सुई धागा -माला पहल

सुई धागा -माला पहल

कविता संग्रह
कविता संग्रह

सुई बोले धागे से
पतले हो तुम मुझ से,
मुड जाते हो पल- पल,
हमेशा करते हो हलचल।
धागा मंद मंद मुसकाया,
सुई की बातों से शरमाया।
छोटी,बडी ,मोटी,पतली
हरदम लगती तुम बदली बदली।
सिलकर देती हो कई रूप,
निखार देती हो रूप कुरूप ।
हँसकर बोली सुई सयानी,
तुम बिन मेरी अधूरी कहानी,
गर न हो साथ हमारा,
कुछ भी नहीं महत्व हमारा,
तुम्हारे बिना मैं निरर्थक ,
साथ रहे तो जीवन सार्थक।
तुम्हारे बिना मैं अधूरी,
कभी न होगी सिलाई पूरी ।
सुई-धागा बोले मुसकुराते,

‘जीवन जिओ साथ निभाते’।।


माला पहल ‘मुंबई’

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