हे माँ जगदम्बे
अनेक रूप है,अनेक नाम है, कितनी उपमा गिनाऊँ मैं?
नयनों को झपकाकर खोलूँ, तो पास तुझे पाऊँ मैं।
दया रूप में माँ का वास, दानधर्म व सेवा में अटूट विश्वास।
तृष्टि रूप में निवास तुम्हारा, तुमने भोजन, धन, सम्मान निखारा,
मातृ रूप में ममता दे भवानी। आँचल की छाँव दे सबको महारानी।
वृति रूप में तू है जगत कारिणी,
सन्मार्ग पर चलकर जीवन हो गुडधानी।
श्रद्धा रूप में तू कल्याणी,
शुद्ध समर्पित भाव जगाकर हाथ थाम ले हे सुहासिनी।
हर छवि में तुम हो लज्जा, सामाजिक मर्यादा में हो साज सज्जा।
विद्या रूप में दर्शन दे,
ज्ञान की ज्योति की अलख जगा दे,
सबको तू राह दिखा दे।
निद्रा रूप में झलक दिखाई, नित नव चैतन्य की ऊर्जा जगाई।
शक्ति रूप में प्रकट हो दानव मारे,
दीन, दुखी,असहाय व निर्बल को तारे।
तेरी महिमा वर्णू मैं कैसे,
अंधेरे में चिराग दिखाऊँ मैं जैसे।
तू स्वयं है प्रकाशिनी, है सुभाषिनी।
अलौकिक रूपों की तू है धारिणी,
जन जन की तू है तारिणी।
त्रिशूल उठाकर हर लो पृथ्वी का ताण,
हे मंगलकारिणी तुझको कोटि कोटि प्रणाम!!
माला पहल ‘मुंबई’