दोपहर पर कविता – राजेश पांडेय वत्स
दोपहर पर कविता (छंद -कवित्त ) छंद तपन प्रचंड मुख खोजे हिमखंड अब, असह्य जलती धरादेखे मुँह फाड़ के!धूप के थप्पड़ मार पड़े गड़बड़ बड़े, पापड़ भी सेक देते पत्थर…
यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 राजेश पान्डेय वत्स के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
दोपहर पर कविता (छंद -कवित्त ) छंद तपन प्रचंड मुख खोजे हिमखंड अब, असह्य जलती धरादेखे मुँह फाड़ के!धूप के थप्पड़ मार पड़े गड़बड़ बड़े, पापड़ भी सेक देते पत्थर…
मुख पर कविता -मनहरण घनाक्षरी कविता संग्रह गैया बोली शुभ शुभ, सुबह से रात तक,कौआ बोली हितकारी,चपल जासूस के! हाथी मुख चिंघाड़े हैं, शुभ मानो गजानन,सियार के मुख कहे,बोली चापलूस…
रसोईघर पर कविता (छंद-मनहरण घनाक्षरी) छंद अँगीठी माचीस काठ,कंडा चूल्हा और राख, गोरसी सिगड़ी भट्टी, *देवता रसोई के!*सिल बट्टा झाँपी चक्की,मथनी चलनी चौकी,कड़ाही तसला तवा, *वस्तु कोई-कोई के!*केतली कटोरा कुप्पी,बर्तन…
प्रस्तुत संध्या-वन्दन राजेश पाण्डेय वत्स छत्तीसगढ़ द्वारा रचित है. शुभ संध्या नभ तले (संध्या-वन्दन) प्रातःकालीन दृश्य दिन रात संधिकाल, शुभ लग्न संध्या हाल,तारागण झाँक पड़े,पल सुखदाई में! नीड़ दिशा उड़ी…