ी
सूझ-बूझ से काम न लें जो, लगता उनकी बुद्धि सड़ी
लाचारों को सता रहे हैं, भूल करें वे बहुत बड़ी
जाने क्यों बलवान यहाँ पर, निर्बल का अपमान करें
अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।
जिसका यहाँ सितारा डूबा, फूट-फूटकर वह रोए
उसके लिए भला कोई क्यों, नींद यहाँ अपनी खोए
नातेदार भूलकर उसको, आज चैन से हैं सोए
पथ में उसके काँटे बोए, दिखें दूध के वे धोए
जिससे लाभ न कोई उनका, उसका क्यों सम्मान करें
अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।
अपने साथ यहाँ क्या लाए, साथ किसी के क्या जाए
धन -दौलत जो हड़प रहे हैं, वे हैं इतने इठलाए
तिकड़म में वे सबसे आगे, चालाकी उनको भाए
यम के हाथों मार पड़े जब, काम न तब कुछ भी आए
जो सीधे- सच्चे हैं उनका, आओ हम गुणगान करें
अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।
रचनाकार -✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
‘कुमुद- निवास’