आज पंछी मौन सारे
नवगीत (१४,१४)
देख कर मौसम बिलखता
आज पंछी मौन सारे
शोर कल कल नद थमा है
टूटते विक्षत किनारे।।
विश्व है बीमार या फिर
मौत का तांडव धरा पर
जीतना है युद्ध नित नव
व्याधियों का तम हरा कर
छा रहा नैराश्य नभ में
रो रहे मिल चंद्र तारे।।।
देख कर…………….।।
सिंधु में लहरें उठी बस
गर्जना क्यूँ खो गई है
पर्वतो से पीर बहती
दर्द की गंगा नई है
रोजड़े रख दिव्य आँखे
खेत फसलों को निहारे।।
देख कर……………..।।
तितलियाँ लड़ती भ्रमर से
मेल फुनगी से ततैया
ओस आँखो की गई सब
झूठ कहते गाय मैया
प्रीति की सब रीत भूले
मीत धरते शर करारे।।
देख कर………….।।
राज की बातें विषैली
गंध मद दर देवरों से
बैर बिकते थोक में अब
सत्य ले लो फुटकरों से
ज्ञान की आँधी रुकी क्यों
डूबते जल बिन शिकारे।।
देख कर……………….।।
बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान