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  • चलो चले खेल खेलें

    चलो चले खेल खेलें

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    दुनिया को रंग दे खेल के रंगों से ;
    चलो चलें खेल खेले , चलो चलें खेल खेले ।
    मिलकर हम सब खेल खेले ।

    छोटे से मैदान से अपने आप को निकालकर ,
    ओलपिंक मे अपना नाम बना ले,
    वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम करने की तैयारी कर ले,
    चलो चलें खेल खेले ।।

    अपनी इस छोटी सी पहचान को ,
    दुनिया के सामने रखकर,
    तैयारी जीत की कर ले,
    चलो चलें खेल खेले ।।

    कबड्डी के मैदान में अंतिम खिलाड़ी ,
    बचने पर भी अपनी टीम को जीता दे;
    ऐसी तैयारी कर ले ,
    चलो चलें खेल खेले ।।

    सबकी आशाओ से ज्यादा ,
    दुनिया वालों को अपने ;
    देश का राष्ट्रगान सुना दे ,
    ऐसा निर्णय कर ले ,
    चलो चलें खेल खेले ।।

    क्रिकेट, फुटबाॅल, हाॅकी,टेनिस ,
    आदि खेलो का मार्गदर्शन कर ले ;
    मेजर ध्यान चंद्र खेल रत्न पुरस्कार पा ले,
    चलो चलें खेल खेले ॥
    चलो चलें खेल खेले ॥

    रबिना विश्वकर्मा ( उ•प्र•;;जिला जौनपुर ;हथेरा )
    पिन:: 222128

  • आओ खेलें खेल -संजय कुमार गुप्ता

    आओ खेलें खेल

    kavita

    जीवन के इस दौड़ में,
    चल थोड़ा शामिल हो जाएं।
    उत्साह और उमंग से,
    चल ऐसा अभ्यास करें।
    स्फूर्ति और चपलता से,
    नित जीत का नया स्वाद चखें।
    तोड़ डालें पूर्वानुमानों को,
    इतना हम सब आगे बढ़ें।
    उठो, जागो और मत रुको,
    जब तक की लक्ष्य ना पा जाओ।
    आदर्श वाक्य जो अपनाया विश्व ने,
    और तेज, और ऊंचा और ताकतवर का,
    सदा चलो उसका ही अनुसरण करें।
    खेल तो सिर्फ खेल नहीं,
    वह तो है राष्ट्र का सम्मान।
    जिसने किया समर्पित खुद को,
    उसने कराया अपनी संस्कृति का गुणगान।
    हार-जीत की ना परवाह कर तू,
    चल खेल को खेल की भावना से जोड़ें।

    संजय कुमार गुप्ता
    वाराणसी उत्तर प्रदेश
    संपर्क-9450084165

  • सदा छला जन का विश्वास

    सदा छला जन का विश्वास

    kavita

    विश्वास गीत (१६,१५)


    सत्ताधीशों की आतिश से,
    जलता निर्धन का आवास।
    राज महल के षडयंत्रों ने,
    सदा छला जन का विश्वास।

    युग बीते बहु सदियाँ बीती,
    चलता रहा समय का चक्र।
    तहखानों में धन भर जाता,
    ग्रह होते निर्बल हित वक्र।
    दबे भूलते मिले दफीने,
    फलती मचली मिटती आस।
    राज महल के षडयंत्रों ने,
    सदा छला जन का विश्वास।

    सत्ता के नारे आकर्षक,
    क्रांति शांति के हर उपदेश।
    भावुक जन को छलते रहते,
    आखिर शासक रहते शेष।
    सिंहासन परिवार सदा ही,
    करते मौज रचाते रास।
    राज महल के षड़यंत्रों ने
    सदा छला जन का विश्वास।

    युद्ध और बदलाव सत्य में,
    शोषण का फिर नवल विधान।
    लुटता पिटता भोला भावुक,
    भावि नाश से सच अनजान।
    विश्वासों की बलिवेदी पर,
    आस बिखरती उखड़ी श्वाँस।
    राजमहल के षड़यंत्रों ने,
    सदा छला जंन का विश्वास।


    बाबू लाल शर्मा बौहरा ‘विज्ञ’

  • चार धागे रक्षाबंधन पर कविता

    रक्षा बन्धन एक महत्वपूर्ण पर्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह ‘रक्षासूत्र’ मात्र धागे का एक टुकड़ा नहीं होता है, बल्कि इसकी महिमा अपरम्पार होती है।

    कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिये भगवान कृष्ण से उपाय पूछा तो कृष्ण ने उन्हें इंद्र और इंद्राणी की कथा सुनायी। कथा यह है कि लगातार राक्षसों से हारने के बाद इंद्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इंद्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक तैयार रक्षाकवच को इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इस रक्षाकवच में इतना अधिक प्रताप था कि इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तब से इस पर्व को मनाने की प्रथा चल पड़ी।

    चार धागे

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    भाई- बहिन का रिश्ता कितना पावन है,
    रिश्तों के झुरमुट में देखो मन भावन है।
    सब रिश्ते स्वार्थ की दहलीज तक ही हैं,
    भाई- बहिन का रिश्ता निस्वार्थ सावन है।

    महज चार धागों का बंधन नहीं है भला,
    विश्वास का पैग़ाम है और रक्षा की बेला।
    भाई के लिए बहिन तोहफा है अनमोल,
    बहिन महफ़ूज है जो उसको भाई मिला।

    बचपन बिता गुड़िया और खेल खिलौने,
    रूठना और मनाना,वो हंसीं सपने सलोने।
    बड़े होकर भी नहीं भूले हैं जो अपनापन,
    राखी के बंधन का फर्ज आऊंगा निभाने।

    तेरी शादी करके तुझे अलविदा कह दिया,
    भाई ने हंसकर बिछुड़ने का ग़म सह लिया।
    संसार में तेरे हमेशा खुश रहना मेरी बहिन,
    खुशियां तुझे मिले दुआ में रब से कह दिया।

    राखी का बंधन भी देखो “नदीम” अनोखा है,
    भाई- बहिन रिश्ते की मिठास का झरोखा है।
    एक- दूजे के लिए जान न्यौछावर कर देते है,
    ये रिश्ता सलामत रहे तमाम् उम्र सरीखा है।

    नदीम सिद्दीक़ी, राजस्थान

  • आओ खेल खेलें- 29 अगस्त राष्ट्रीय खेल दिवस

    kavita

    29 अगस्त राष्ट्रीय खेल दिवस.



    ————— आओ खेल खेलें—————–

    खेल है मानव जीवन का अभिन्न अंग,
    खेल से छाई जीवन में खुशहाली का रंग।
    खेल है अनमोल उपहार यह सब को बोलें,
    जीवन के उद्धार के लिए, आओ खेल खेलें।

    कोई खेले हॉकी क्रिकेट तो कोई कबड्डी,
    शरीर हो जाए स्वस्थ और मजबूत- हड्डी।
    आलसी – जीवन और खेल दोनों को तोले,
    जीवन के उद्धार के लिए, आओ खेल खेलें।

    कोई बना ध्यानचंद तो कोई तेंदुलकर महान,
    हिंद का नाम ऊंचा किया हैरान है सारा जहान।
    जीवन में पढ़ाई के साथ खेल का है योगदान,
    खेल में भी लोगों ने बनाई खुद का पहचान।
    जो कल करना है आज वह काम को करलें,
    जीवन के उद्धार के लिए, आओ खेल खेलें।

    खेल भावना लाए मानव में शिष्टाचार,
    खिलाड़ी करें एक दूसरे से सद्व्यवहार।
    हार – जीत तो खेल का है एक अभिन्न भाग,
    खेल सिखाएं सहिष्णुता और एकता का राग।
    आपसी द्वेष को भूल खिलाड़ी मिलते हैं गले,
    जीवन के उद्धार के लिए, आओ खेल खेलें।

    खेल में है प्रेम- एकता का सुगंध,
    सभी देशों से बनाएं मित्रता संबंध।
    खेल ने दिखा दिया ना कोई गरीब- अमीर,
    खेल से फैले शांति और शुद्ध होता जमीर,
    सभी लोग खेल की भावना हृदय में भरलें,
    जीवन के उद्धार के लिए, आओ खेल खेलें।

    ओलंपिक में हिन्द को मिला स्वर्ण कांस्य रजत,
    नीरज- मीरा कई भारतीयों ने दिलाए हैं पदक।
    खेल- भावना की ज्ञान को तत्परता से हरलें,
    जीवन के उद्धार के लिए, आओ खेल खेलें।


    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.