दोपहर पर कविता (छंद -कवित्त )
तपन प्रचंड मुख खोजे हिमखंड अब,
असह्य जलती धरा
देखे मुँह फाड़ के!
धूप के थप्पड़ मार पड़े गड़बड़ बड़े,
पापड़ भी सेक देते
पत्थर पहाड़ के!
खौल खौल जाते घरबार जग हाहाकार,
सिर थाम बैठे सब
दुनिया बिगाड़ के!
आहार विहार रघुनाथ मेरे ठीक रखें,
अब तो भुगत वत्स
सृष्टि खिलवाड़ के!
– राजेश पाण्डेय वत्स