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  • तुम गुलाब मैं तेरी पंखुरी – उमा विश्वकर्मा

    तुम गुलाब मैं तेरी पंखुरी – उमा विश्वकर्मा

    गुलाब
    gulab par kavita

    तुम गुलाब, मैं तेरी पंखुरी
    तुम सुगंध, मैं हूँ सौन्दर्य |
    तुझमें है लालित्य समाया
    मुझमें रचा-बसा माधुर्य |

    सारा जग, तुमसे सुरभित है
    तुमसे ही, लावण्य उदित है
    तुम ही देव चरण में शोभित
    जन-जन का मन, रहे प्रफुल्लित
    तुम पर ईश्वर, की अनुकम्पा
    मुझमें रंग भरा प्राचुर्य |
    तुम गुलाब, मैं तेरी पंखुरी
    तुम सुगंध, मैं हूँ सौन्दर्य |

    पुष्प-वाटिका, के तुम राजा
    अद्भुत् अनुपम, सत अनुरागा
    सुर्ख लाल रंग, तुम धारे हो
    प्रेयसी प्रियतम, के प्यारे हो
    मैं तुझमें हूँ, मुझमें तुम हो
    तुमसे है मेरा ऐश्वर्य |
    तुम गुलाब, मैं तेरी पंखुरी
    तुम सुगंध, मैं हूँ सौन्दर्य |

    तुम माला में, गूंथे जाते
    मान बढ़ाते, कंठ सजाते
    भले देह है, कोमल अपनी
    किन्तु अभिलाषा, है इतनी
    कंटक पथ पर, बिछ जाऊँ
    बना रहे इतना धैर्य |
    तुम गुलाब, मैं तेरी पंखुरी
    तुम सुगंध, मैं हूँ सौन्दर्य |

    उमा विश्वकर्मा
    कानपुर-208001, उत्तर प्रदेश
    मो० 9554622795, 9415401105

  • गणेश विदाई गीत – डी कुमार-अजस्र

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    गणेश विदाई गीत – डी कुमार-अजस्र

    गणेश
    गणपति

    मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
    आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
    नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
    गणपति की भक्ति में मगन हो के ।

    झांकी है मनुहार , करे मेरा दिल पुकार ।
    रह जाऊँ इनमें ही आज खो के …..
    मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
    आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
    नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
    गणपति की भक्ति में मगन हो के ।

    डी जे (D J ) का होवे शोर ,देखो-देखो चहुँओर ।
    कह दो ये दुनियां से कोई न रोके …..
    मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
    आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
    नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
    गणपति की भक्ति में मगन हो के ।

    कर के सब का उद्धार,दे के सबको अपना प्यार ।
    देते हैं आशीष ये खुश हो के …..
    मूषक सवार हो के चले है गजानन ,
    आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
    नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले ,
    गणपति की भक्ति में मगन हो के ।

    आएंगे अगली बार ,वादा करते बार बार ।
    जाते है गजानन अब विदा हो के ……
    मूषक सवार हो के चले हैं गजानन ,
    आज अपने भक्तों से विदा हो के ।
    नाँचे और गाएँ ये भक्त मतवाले,
    गणपति की भक्ति में मगन हो के ।
    मूषक सवार हो के …..

    डी कुमार-अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)

  • आ बैठे उस पगडण्डी पर – बाबू लाल शर्मा

    आ बैठे उस पगडण्डी पर – बाबू लाल शर्मा

    kavita
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    आ बैठे उस पगडण्डी पर,
    जिनसे जीवन शुरू हुआ था।

    बचपन गुरबत खेलकूद में,
    उसके बाद पढ़े जमकर थे।
    रोजगार पाकर हम मन में,
    तब फूले ,यौवन मधुकर थे।
    भार गृहस्थी ढोने लगते,
    जब से संगिनी साथ हुआ था।
    आ बैठे उस पगडण्डी पर
    जिनसे जीवन शुरू हुआ था।

    रिश्तों की तरुणाई हारी,
    वेतन से खर्चे रोजाना।
    बीबी बच्चों के चक्कर में,
    मात पिता से बन अनजाना।
    खिच खिच बाजी खस्ताहाली,
    सूखा सावन शुरू हुआ था।
    आ बैठे उस पगडण्डी पर,
    जिनसे जीवन शुरू हुआ था।

    बहिन बुआ के भात पेच भर,
    हारे कुटुम कबीले संगत।
    कब तक औरों के घर जीमेंं,
    पड़ी लगानी मुझको पंगत।
    कर्ज किए पर मिष्ठ खिलाएँ।
    गुरबत जीवन शुरू हुआ था।
    आ बैठे उस पगडण्डी पर,
    जिनसे जीवन शुरू हुआ था।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा

  • सृजन-गीत – हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

    सृजन-गीत कब गायेगा – हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    कोई बता दे मानवता का ,
    परचम कब लहरायेगा,
    तहस-नहस को आतुर मानव,
    सृजन-गीत कब गायेगा। टेक।

    क्षिति-जल-अम्बर नित विकास के,
    बन कर साक्ष्य महान हुए,
    धरा बधूटी बन मुसकाई,
    स्वप्निल सुखद बिहान हुए।
    द्वन्द्व-द्वेष ने कब आ घेरा,
    मुझको कौन बतायेगा।
    कोई बता दे मानवता का ,
    परचम कब लहरायेगा।1।

    श्मशान पटे हैं लाशों से,
    असहाय तड़पती सॉसों से,
    कोहराम मचा है जीवन में,
    विष घोल रहे परिहासों से।
    विश्व युद्ध के शंखनाद से,
    आकर कौन बचायेगा ।
    कोई बता दे मानवता का,
    परचम कब लहरायेगा ।2।

    लहूलुहान हुई मर्यादा ,
    नियमों का अनदेखापन,
    तोड़ रहे समझौते सारे,
    चढ़ा घिनौना पागलपन।
    बढ़े अहम के सनकीपन से,
    दुनिया कौन बचायेगा।
    कोई बता दे मानवता का,
    परचम कब लहरायेगा।3।

    सत्य-न्याय की जीत कराने,
    साथ चलो हम चलते हैं,
    कटुता की हर बात भूल कर,
    राह नई हम चुनते हैं।
    जन-जन की आशाओं का,
    दीपक कौन जलायेगा।
    कोई बता दे मानवता का,
    परचम कब लहरायेगा।4।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश‘,
    रायबरेली-(उप्र)-229010
    9125908549

    अन्य कविता :जीवन पर कविता – सुधा शर्मा

  • कुल्हाड़ी पर कविता – आशीष कुमार

    कुल्हाड़ी पर कविता – आशीष कुमार

    जीवन मूल्य चुकाती कुल्हाड़ी – आशीष कुमार

    कुल्हाड़ी

    तीखे नैन नक्श उसके
    जैसे तीखी कटारी
    रुक रुक कर वार करती
    तीव्र प्रचंड भारी
    असह्य वेदना सह रहा विशाल वृक्ष
    काट रही है नन्हीं सी कुल्हाड़ी

    शक्ति मिलती उसको जिससे
    कर रही उसी से गद्दारी
    खट खटाक खट खटाक
    चीर रही नि:शब्द वृक्ष को
    काट रही अंग-अंग उसका
    जिसके अंग से है उसकी यारी

    परंतु दोषी वह भी नहीं
    अपनों ने ही उसे भट्ठी में डाला
    देकर उसे आघात बागी बना डाला
    हर एक चीख पर हृदय से
    निकल रही थी चिंगारी
    अस्तित्व में आ रही थी
    विद्वेष की भावना लिए
    अपनों का अस्तित्व मिटाने वाली
    कठोर निर्दयी कुल्हाड़ी

    यह जीवन उनकी देन है
    जिनके लिए यह लाभकारी
    जीवन पर्यंत बनी रहेगी कठपुतली उनकी
    बस उनके इशारों पर इसका खेल जारी
    पशु पक्षी अरण्य पर्यावरण
    सबकी हाय ले रही
    मगर बनाने वाले की इच्छा तृप्त कर रही
    जीवन मूल्य चुकाती कुल्हाड़ी |

                        – आशीष कुमार
                         मोहनिया बिहार