मुख पर कविता -मनहरण घनाक्षरी
गैया बोली शुभ शुभ, सुबह से रात तक,
कौआ बोली हितकारी,
चपल जासूस के!
हाथी मुख चिंघाड़े हैं, शुभ मानो गजानन,
सियार के मुख कहे,
बोली चापलूस के!
मीठे स्वर कोयल के, बसंत में मधु घोले,
तोता कहे राम राम,
मिर्ची रस चूस के!
राम के भजन बिन, मुख किस काम आये,
वत्स कहे ब्यर्थ अंग,
खाये मात्र ठूस के!
-राजेश पाण्डेय वत्स