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  • आज पंछी मौन सारे

    आज पंछी मौन सारे

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    नवगीत (१४,१४)


    देख कर मौसम बिलखता
    आज पंछी मौन सारे
    शोर कल कल नद थमा है
    टूटते विक्षत किनारे।।

    विश्व है बीमार या फिर
    मौत का तांडव धरा पर
    जीतना है युद्ध नित नव
    व्याधियों का तम हरा कर

    छा रहा नैराश्य नभ में
    रो रहे मिल चंद्र तारे।।।
    देख कर…………….।।

    सिंधु में लहरें उठी बस
    गर्जना क्यूँ खो गई है
    पर्वतो से पीर बहती
    दर्द की गंगा नई है

    रोजड़े रख दिव्य आँखे
    खेत फसलों को निहारे।।
    देख कर……………..।।

    तितलियाँ लड़ती भ्रमर से
    मेल फुनगी से ततैया
    ओस आँखो की गई सब
    झूठ कहते गाय मैया

    प्रीति की सब रीत भूले
    मीत धरते शर करारे।।
    देख कर………….।।

    राज की बातें विषैली
    गंध मद दर देवरों से
    बैर बिकते थोक में अब
    सत्य ले लो फुटकरों से

    ज्ञान की आँधी रुकी क्यों
    डूबते जल बिन शिकारे।।
    देख कर……………….।।

    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

  • भगत सिंह हों घर घर में

    भगत सिंह हों घर घर में

    भगत सिंह हों घर घर में


    ( १६,१४ ताटंक छंद २२२)

    भगत सिंह तो हों घर घर में,
    निज सुत हो तो खामोशी।
    शेखर,सुभाष ऊधम भी हो,
    अपने हो तो खामोशी।

    क्रांति स्वरों से धरा गुँजा दे,
    नाम सुने निज खामोशी।
    सरकारों की नींद उड़ा दे,
    हित टकराए खामोशी।

    संसद पर भी बम्म फोड़ दे,
    नाम लिए सुत, खामोशी।
    चाहे फाँसी फंदे झूले,
    नाम लिए निज खामोशी।

    देश धरा पर कुरबानी दे,
    परिवारी हो, खामोशी।
    आतंकी से लड़़ शहीद हो,
    भ्रात हुए तो खामोशी।

    अपराधी का खूं पी जाए,
    जाति बंधु हो , खामोशी।
    दुष्कर्मी का गला घोंट दें,
    धर्म पंथ के , खामोशी।

    चोर,डकैतों से भिड़ जाए,
    बगले झाँके , खामोशी।
    इन शीशपटल,कवि धंधों से,
    घर घर छाई खामोशी।

    संचालक के दौरे हो तब।
    काव्य पटल पर खामोशी।
    गलती पर छोटे भय भुगते,
    बड़े करे फिर,खामोशी।

    बहु की गलती , झगड़े भुगते,
    बिटिया की हो , खामोशी।
    सास बींनणी, घर के झगड़े,
    बेटे के मन खामोशी।

    भ्रष्टाचारी बात चले तो,
    खुद के हित मे, खामोशी।
    आरक्षण की चर्चा करते,
    खुद के हित फिर खामोशी।

    जाति धर्म के झगड़े होते,
    सरकारो की, खामोशी।
    खामोशी तो अवसरवादी,
    अवसर आए खामोशी।
    . ________
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, *विज्ञ*

  • विद्यार्थी की व्यथा

    विद्यार्थी की व्यथा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सूनी है गलियाँ।
    सूनी नजरियाँ।
    किसके संग खेलूँ मैं आँखमिचौलियाँ।
    न दिखे कोई सखा न सहेलियाँ ,
    शाला में भी लग गयी कुन्डियाँ,
    कहाँ गई शाबाशी की थपकियाँ,
    अब न बताते कोई मेरी गलतियाँ ,
    तरस रही है मेरी अखियाँ,
    कब खुलेंगी मेरी शाला की कुन्डियाँ।
    प्रातः माँ की उलाहना और प्यारी बलैयाँ ,
    दोस्तों के संग ली गई चुटकियाँ ,
    टिफ़िन में से चुराती इडलियाँ
    शाला से घर आते बाँट जोहती पगडंडियाँ,
    अब न बीते दिन और रतियाँ,
    शाला जल्दी खुले बस यही है विनतियाँ ।
    यही है विनतियाँ यही है विनतियाँ ।।

    ‘माला पहल’ मुंबई

  • हिन्दी वर्णमाला पर कविता

    हिन्दी वर्णमाला पर कविता

    kavita

    =================

    अ से अनार ,आ से आम ,

    पढ़ लिख कर करना है नाम।

    इ से इमली , ई से ईख ,

    पहले भइया इनको सीख ।

    उ से उल्लू ,ऊ से ऊन,

    हम सबको पढ़ने की धुन ।

    ऋ से ऋषि की आ गई बारी,

    पढ़नी है किताबें सारी।

    ए से एडी , ऐ से ऐनक ,

    पढ़ने से जीवन में रौनक ।

    ओ से ओखली , औ से औरत ,

    पढ़ने से मिलती है शोहरत ।

    अं से अंगूर , दो बिंदी का अः ,

    स्वर हो गए पूरे हः हः ।

    क से कबूतर , ख से खरगोश ,

    पढ़ लिखकर आएगा जोश ।

    ग से गमला , घ से घड़ी ,

    पढ़े लिखे हम घड़ी-घड़ी ।

    ङ खाली आगे अब आये ,

    आगे की ये राह दिखाए ।

    च से चरखा , छ से छतरी ,

    देश के है हम सच्चे प्रहरी ।

    ज से जहाज , झ से झंडा ,

    ऊँचा रहे सदा तिरंगा ।

    ञ खाली आगे अब आता ,

    अभी न रुकना हमें सिखाता ।

    ट से टमाटर , ठ से ठठेरा ,

    देखो समय कभी न ठहरा ।

    ड से डमरू , ढ से ढक्कन ,

    समय के साथ हम बढ़ाये कदम ।

    ण खाली अब हमें सिखाए ,

    जीवन खाली नहीँ है भाई।

    त से तख्ती , थ से थन ,

    शिक्षा ही है सच्चा धन ।

    द से दवात , ध से धनुष ,

    शिक्षा से हम बनें मनुष ।

    न से नल , प से पतंग ,

    हम तुम सब पढ़े संग-संग ।

    फ से फल , ब से बतख ,

    ज्ञान के फल को अब तो चख ।

    भ से भालू , म से मछली ,

    शिक्षा जग में सब से भली ।

    य से यज्ञ , र से रथ ,

    पढ़ लिखकर सब बनों समर्थ ।

    ल से लट्टू , व से वकील ,

    ज्ञान से सबका जीतो दिल ।

    श से शलजम , ष से षट्कोण,

    खुलकर बोलो तोड़ो मौन ।

    स से सपेरा , ह से हल ,

    श्रम से मिलता मीठा फल ।

    क्ष से क्षत्रिय हमें यही सिखाए ,

    दुःख में कभी नहीँ घबराएँ ।

    त्र से त्रिशूल , ज्ञ से ज्ञानी ,

    बच्चों अब हुई खत्म कहानी ।

    ✍✍ डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)

  • साक्षरता का अर्थ बताती कविता

    प्रस्तुत हिंदी कविता का शीर्षक साक्षरता है जो कि साक्षरता का अर्थ बताती कविता हैं

    साक्षरता का अर्थ बताती कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    ‘साक्षरता ‘ जैसा अक्षर नहीं,
    जिसका क्षरण सम्भव नहीं
    सा से बना सामंजस्य,
    क्ष से मिले क्षमता
    र से करते रचना
    ता से तारतम्यता।
    जिसने वरण किया साक्षरता का गहना ,
    उसे फिर सजना ही सजना ।
    अलौकिक छबि का यह है आइना,
    रूप दिखाये सुंदर सलोना ।
    साक्षरता से आता संस्कार,
    संस्कृति और सभ्यता का मिले उपहार ।
    साक्षरता लाए उच्च विचार,
    सुरभित हो जीवन, महके सदाचार ।
    समय की है यही पुकार,
    जिससे होगा सबका उद्धार ।
    साक्षर बनाने में जुट जाएँ हम,
    भारत के ललाट को दमकाए हम।

    माला ‘पहल’ मुंबई

    प्रधान संपादक की कलम से ,
    हमें ख़ुशी है आपको हमारे द्वारा हिंदी कविता का संकलन पसंद आ रही है . हमारी भरपूर कोशिश होती है पाठकों के लिए दिवस , तिथि या विषय वस्तु पर केन्द्रित रचना प्रकाशित किया जा सके. और हिंदी साहित्य के लेखकों के लिए कोशिश होती है उनकी सामान्य रचना को भी प्रकाशित किया जाये, खास रूप से नवोदित साहित्यकार की रचनाएँ . यदि आपको हमारा काम पसंद आ रहा है तो हमें फॉलो करें :-
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