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  • काश मेरा भी भाई होता !! रक्षाबंधन पर कविता

    रक्षा बन्धन एक महत्वपूर्ण पर्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह ‘रक्षासूत्र’ मात्र धागे का एक टुकड़ा नहीं होता है, बल्कि इसकी महिमा अपरम्पार होती है।

    कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिये भगवान कृष्ण से उपाय पूछा तो कृष्ण ने उन्हें इंद्र और इंद्राणी की कथा सुनायी। कथा यह है कि लगातार राक्षसों से हारने के बाद इंद्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इंद्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक तैयार रक्षाकवच को इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इस रक्षाकवच में इतना अधिक प्रताप था कि इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तब से इस पर्व को मनाने की प्रथा चल पड़ी।

    काश मेरा भी भाई होता- रक्षाबंधन पर कविता

    kavita

    काश मेरा भी भाई होता !!
    मैं भी रक्षाबंधन मनाती,
    राखी को देख दिल कहता है,
    कि काश मेरा भी भाई होता ।
    काश मेरा भी भाई होता ॥

    रक्षाबंधन के दिन सुबह ही उठती,
    आरती की थाली सजाती।
    राखी और मिठाई लेकर जाती,
    भाई को राखी बाँधती ।
    और कहती कि मेरा तोहफा दो ,
    तोहफे को देख मुस्कुराती ।
    और पुरे घर में झूम जाती ।।

    राखी की थाली है सजाई,
    बाॅधने के लिए नहीं मिली कलाई,
    वैसे तो सब कहते हैं मैं हूँ तेरा भाई,
    बनकर रहूँगा तेरी परछाई ,
    पर फिर भी जाने क्यूँ यह बात है याद आई,
    कि काश मेरा भी होता कोई अपना भाई ।
    काश मेरा भी भाई होता ।।

    भाई बहन के प्यार को देख ऑखे हो जाती है नम ,
    लडाई झगड़ा सबसे करती हूँ बहुत कम ।
    सभी भाई बहन को देख हो जाती हूँ गुम,
    भाई दुज के दिन भी हो जाती हूँ नम ,
    हर बार आता यही ख्याल;
    काश मेरा भी भाई होता !!
    काश मेरा भी भाई होता !!

    रबिना विश्वकर्मा
    [उ•प्र• ;; जिला जौनपुर ;; हथेरा (मोथूपुर)]
    पिन: : 222128

  • आओ खेल खेलें-रिंकीकाशी नरेश यादव

    आओ खेल खेलें

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    आओ जीवन के सतरंगी खेल खेले,
    अपनी कला को प्रदर्शित करें ।
    चलो खुद मे एक विश्वास लाए,
    आओ हम एक खेल खेले ।


    है नहीं हारने की चाहत ,
    ओैर नहीं है जीतने की उम्मीद ।
    बस खेल में डूब जाने का मन,
    आओ खेल खेले एक ऐसा ।


    अस्तव्यस्त है बिन खेल जिंदगी ,
    चलो स्वयं को स्वस्थ बनाए और ।
    जीवन को एक रंगीन सितारा ,
    मधुर दो शब्द है खेल के जो ।


    है हर सुबह का व्यायाम हमारा,
    ‎ आओ खेल खेले हम……..।
    ‎ पूजा है जो राष्ट्र में हमारे,
    ‎ आओ उसका कुछ अभ्यास करें ।


    ‎ चलो बचपन के कुछ मस्ती याद करें,
    ‎ आओ खेल खेले हम………..।


    रिंकीकाशी नरेश यादव
    रामनगर मेजा प्रयागराज उत्तर प्रदेश

  • आओ मेरे श्याम -बिसेन कुमार यादव ‘बिसु’

    आओ मेरे श्याम -बिसेन कुमार यादव ‘बिसु’

    आओ मेरे श्याम -बिसेन कुमार यादव ‘बिसु’

    जन्माष्टमी महोत्सव पर कविता

    shri Krishna
    Shri Krishna

    गोपियों के संग रास रचैया तुम हो मेरे किशन कन्हैया।
    तेरे आराधक तुम्हें बुला रही है,चले आओ मेरे साॅंवरिया।।

    मीरा के प्रभु गिरधर नागर।
    राधा के तुम हो मुरलीधर।।

    मेरे लिए तो तुम श्रीराम हो।
    और तुम ही मेरे घनश्याम हो।।

    इस प्यासी नयन की प्यास बुझाने आओ।
    मन प्रफुल्लित हो जाए ऐसी बंशी बजाओ।।

    एक बार आओ कान्हा बांसुरी की स्वर में हम सबको नचाने।
    या फिर राम बनकर आओ हम सबको मर्यादा सिखाने।।

    भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष दिन अष्टमी को श्याम रूप में आओ।
    या फिर चैत्र मास शुक्लपक्ष नवमी को श्रीराम बन आओ।।

    श्रीराम मेरे घनश्याम मेरे।
    रटू नाम सुबह-शाम तेरे।।

    राधारमण हरे श्रीकृष्ण हरे।
    मैं नित्य पखारू चरण तेरे।।

    तूम प्रेम रंग में मुझको रंग दे।
    अंग-अंग में प्रीत के रंग भर दे।।

    मीरा नहीं हूॅं मैं,न मैं राधा हूॅं, मैं तुम्हारी दासी हूॅं।
    सांवरे-सलोने मैं तुम्हारी प्रेम की प्यासी हूॅं।।

    आओ नंदलाला मेरे मनमोहना।
    मेरी आराधना तुम सुन लो ना।।

    तुम्हें पुकारू हे गोविन्दा,हे गोपाला।
    सुन लो पुकार मेरी हे बांसुरी वाला।।

    तूने वादा किया था जब-जब पाप बढ़ेगा मैं आऊंगा।
    अत्याचारी, पापी,अंहकारी दुष्टों का सर्वनाश करुंगा।।

    हमारी रक्षा करने तुमआओ दाता।
    हे जगतगुरु, श्रीहरि हे मेरे विधाता।।

    मुझ मूढ़,अभागा पर उपकार करो।
    दुःख , पीड़ा,कष्ट, संकट मेरे दूर करो।।

    इस भयंकर प्रलयकारी संकट से हमें उबारो।
    हे सुदर्शन धारी रक्षा करो हमारी रक्षा करो।‌।

    हे पालनकर्ता हे पालन हार।
    हे दुःख हर्ता,हे मुरलीधर।।

    दिन-दिन ले रही है,जान हमारी।
    चुन-चुन के ले रही है, प्राण हमारी।।

    रोको-रोको बढ़ रही है, विपत्ति भारी।
    आओ-आओ हे नाथ,हे गिरधारी।।

    पापी महामारी का, सर्वनाश करो अंतर्यामी।
    अधर्मी,अनाचारी का विनाश करो मेरे स्वामी।।



    बिसेन कुमार यादव ‘बिसु’
    जिला रायपुर छत्तीसगढ़

  • छत्तीसगढ़ के बघवा बैरिस्टर छेदीलाल ठाकुर

    छत्तीसगढ़ के बघवा-ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    छत्तीसगढ़ के गौरव रत्न ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर का जन्म अकलतरा के समीप ग्राम खटोला में गणेश चतुर्थी के दिन 1891 में हुआ । उनके पिता का नाम पचकोड़ सिंह व माता का नाम सोनकुंवर था। उनका परिवार राज परिवार था। जहां संपूर्ण सुख सुविधाओं के साथ वे पले बढ़े थे। प्राथमिक शिक्षा अलकतरा में प्राप्त किए. ठाकुर छेदीलाल के जन्म से पहले उनके दो पुत्रों का देहांत हो गया था।

    बालपन में बैरिस्टर साहब को बीमारियो से बचाने के लिए उनकी माँ सोनकुवर ने पुत्र के नाक और कान छिदवाया था। वहीं से उनका नाम छेदीलाल पड़ गया। बीमारी से मुक्ति के लिए उनके माता पिता ने देवी के मंदिर में ज्योति जलवाई थी। वे बचपन में बड़े शरारती थे। ठाकुर छेदिलाल बैरिस्टर की पहली पत्नी का नाम हीरादेवी और दूसरी पत्नी का नाम सुशीला था।

    शादी के 27 साल बाद भी उन्हें पहली पत्नी से संतान प्राप्त नहीं हुआ। चाचा दीवान साहब ने बनारस के परिचय सम्मेलन में उनके विवाह का प्रस्ताव रखा। 1857 क्रांति के नायक राणा बेनी माधव के पुत्र ने अपनी बेटी सुशीला देवी का हाथ बैरिस्टर साहब को सौंपा। उनकी पुत्री का नाम रत्नावली सिंह है। रत्नावली की दो पुत्रियां क्रमशः डा. मधुलिका सिंह और डा. स्वाती वंदना है। उनके पुत्र विजय प्रताप सिंह हैं। जिनके पुत्र अमित सिंह और अमर सिंह है।

    शिक्षा –

    प्रयाग के म्योर कालेज में इंटरमीडिएट करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए आक्सफोर्ड चले गए। आक्सफोर्ड में पढ़ाई के लिए जाते वक्त वे आलू खाया करते थे। वहाँ पर इतिहास में एम. ए. , एल. एल. बी. और बार एट ला की उपाधि प्राप्त की। वे हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू और संस्कृत की भाषा में निपुण थे। वे स्कालरशिप के पैसे से पढ़ने लंदन गए।

    आगे – लंदन में इंडिया हाउस नामक क्रांतिकारी संगठन से जुड़े। साथ ही फ्रंास में बम निर्माण सीखा। उन्होंने हालेंड के स्वतंत्रता का इतिहास लिखा.1919 में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। जलियांवाला बांग हत्याकांड की जांच समिति के सदस्य रहे.
    1921 में बनारस वि.वि. में संस्कृत और 1922 में गुरुकुल कांगड़ी में इतिहास विषय में अघ्यापन कार्य भी किया। 1926 तक प्रयाग की सेवा समिति में संचालक के रुप में रहे। वे कानून के जानकार थे। वकालत के बाद सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। वे महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हुए।

    वे जगह जगह राष्ट्रीय विघालयो की स्थापना का प्रयास करते रहे. श्रमिकों में चेतना फैलाने के लिए 1927 से 1932 तक श्री वी. वी. गिरी के साथ बंगाल भनपुर रेलवे श्रमिक संघ के उच्च पदों को सुशोभित किया। बिलासपुर में जागृति जगाने के लिए उन्होंने रामायण मंच से राष्ट्रीय रामायण का अभिनव प्रयोग किया। शुरुआत में उनका झुकाव स्वराज दल में था, लेकिन बाद में गांधी जी से प्रभावित होकर कांग्रेस के सदस्य बन गए. 1932 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें 2500/ अर्थदंड देना पड़ा।

    1932 में आखिल भारतीय कांग्रस कमेटी के सदस्य तथा बाद में कांग्रस समिति के अध्यक्ष भी बने। मुंगेली के सतनामियों को राजनीति में लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 25 नवंबर 1933 में गांधीजी के बिलासपुर आगमन पर , वे स्वागत समिति के अध्यक्ष रहे. 1937 में अकलतरा से कांग्रेस का विधायक बने। 1939 में मंत्री पद से स्तीफा दे दिया. 1942 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर तीन वर्ष के लिए कारावास की सजा हुई. 1946 में संविधान सभा के सदस्य भी रहे।1950 से 1952 तक के लिए उन्हें अस्थायी सांसद के रूप में मनोनीत किया गया.


    महात्मा गांधी ने उन्हे मध्यप्रांत के मुख्यमंत्री बनने के लिए कहा था। जिसे ठाकुर जी ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। ऐसे ही उन्हे जबलपुर उच्चन्यायालय के पहले मुख्यन्यायधीश के पद को भी लेने से इंकार कर दिया। बैरिस्टर छेदीलाल को छत्तीसगढ़ का बघवा कहा जाता था। वे छत्तीसगढ़ के प्रथम बैरिस्टर माने जाते है। 1956 में हृदय घात से उनकी मृत्यु हुई.
    साहित्य- ठाकुर छेदीलाल ने विकास पत्रिका हिन्दी प्रेमी के नाम से केई लेख लिखे. वे माखनलाल चतुर्वेदी के कर्मवीर के संपादक रहे.


    रुचि –

    बैरिस्टर छेदीलाल बहुत शौकिन थे। उन्हें सूट बूट पसंद था। नई गाड़ियों को खरीदकर रखते थे। उनक शेवरलेट कार आज भी बिलासपुर के घर में रखी है। हिदायतउल्ला खान उनके ड्रायवर थे। उन्हें नागरा जूता, छड़ी, हुकका प्रिय था। वे संगीत में भी रुचि रखते थे, साथ ही तबला वादन करते थे. वे गुलाब का शौक रखते थे। उन्होंने गुलाब की कई प्रजातियां लंदन से मंगाई थी। उन्हें ठहाके मारकर हँसना पसंद था। उन्हें लिखना, पढ़ना और दूसरों की सहायता करना अच्छा लगता था। कुत्ता पालने का शौक भी रखते थे। वे शिक्षक, लेखक और इतिहासकार के रुप में जाने जाते हैं।

    छत्तीसगढ़ के बघवा बैरिस्टर छेदीलाल ठाकुर

    संकलन
    अनिल कुमार वर्मा, व्याख्याता

  • आओ मिलकर सब खेलें खेल

    आओ मिलकर सब खेलें खेल

    kavita

    आओ मिलकर सब खेलें खेल,
    छुक छुक करती यूं बनाएं रेल।
    तनाव घटाएं और प्यार बढाएं,
    मन साफ, दिल में न होता मैल।
    आओ मिलकर सब खेलें खेल–
    स्फूर्ति आती,पुलकित होता मन,
    ताकत बढ़ती,मजबूत होता तन।
    रगों में रक्त का सही संचार होता,
    खेल से ही तंदुरुस्त होता हर जन।
    आओ मिलकर सब खेलें खेल–
    शुद्ध विचारों का आगमन होता,
    द्वेष भावना का भी गमन होता।
    खेल भावना से जीते जाते मैदान,
    खेल खेलने के बाद अमन होता।
    आओ मिलकर सब खेलें खेल–
    रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ती,
    आलस और सुस्ती पास न आती।
    दमखम दिखाने का अवसर मिलता,
    खेल से नाम होता व इज़्ज़त बढ़ती।
    आओ मिलकर सब खेलें खेल–
    शरीर लचीला होता व स्टैमिना बढ़ती,
    और खाना हजम होने की पॉवर बढ़ती।
    “नदीम”खेल से हार-जीत से रूबरू होते,
    खेल से ही प्रतिस्पर्धा और दोस्ती बढ़ती।
    आओ मिलकर सब खेलें खेल–

    नदीम सिद्दीक़ी, राजस्थान